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वेंकैया नायडू ने जनप्रतिनिधियों से आचरण ठीक करने का आह्वान किया

वेंकैया नायडू ने संसद एवं विधानमंडलों में आये दिन होने वाले हंगामे एवं शोरशराबे के कारण उनकी बिगड़ती हुयी छवि पर गहरी चिंता व्यक्त की

वेंकैया नायडू ने जनप्रतिनिधियों से आचरण ठीक करने का आह्वान किया
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नयी दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने संसद एवं विधानमंडलों में आये दिन होने वाले हंगामे एवं शोरशराबे के कारण उनकी बिगड़ती हुयी छवि पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जनप्रतिनिधियों से अपना आचरण ठीक करने का आह्वान किया है और उन्हें आत्मावलोकन करने की सलाह दी है तथा देश के विकास कार्यों के लिए जनता को अधिक समय देने की बात कही है। इसके अलावा उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने के लिए सर्वानुमति बनाने की भी अपील की है पर यह भी कहा है कि केवल आरक्षण से महिलाओं की समस्यायें नहीं सुलझ सकतीं बल्कि समाज की मानसिकता को बदलना बेहद जरूरी है।

नायडू ने आज संसद के केन्द्रीय कक्ष में विधायकों के दो दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया गया।

समारोह में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे। उन्होंने भी सम्मेलन को संबोधित किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि न केवल संसद में बल्कि विधानसभाओं और विधानपरिषदों में भी हंगामे एवं शोरशराबे होते रहते हैं जिससे सदन में काम काज बाधित होता रहता है।

राज्यों में तो माइक तोड़ने, कागज़ फेंकने आदि की घटनायें होती रहती हैं। पिछले दिनों राज्यसभा में पूरे एक सप्ताह काम काज ही नहीं हुआ। इसके लिए कौन दोषी है और इससे किसका नुकसान हुआ। इससे न सत्तापक्ष और न ही विपक्ष का नुकसान हुआ बल्कि पूरे देश का नुकसान हुआ। इसलिए सदन के भीतर हंगामा नहीं होना चाहिए, आपको नारेबाजी करनी है तो सदन के बाहर करें, आपको प्लेकार्ड दिखाना है तो बाहर दिखाएं। सदन के भीतर काम काज को बाधित न करें।

उन्होंने कहा कि विपक्ष कहता है कि सदन चलाना सत्तापक्ष की जिम्मेदारी है और सत्तापक्ष विपक्ष पर आरोप लगाता है। लेकिन सदन चलाने की जिम्मेदारी सबकी है। सत्तापक्ष और विपक्ष की यह संयुक्त जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि को अपना आचरण एवं व्यवहार ठीक करने की जरुरत है और उन्हें सदन में समय पर आना चाहिए तथा सदन में उपस्थित रहना चाहिए एवं दूसरे सदस्यों की भी बात सुननी चाहिए। इसके अलावा उन्हें अपने संसदीय क्षेत्रों में जाना चाहिए तथा जनता को अधिक समय देना चाहिए और उनकी बात सुननी चाहिए।

जनप्रतिनिधियों को अधिक पढ़ना चाहिए और उन्हें आत्मावलोकन करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि वह अपने 40 साल के सार्वजनिक जीवन में रात के समय सोने से पहले आत्मावलोकन जरुर करते हैं।


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