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बनने और बनाने का सीजन

सरकारी बाबू कार्य नहीं करने के एवज में मासिक वेतन बना रहा है, तो कुछ सरकारी मुलाजिम सरकारी सेवा को चाय-पानी अर्थात् ऊपरी कमाई का साधन बना रहा है

बनने और बनाने का सीजन
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सरकारी बाबू कार्य नहीं करने के एवज में मासिक वेतन बना रहा है, तो कुछ सरकारी मुलाजिम सरकारी सेवा को चाय-पानी अर्थात् ऊपरी कमाई का साधन बना रहा है।

खरीद-फरोख्त की व्यवसायिक राजनीति के तहत राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले टिकट बेचकर कस्टमर को अपना उम्मीदवार बनाते हैं, तो चुनाव पश्चात दूसरे पार्टी के कस्टमर स्वरूप विधायक अथवा सांसद को खरीद कर सरकार बना लेती है।

अमूमन आम जन द्वारा कैलेंडर वर्ष में सभी विशेष दिवसों को हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन अप्रैल माह का प्रथम दिन मनाने की बजाय बनाने का होता है। आपको बता दें, हमारा देश शिल्पकारों और निर्माताओं का देश है।

यहांँ का प्रत्येक नागरिक मनाने और बनाने में सिद्धहस्त होता है। संसार के अन्य स्थानों पर यूं तो सिर्फ फर्स्ट अप्रैल के सुअवसर पर ही एक-दूसरे को मूर्ख बनाया जाता है या बनाने का अघोषित प्रावधान है, किंतु आर्यावर्त भूखंड पर फूल बनने और बनाने का परंपरागत महोत्सव किसी भी सीजन,किसी भी समय और किसी भी अवसर पर संपूर्ण विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में बनने वाले को मामू/गधा/फूल/अप्रैल फूल की संज्ञा दी जाती है, तो बनाने वाला स्याना/शाना/डेढ़ शाना के नाम से जाना जाता है।

इस भूखंड पर हर कोई एक-दूसरे को बनाने के लिए आतुर दिखाई देता है। दशकों से वोट की लालसा में लोक लुभावन वायदों से माननीय नेताजी जनता को मामू बनाते आ रहे हैं, जबकि महंगाई और बेरोज़गारी से प्रभावित आम जन मुफ़्त राशन, मुफ़्त पानी, मुफ्त बिजली की आस में खादी मानव की सरकार बनाती आ रही है।
एक ओर बॉस अथवा बड़े साहब अधीनस्थ कर्मचारियों को कार्यों के अतिरिक्त बोझ से गधा बनाने का प्रयास कर रहें है, तो दूसरी ओर काम नहीं करने अथवा कार्यों के ससमय निष्पादन से बचने के लिए चतुर कर्मचारी चाटुकारिता द्वारा बॉस/वरीय पदाधिकारियों को खुश करते हुए उनका हीमोग्लोबिन स्तर बढ़ा कर उन्हें ऐड़ा बनाने की जुगत में लगा हुआ है। सायबर अरेस्ट, हनी ट्रैप आदि के माध्यम से सायबर ठग लोगों को ठगी का शिकार बनाने में तल्लीन है। आन-लाइन गेम कंपनियां युवाओं को जुआरी-सह-खिलाड़ी बनाने में लगा हुआ है।पादरी,बाबा और मौलाना पापियों और पथभ्रष्ट भक्तों को अजब-गजब तकनीक से सात्विक और पवित्र बनाने में महती भूमिका निभा रहे है।

कोई ब्लॉग बना रहा है, तो कोई ठुमका लगा कर अथवा जीवन दांव पर लगा रील बना कर सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बना रहा है।
सरकारी बाबू कार्य नहीं करने के एवज में मासिक वेतन बना रहा है, तो कुछ सरकारी मुलाजिम सरकारी सेवा को चाय-पानी अर्थात् ऊपरी कमाई का साधन बना रहा है।
खरीद-फरोख्त की व्यवसायिक राजनीति के तहत राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहलेटिकट बेचकर कस्टमर को अपना उम्मीदवार बनाते हैं, तो चुनाव पश्चात दूसरे पार्टी के कस्टमर स्वरूप विधायक अथवा सांसद को खरीद कर सरकार बना लेती है।

भारतीय भूमि पर बनना और बनाना एक सतत प्रक्रिया है। इस होड़ में प्रदेश के मुखिया रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं करा सकने की स्थिति में प्रदेश के कामगारों को प्रवासी मजदूर और शिक्षित युवाओं को बेरोजगार बनाने में अतुलनीय योगदान दे रहे हैं। व्हाट्सएप्प विवि बिना प्रमाणिक तथ्यों वाले डाटा से सोशल मीडिया सेवी को कथित तौर पर विद्वान बना रहा है। साझा संकलन की आड़ में पैसे लेकर प्रकाशक अथवा कापी-पेस्ट में घोर आस्था रखने वाले संपादक साहित्यिक ज्ञान से पैदल व्यक्तियों को भी लेखक अथवा साहित्यकार बना रहे हैं।

बनने और बनाने के दौड़ तथा दौर में जनप्रतिनिधि अपनी अवैध संपत्ति बनाने में भिड़ा हुआ है, तो तथाकथित मासूम जनता रील और शार्ट वीडियो बनाने में लगी हुई है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सबल, शिक्षित और अमीर व्यक्ति ही मनाने और बनाने में सक्षम हैं। हमारा देश लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला राष्ट्र है। यहांँ गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने मत से अपनी जाति और बिरादरी का मुखिया, विधायक से लेकर सांसद बनाने का माद्दा रखता है।

कहने को तो इस भूखंड पर शासन की लोकप्रिय पद्धति लोकतंत्रात्मक है लेकिन अब्राहम लिंकन के 'लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा...' सिद्धांतों वाला नहीं अपितु शेक्सपियर के कथन 'प्रजातंत्र मूर्खो का शासन' वाला, क्योंकि वर्तमान लोकतंत्र का आधार जाति, क्षेत्र और धर्म की बुनियाद पर टिका हुआ है।

यहाँ के विवेक शील प्राणियों के सद्कृत्य एवं कारनामें ऐसे-ऐसे होते हैं कि जिसे देखकर प्राकृतिक मूर्ख भी शरमा जाए। मासूम जनता हो अथवा मोबाइल धारक मानव, वर्ष के 365 दिन छ: घंटे तक सभी जन कुछ न कुछ मनाने अथवा कुछ न कुछ बनाने में लगा भिड़ा रहता है।

मजे की बात है कि विविधताओं से भरे हमारे देश में अप्रैल फूल बनने और बनाने के लिए अप्रैल माह का इंतजार नहीं करना पड़ता है, यहां स्थिति और परिस्थिति के अनुसार मामू बनाओ महोत्सव बारहमासी होता है। इस महोत्सव को जन से जननायक द्वारा सोद्देश्य मनाया भी जाता है।
मो. 7765954969


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