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120 मीटर ऊंचाई से जानवर के कान में देख लेने वाले ड्रोन

वैज्ञानिकों ने ऐसे ड्रोन विकसित किए हैं जो बिना जानवरों को परेशान किए, उनके बारे में जानकारी जुटा सकते हैं

120 मीटर ऊंचाई से जानवर के कान में देख लेने वाले ड्रोन
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जानवरों की निगरानी के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसे ड्रोन विकसित किए हैं जो बिना उन्हें परेशान किए, उनके बारे में जानकारी जुटा सकते हैं.

ब्रिटेन के हैम्पशर में एक चिड़ियाघर ने ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया है, जो 120 मीटर की ऊंचाई से जानवरों के कान में नसों तक को देख सकते हैं. इसका उद्देश्य जंगली जानवरों जैसे बर्फीले तेंदुए और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों की निगरानी करना है.

मार्वल वाइल्डलाइफ ने साउथैम्पटन विश्वविद्यालय के साथ मिलकर यह प्रयोग शुरू किया है, जिससे बिना जानवरों को परेशान किए, उनकी पहचान की जा सके और उनके बारे में पता लगाया जा सके.

इस प्रोजेक्ट की शुरुआत कजाकिस्तान के अल्तिन-एमेल नेशनल पार्क में बर्फीले तेंदुए और खुर-धारी प्रजातियों के साथ की जाएगी. इसके अलावा केन्या में ग्रेवी के जेब्रों की भी निगरानी होगी.

टीम ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे आसमान से ही जानवरों को थर्मल इमेजिंग, हाई-डेफिनिशन कैमरे और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर पहचानने में मदद मिलेगी. इसका उद्देश्य हर जानवर की चमड़ी को अलग-अलग पहचानने का है.

मार्वल वाइल्डलाइफ की प्रवक्ता ने कहा, "हर जेब्रे की धारियां अनोखी होती हैं. जैसे इंसान की उंगलियों के निशान. इसे एक तरह के बारकोड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे हर जेब्रे की पहचान की जा सके."

करीब और पैनी निगाह

मार्वल वाइल्डलाइफ के कंजरवेशन डायरेक्टर प्रोफेसर फिलिप रिओर्डन ने कहा, "वन्यजीव संरक्षण के लिए मौजूदा तकनीकों के उपयोग की संभावनाएं बहुत बड़ी और लगभग अनदेखी हैं. इस प्रोजेक्ट से उपलब्ध तकनीकों का उपयोग किया जाएगा और नई खोजों को बढ़ावा मिलेगा, जो दुनिया भर में संरक्षणवादियों की मदद कर सकते हैं."

मार्वल वाइल्डलाइफ ने बताया कि ये ड्रोन कई बार आजमाए जा चुके हैं, जिनमें से दो परीक्षण हैम्पशर के चिड़ियाघर में किए गए. प्रवक्ता ने बताया, "हाल के परीक्षण में, ड्रोन ने इतनी स्पष्ट तस्वीरें लीं कि जेब्रे के कान में नसें तक दिखाई दीं, वह भी 120 मीटर की ऊंचाई से."

वैज्ञानिक ऐसी तकनीकें विकसित करने की कोशिश में हैं जिनसे एआई का इस्तेमाल करते हुए जानवरों की रक्षा की जा सके. फिलिप रिओर्डन ने बताया कि जानवरों की छायाएं भी उनकी पहचान में मदद कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, आकाश से देखने पर सभी सींग वाले हिरन एक जैसे दिखते हैं, लेकिन उनके साये में नर के सींग साफ नजर आते हैं.

सेहत की निगरानी

रिओर्डन ने बताया, "जूम फीचर से हमारी टीम जानवरों के शरीर की स्थिति जांच सकती है, जैसे उनकी पसलियों को देखकर यह पता चलता है कि जानवर को जरूरी पोषण मिल रहा है या नहीं."

उन्होंने कहा, "अगले साल, ड्रोन को कजाकिस्तान और केन्या में तैनात किया जाएगा, जहां हम ग्रेवीज जेब्रा ट्रस्ट और केन्या वाइल्डलाइफ सर्विस के साथ काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट का मकसद एक ऐसा ड्रोन प्लेटफॉर्म विकसित करना है, जो दुनिया भर के संरक्षणवादियों के लिए सुलभ हो." डेटा का सामूहिक इस्तेमाल दुर्लभ प्रजातियों की सुरक्षा में मदद कर सकता है.

उन्होंने कहा कि कजाकिस्तान और केन्या के परीक्षण केस स्टडी के रूप में काम करेंगे और इस तकनीक को परियोजना की जरूरतों के अनुसार बेहतर बनाने में मदद करेंगे. समय के साथ, ये ड्रोन दुनिया भर में संकटग्रस्त जानवरों की आबादी की निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जा सकेंगे जो एक किफायती और लाभदायक तरीका होगा.


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