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अगले बरस फिर जल्दी आना रावण...

सत्य पर असत्य की विजय के लिए रावण अगले बरस तुम फिर जल्दी आना। तुम्हारे बगैर बाजार अधूरा लगता है

अगले बरस फिर जल्दी आना रावण...
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- भूपेन्द्र भारतीय

तुम्हें नहीं पता, तुम नहीं आओगे तो कितने ही बच्चे दुखी होगे। बच्चे फिर किसे जलता हुआ देखेंगे। नगरपालिका का मैला कैसे लगेगा। बच्चे किसके जलने पर ताली बजाऐगे। तुम्हें बच्चों के लिए आना होगा। तुम नहीं आओगे तो फिर वायु प्रदूषण कैसे होगा। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण जैसे वैश्विक मुद्दे खत्म हो जाऐंगे। तुम्हें जलने के लिए फिर आना होगा। जिससे कि राजनेता व बुद्धिजीवी तुम्हारे जलने पर अपने अपने क्षेत्र में भाषण दे सके।

सत्य पर असत्य की विजय के लिए रावण अगले बरस तुम फिर जल्दी आना। तुम्हारे बगैर बाजार अधूरा लगता है। तुम्हें फिर आना ही होगा। तुम्हें नेताओं व सरकारी अधिकारियों की उम्र लग जाए। मेरा बस चले तो तुम्हें जलाने ही नहीं दू। लेकिन मेरे बस में कुछ नहीं है। मैं ठहरा भीड़ का एक अदना सा नर। तुम्हें जलाने वाले किसी को आगे आने नहीं देते। सब तुम्हें हर बरस मारते है और खुश होते हैं। लेकिन मैं दुखी होता हूँ। तुम्हें नहीं पता रावण, ये लोग तुम्हारे नाम पर व्यापार करते हैं। अपनी अपनी दुकान खोले बैठे हैं। अपनी अपनी बुराई को छुपाने के लिए तुम्हारा सहारा लेते हैं लेकिन इनके अंदर का रावण आज तक नहीं मरा। ये अपने अंदर के रावण को मारने के चक्कर में तुम्हें जलाते हैं।

रावण मैंने इस बरस भी तुम्हें जबरन जलते देखा। मुझे पता है तुम इन नेताओं के हाथों नहीं जलना चाहते हो। लेकिन मैं इस विषय में कुछ नहीं कर सकता। तुम्हें जलाने के लिए जनता ने ही इन्हें चुना है। कुछ तो स्वघोषित तुम्हारे शत्रु बनकर तुम्हें जलाते हैं। ये तुम्हें मारने-जलाने के लिए हर बरस बड़ी सरकारी मदद लेते हैं। कितनी ही नगर पालिकाओं में तुम्हारे नाम पर लंबे चौड़े बिल फटते है और बदनाम तुम होते हो। बिल तुम्हें मारने के लिए बनाते हैं और "कहते है कि एक बार फिर रावत का बड़ा पुतला बनाना होगा। जितना बड़ा रावण उतनी बड़ी विजय होगी। उसके लिए बड़ा बजट चाहिए। हमने पाप को इस बजट से मिटाया और जनता को ?असत्य पर सत्य की विजय का' संदेश दिया है।"

रावण तुम्हें तमाम बुद्धिजीवीयों की कसम तुम अगले बरस फिर जल्दी आना, नहीं तो ये बेचारे बुद्धिजीवी अगले बरस फिर बड़े बड़े स्तंभ-संपादकीय कैसे लिखेंगे ! तुम्हारे फिर नहीं मरने पर समाज के नाम संदेश देने वाले फिर क्या बोलेंगे। व्याख्यान कैसे देगें। वे नहीं बोलेगें तो उनकी दुकान बंद हो जाऐगी। उनकी दुकान चलती रहे, इसलिए भी तुम्हें आना ही होगा। तुम नहीं आये तो विकास रूक जाऐगा। जीडीपी अपने मार्ग से भटक जाऐगी। तुम नहीं आये तो सोशल मीडिया पर तुम्हारे जलते पुतले व प्रेरणादायक संदेश सोशलमीडियावीर कैसे भेजेगी।

हाँ अगले बरस तुम आओ तो एक मुँह ही लेकर आना। यहां एक से अधिक मुँह वालों की कमी नहीं। अब हमारे इधर भी दस मुँह से ज्यादा वाले पाये जाने लगे हैं। तुम्हारी वाली कला इधर भी बहुत से लोग सीख गए हैं। तुम अगली बार थोड़ा जल्दी आना। मैं तुमसे ज्यादा सर वाले लोगों को तुम्हें दिखाने के लिए हमारे देश के सरकारी कार्यालयों में ले चलूंगा। तुम इन्हें देखकर सर पकड़ लोगे। ये तुमसे भी बड़े मायवी है। तुम्हें जलाने वाले कार्यालय का भी मैं तुम्हें दर्शन करवाऊंगा। तुम देखोगे कि ये लोग तुम्हें जलाने के लिए कितने बिल फाड़ते है और तुम्हें जलाने में भी घपले कर देते हैं। इनका ऐसा करने के पीछे, यह तर्क है कि इनका इससे घर चलता है। अब तुम्हारे जलने से किसी का घर चलता है तो एक बार ओर फिर जलने के लिए आ जाना। तुम्हें जलने मरने से भला क्या कुछ होता है। जनता के लिए तुम्हारा मरना धंधा व मनोरंजन बन गया है। तुम फिर आना, तुम्हें इससे पुण्य मिलेगा रावण।

तुम्हें नहीं पता, तुम नहीं आओगे तो कितने ही बच्चे दुखी होगे। बच्चे फिर किसे जलता हुआ देखेंगे। नगरपालिका का मैला कैसे लगेगा। बच्चे किसके जलने पर ताली बजाऐगे। तुम्हें बच्चों के लिए आना होगा। तुम नहीं आओगे तो फिर वायु प्रदूषण कैसे होगा। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण जैसे वैश्विक मुद्दे खत्म हो जाऐंगे। तुम्हें जलने के लिए फिर आना होगा। जिससे कि राजनेता व बुद्धिजीवी तुम्हारे जलने पर अपने अपने क्षेत्र में भाषण दे सके। तुम नहीं आये तो सबकी विजय अधूरी रहेगी। सबकी विजय के लिए तुम्हारा जलना जरूरी है। ओर वैसे भी तुम कहाँ पहली बार जलने आओगे ! कितनी ही बार तुम जल-मर चुके हों। एक बार फिर अपना दहन करवाने आ जाना लंकेश। जनता खुश हो जाऐगी और कितनों की ही दुकान फिर चल पड़ेगी। तुम्हारे इस महत्व को देखते हुए वर्तमान में तुम ही इस पूँजीवादी युग में बाजार के सबसे बड़े ब्रांड हो लंकेश। तुम्हारे सहारे कितने ही सरकारी व गैर सरकारी लोग बड़े उद्यमी बन गए हैं। हर बरस तुम्हारा फिर जलने के लिए आना कितनी ही नयी नयी उम्मीद व अवसर आने जैसा है। मुझे उम्मीद है रावण जी, तुम अगले बरस जरूर आओगे...!


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