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न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया,कसम तुम्हारी मै रो पड़ूँगी

गीत की प्रभाविकता में फ़िल्म के हालात का भी महत्त्व होता है, क्योंकि गीत हालात को ध्यान में रखकर ही लिखें जाते हैं

न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया,कसम तुम्हारी मै रो पड़ूँगी
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- अजय चंद्रवंशी

गीत की प्रभाविकता में फ़िल्म के हालात का भी महत्त्व होता है, क्योंकि गीत हालात को ध्यान में रखकर ही लिखें जाते हैं। यद्यपि 'कालजयी' गीत उससे मुक्त होकर जनमानस में उस भाव का प्रतिनिधि सा हो जाया करते हैं । कितने ही ऐसे गीत हैं जो अनायास जनता की किसी भाव के अहसास का हिस्सा हो गए हैं।

'साहिब बीबी और गुलाम' [1962]का गीत न 'जाओ सैंया छुड़ा के बैंया' अपनी कहन की सादगी जो कि शकील बदायूनी रचित है , हेमंत कुमार के संगीत और गीता दत्त की भाव विभोर कर देने वाली गायकी के कारण अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ा है।

गीत कुछ भजन / कीर्तन की शैली में है। भाषा का प्रयोग अद्भुत है। गीत का मुखड़ा तथा दूसरा और तीसरा बंद लोक भाषा की शैली में है मगर पहले बंद में 'बिखरी जुल्फें' भी है जो उर्दू शाइरी की शैली है। फिर भी गीत के प्रवाह में कोई असहजता नहीं महसूस होता।

पूरे गीत में पत्नी का समर्पण भाव है।पति लम्पट सामंत है, तवायफों के कोठे में रात बसर होती है। पत्नी दाम्पत्य सुख से वंचित है। पति को शराब में डूबी स्त्री पसंद है सो वह भी करती है, मगर सामंती लम्पटता कहां जाने वाली थी? एक समय के बाद पति फिर बाहर जाने को निकल रहा है। पत्नी उसे रोक रही है।सब जतन कर चुकी है फिर भी पहले अपने सौंदर्य से रिझाने का प्रयास करती है,फिर अपने सुहाग का दुहाई देती है,विनती करती है, मगर तमाम प्रयास असफल रह जाते हैं।

आप ऐसा सोच सकते हैं स्त्री ऐसे पुरुष को ठोकर मार कर मुक्त क्यों नहीं हो जाती,तो यह उस दौर, उस समाज की सीमा है और एक हद तक उस स्त्री की भी सीमा है।
हेमंत कुमार का संगीत मधुर है। गीत के अनुरूप हल्का रिदम जिसमें तबले की थाप और सितार का समायोजन अच्छा लगता है और संगीत गीत पर हावी नहीं होता।
मीना कुमारी की अदाकारी बेमिसाल है। मादकता,नशे में डूबी आँखें और जिस्म,छेड़छाड़,गर्व,समर्पण फिर हताशा,बेबसी के भाव उभरते जाते हैं।

गीता दत्त की आवाज़ का जादू मीनाकुमारी की अदाकारी में घुल गई है।जो काम मीना जी अदाकारी से करती हैं,वहीं गीता जी आवाज़ से करती है। कमाल की तड़प है इस आवाज में!हर बंद के आख़िर में शब्दों को बलाघात से दोहराव असरकारक है। मीना कुमारी और गीता दत्त दोनों के जीवन की त्रासदी मानो इस गीत में उतर गई है।
'न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया

$कसम तुम्हरी मैं रो पड़ूँगी, रो पड़ूँगी
मचल रहा है सुहाग मेरा
जो तुम न हो तो, मैं क्या करूँगी, क्या करूँगी

ये बिखरी ज़ुल्$फें ये घुलता कजरा
ये महकी चुनरी, ये मन की मदिरा
ये सब तुम्हारे लिये है प्रीतम
मैं आज तुम को न जाने दूँगी, जाने न दूँगी

मैं तुम्हरी दासी जनम की प्यासी
तुम्ही हो मेरा ऋंगार प्रीतम
तुम्हारी रस्ते की धूल ले कर
मैं माँग अपनी सदा भरूँगी, सदा भरूँगी

जो मुझ से अखियाँ चुरा रहे हो
तो मेरी इतनी अरज भी सुन लो
पिया ये मेरी अरज भी सुन लो
तुम्हारी $कदमों में आ गयी हूँ
यहीं जियूँगी यहीं मरूँगी, यहीं मरूँगी'


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