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वैक्सीन ला सकती हैं कैंसर के इलाज में बड़ा बदलाव

कैंसर के इलाज के में वैक्सीन एक बड़ी प्रगति साबित हो सकती है. दशकों के रिसर्च के बाद आखिरकार वैज्ञानिकों को सफलता हाथ लगी है और उनका मानना है कि अगले पांच सालों में और भी ऐसी वैक्सीन मिलने लगेंगी.

वैक्सीन ला सकती हैं कैंसर के इलाज में बड़ा बदलाव
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वैज्ञानिक जिन वैक्सीनों पर काम कर रहे हैं वे पारंपरिक तरीके से काम नहीं करेंगी. बल्कि ये वैक्सीन ट्यूमर को सिकोड़ने और कैंसर को वापस आने से रोकने में मदद करेंगे. इस प्रायोगिक रिसर्च में स्तन और फेफड़े के कैंसर को लक्ष्य बनाया गया. इस साल जानलेवा त्वचा के कैंसर मेलानोमा और पैंक्रियाटिक कैंसर के इलाज में भी सफलता हासिल हुई है.

वैज्ञानिक अब पहले से कहीं ज्यादा इस बात की समझ रखते हैं कि कैंसर, शरीर के इम्यून सिस्टम से कैसे अपने को छिपाये रखता है. कैंसर की वैक्सीन कैंसर सेल को ढूंढ़कर उनको मारने का काम करती हैं. कुछ नई वैक्सीन एमआरएनए का इस्तेमाल करती हैं जो बनाई गई तो कैंसर से लड़ने के लिए थीं, लेकिन इनका पहला इस्तेमाल कोविड-19 के लिए हुआ.

प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बेहतर बनाने पर जोर

डॉ नोरा डिसिस यूडब्लू मेडिसिन के कैंसर वैक्सीन सेंटर, सिएटल में काम करती हैं. उनका कहना है कि वैक्सीन को काम करने के लिए पहले उसे इम्यून सिस्टम के टी सेल को यह सिखाना पड़ेगा कि कैंसर खतरनाक है. एक बार ट्रेनिंग मिल गई तो फिर टी सेल शरीर में कहीं भी खतरे को खत्म कर सकते हैं.

इलाज के लिए वैक्सीन बनाने की प्रगति चुनौतीपूर्ण रही. पहली वैक्सीन, प्रोवेंज, को 2010 में अमेरिका में मंजूरी दी गई. यह वैक्सीन फैले हुए प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए काम में लाई गई थी. इस प्रक्रिया में मरीजों की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को लैब में प्रोसेस किया जाता है. इसके बाद उन्हें आईवी के माध्यम से शरीर में वापस डाल दिया जाता है. प्रारंभिक मूत्राशय कैंसर और उन्नत मेलानोमा के इलाज के लिए भी वैक्सीन उपलब्ध हैं.

लंग कैंसर की यह दवा मौत का खतरा आधा कर देगी

दवा बनाने वाली कंपनियां मोडेर्ना और मर्क मिलकर मेलानोमा के मरीजों के लिए व्यक्तिगत एमआरएनए वैक्सीन विकसित कर रहे हैं. इसके लिए एक बड़ा अध्ययन इसी साल शुरू होगा. ये वैक्सीन कैंसर टिश्यू में मिलने वाले सैकड़ों म्यूटेशनों पर आधारित होंगे. व्यक्तिगत वैक्सीन का यह फायदा है कि यह इम्यून सिस्टम को बेहतर रूप से ट्रेन करके कैंसर की कोशिकाओं को मार सकते हैं. लेकिन जाहिर है यह वैक्सीन महंगे होंगे.

वैक्सीन के लिए चाहिए स्वयंसेवी मरीज

वहीं यूडब्लू मेडिसिन में जो वैक्सीन विकसित किए जा रहे हैं, वे ज्यादा लोगों पर काम करेंगे, ना कि केवल एक मरीज पर. फिलहाल स्तन के प्रारंभिक और गंभीर कैंसर, फेफड़े और ओवेरियन कैंसर के लिए रिसर्च चल रहा है. अगले साल तक कुछ नतीजे आने की उम्मीद भी है.

न्यूयॉर्क के वाइल कॉर्नेल मेडिसिन के जेनेटिसिस्ट डॉ स्टीव लिपकिन का कहना है कि कैंसर से होने वाली मौतों को रोकने की कोशिश में, "वैक्सीन शायद अगली सबसे बड़ी चीज हैं." डॉक्टर लिकिन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के फंड से चल रहे एक कैंसर से बचाव विकसित करने की एक कोशिश का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका कहना है, "हम अपना जीवन इसके लिए समर्पित कर रहे हैं."

बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक की अधिकता बनी कैंसर का कारण

वैक्सीन तैयार करने में मरीज स्वंयसेवियों की भूमिका बहुत बड़ी है. 50 साल की कैथलीन जेड को फरवरी के आखिर में स्तन कैंसर का पता चला. इसके कुछ ही हफ्तों बाद वो अपने पति के साथ वर्ल्ड टूअर पर जाने वाली थीं. 46 फीट लंबे बोट शैडोफैक्स पर सवार हो कर सेंट लॉरेंस सीवे की तरफ जाने की बजाय वो अस्पताल के बिस्तर पर एक प्रायोगिक दवा की तीसरी डोज का इंतजार कर रही हैं. उन्हें वैक्सीन दी जा रही है ताकी उनका ट्यूमर सर्जरी के पहले कुछ सिकुड़ सके. जेड का कहना है, "अगर इसमें थोड़ी बहुत भी उम्मीद हो तो भी इसका मोल है." जेड को मानक इलाज भी दिया जा रहा है.


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