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युवा पीढ़ी पर आलसी होने के आरोप गलत: रिपोर्ट

एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि नई पीढ़ी पर आलसी होने और काम से बचने के आरोप गलत हैं. आंकड़े बताते हैं कि वे पहले से ज्यादा काम कर रहे हैं लेकिन उनका काम करने को लेकर नजरिया अलग है

युवा पीढ़ी पर आलसी होने के आरोप गलत: रिपोर्ट
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एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि नई पीढ़ी पर आलसी होने और काम से बचने के आरोप गलत हैं. आंकड़े बताते हैं कि वे पहले से ज्यादा काम कर रहे हैं लेकिन उनका काम करने को लेकर नजरिया अलग है.

"युवा पीढ़ी आलसी हो गई है. वे मेहनत से बचते हैं और केवल आरामदायक जीवन चाहते हैं." ऐसे आरोप अक्सर जेनरेशन जी यानी 1995 के बाद जन्मे लोगों पर लगाए जाते हैं. लेकिन क्या यह सच है? नए शोध और जर्मनी के एक सरकारी संस्थान के आंकड़े इस धारणा को पूरी तरह से खारिज करते हैं.

जर्मनी के इंस्टिट्यूट फॉर इंप्लॉयमेंट रिसर्च (आईएबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से अब तक 20 से 24 वर्ष के युवाओं की रोजगार में भागीदारी दर 6.2 प्रतिशत बढ़कर 75.9 प्रतिशत हो गई है, जो पिछले कई दशकों में सबसे ऊंचे स्तर पर है. इसके अलावा, काम करने के प्रति उनका दृष्टिकोण बदला है, लेकिन यह बदलाव आलस्य का संकेत नहीं बल्कि एक बेहतर वर्क-लाइफ बैलेंस और मानसिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता को दर्शाता है.

क्या आलसी है नई पीढ़ी?

"जेनरेशन जी को काम से कोई लगाव नहीं है", इस तरह की आलोचना अक्सर सुनाई देती है. जर्मनी में हाल ही में प्रकाशित दो किताबों, "वेरत्सोगेन, वेरवाइलिष्ट, वेरलेत्स्त" (बिगड़े, नाजुक, चोटिल) और "जेनरेशन आरबाइट्सउनफेहिग " (काम करने में अक्षम पीढ़ी), में भी इसी तरह के विचार सामने आए हैं.

अगस्त 2024 में करियर और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी 'इंटेलीजेंट' के कराए गए इस सर्वे में 966 बिजनस लीडरों से बात की गई. ये लोग बड़े पदों पर हैं और भर्तियों से जुड़े फैसले लेते हैं. सर्वे से पता चला कि युवा पीढ़ी के काम और रवैये को देखकर कई कंपनियों में असंतोष बढ़ रहा है. इनमें सबसे बड़ी शिकायतें उनकी कार्यक्षमता, पेशेवर रवैये और टीम के साथ तालमेल बिठाने की कमी को लेकर हैं.

सर्वे में पाया गया कि 75 फीसदी कंपनियों ने इस साल नई पीढ़ी के प्रदर्शन से असंतोष जताया. मुख्य समस्याएं थीं - काम में पहल की कमी (50 फीसदी), खराब कम्युनिकेशन स्किल (39 फीसदी), और प्रोफेशनल व्यवहार की कमी (46 फीसदी). सर्वे में शामिल मैनेजरों ने बताया कि कई ग्रेजुएट काम की मूलभूत अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इसमें समस्या सुलझाने की क्षमता और फीडबैक को ठीक से ना ले पाने जैसी कमजोरियां भी शामिल हैं.

एक अलग तस्वीर

इंस्टिट्यूट फॉर इंप्लॉयमेंट रिसर्च की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े एक अलग तस्वीर पेश करते हैं. आईएबी के विशेषज्ञ डॉ. हेंस क्लाइंस कहते हैं, "यह कहना कि युवा काम नहीं करना चाहते, पूरी तरह से गलत होगा. हमारी रिसर्च में पाया गया है कि 2015 के बाद से इस आयु वर्ग में काम करने वाले युवाओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है."

रिपोर्ट के अनुसार, 1995 से 2015 तक 20-24 साल के युवाओं की रोजगार भागीदारी में लगातार गिरावट देखी गई थी. लेकिन 2015 के बाद इसमें तेजी से उछाल आया. 2012-2014 के दौरान यह दर 70.2 फीसदी थी, जो अब 75.9 फीसदी तक पहुंच चुकी है.

25-64 वर्ष के लोगों की भागीदारी दर भी बढ़ी है लेकिन उसमें सिर्फ 2.8 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई और यह 86.9 फीसदी तक पहुंची. यानी, युवा पीढ़ी का काम के प्रति झुकाव अपेक्षाकृत अधिक रहा है.

इसके पीछे मुख्य कारणों में से एक यह भी है कि युवा अब पढ़ाई जल्दी पूरी कर रहे हैं और कम उम्र में नौकरी करने लगते हैं. जर्मन शिक्षा प्रणाली में बोलोन्या प्रक्रिया के तहत उच्च शिक्षा की अवधि कम कर दी गई है, जिससे छात्र जल्दी ग्रेजुएट होकर कार्यक्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं.

क्या युवा कम समय तक काम कर रहे हैं?

एक आम धारणा यह भी है कि युवा अब ज्यादातर आंशिक समय या पार्ट टाइम काम करना पसंद करते हैं. हालांकि रिपोर्ट एक अलग ही तस्वीर पेश करती है. 2015 से 2023 के बीच 20-24 साल के युवाओं में कुल रोजगार दर 4.9 फीसदी बढ़कर 72 फीसदी हो गई. पूरा समय यानी फुल टाइम काम करने वालों की संख्या भी 46.8 फीसदी से बढ़कर 47.1 फीसदी हो गई. पार्ट टाइम काम करने वालों का अनुपात 20.4 फीसदी से बढ़कर 24.9 फीसदी हो गया.

रिपोर्ट कहती है कि इसका कारण यह नहीं कि युवा काम से बच रहे हैं, बल्कि वे पढ़ाई के साथ नौकरी कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, "2015 से 2023 के बीच छात्रों की रोजगार में भागीदारी दर 19.3 फीसदी बढ़ी है, जिसका मुख्य कारण महंगाई और पढ़ाई के बढ़ते खर्च हैं."

जेन जी का नया नजरिया

जेनरेशन जी यानी नई पीढ़ी को लेकर एक और आम धारणा यह है कि वे "वर्क-लाइफ बैलेंस" पर जरूरत से ज्यादा जोर देते हैं. हालांकि, विशेषज्ञ इसे सकारात्मक बदलाव मानते हैं.

श्रम मामलों के विशेषज्ञ प्रो. माइकल ग्रुने कहते हैं, "युवा अब केवल पैसे कमाने के लिए काम नहीं कर रहे, बल्कि वे संतुलित जीवन चाहते हैं. वे मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं." भारत जैसे देशों में भी यह महसूस किया गया कि जेन-जी और मिलेनियल युवाओं में तनाव बढ़ा है.

ऊर्जा कंपनी शेल ने भी पिछले साल इसी बात से जुड़ा एक अध्ययन किया था. शेल युवा अध्ययन नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में भी इस धारणा को खारिज किया गया है कि युवा लोग काम नहीं करना चाहते. अध्ययन के अनुसार युवा अब पहले की तुलना में ज्यादा बार नौकरी नहीं बदलते. उनके औसत काम के घंटे पिछली पीढ़ी के समान ही हैं. लगभग 68 फीसदी युवा मानसिक स्वास्थ्य को अपने करियर जितना ही महत्वपूर्ण मानते हैं.

कई कंपनियों को यह शिकायत रहती है कि युवा कर्मचारी पुरानी पीढ़ी की तुलना में कम वफादार होते हैं और जल्दी नौकरी बदलते हैं. हालांकि एक सर्वे में सामने आया कि युवा कर्मचारी तभी नौकरी बदलते हैं, जब उन्हें अपने मूल्यों से मेल खाने वाला कार्यस्थल नहीं मिलता.

सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी में ह्यूमन रिसोर्सेज प्रमुख अनिता श्मिट कहती हैं, "हमने देखा है कि युवा कर्मचारी ज्यादा उद्देश्यपूर्ण करियर की तलाश में रहते हैं. वे केवल वेतन नहीं देखते, बल्कि कंपनी की कार्यसंस्कृति, लचीलापन और नैतिक मूल्यों को भी ध्यान में रखते हैं."

क्या जेनरेशन जी को गलत समझा जा रहा है?

आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि युवा ना केवल मेहनती हैं, बल्कि उनकी रोजगार भागीदारी ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर है. 2015 से 2023 के बीच रोजगार दर में 6.2 फीसदी की वृद्धि, छात्रों की काम करने की प्रवृत्ति में 19.3 फीसदी की वृद्धि और मानसिक स्वास्थ्य और वर्क-लाइफ बैलेंस को अधिक महत्व देने की प्रवृत्ति इसी बात के संकेत हैं.

डॉ. हेंस क्लाइन्स निष्कर्ष में कहते हैं, "युवा पीढ़ी को आलसी कहना आंकड़ों के साथ अन्याय करना होगा. उनका दृष्टिकोण अलग हो सकता है, लेकिन वे काम से भाग नहीं रहे, बल्कि अपने करियर और जीवन के बीच एक स्वस्थ संतुलन बना रहे हैं."


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