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हिमालय की भूकंपीय संवेदनशीलता पर चेतावनी, हर्ष गुप्ता बोले-भूकंप के साथ जीना सीखें

उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग और जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, बेंगलुरु के संयुक्त तत्वावधान में 'हिमालय की भू-गतिकीय उत्क्रांति, क्रस्टल संरचना, जलवायु, संसाधन एवं आपदा' विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया

हिमालय की भूकंपीय संवेदनशीलता पर चेतावनी, हर्ष गुप्ता बोले-भूकंप के साथ जीना सीखें
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नैनीताल सम्मेलन में विशेषज्ञों की चेतावनी: हिमालय में बड़ा भूकंप संभावित

  • हिमालय क्षेत्र अति संवेदनशील, समाज को आपदा से निपटने की तैयारी करनी होगी
  • भूकंप से बचाव की शिक्षा जरूरी, वैज्ञानिकों ने हिमालयी खतरे पर जताई चिंता
  • कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूगतिकीय सम्मेलन, आपदा प्रबंधन पर जोर

नैनीताल। उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग और जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, बेंगलुरु के संयुक्त तत्वावधान में 'हिमालय की भू-गतिकीय उत्क्रांति, क्रस्टल संरचना, जलवायु, संसाधन एवं आपदा' विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन विश्वविद्यालय के हरमिटेज भवन स्थित देवदार सभागार में हुआ, जिसमें पहले दिन देश-विदेश के प्रख्यात भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।

सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में पद्मश्री हर्ष गुप्ता ने हिमालय की भूकंपीय संवेदनशीलता पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “हिमालय एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है, जहां भूकंप का आना तय है।”

उन्होंने 2005 के मुजफ्फराबाद भूकंप (7.6 तीव्रता) में 82 हजार और 2010 के हैती भूकंप में 3 लाख 20 हजार लोगों की मृत्यु का उदाहरण देते हुए भूकंप की भयावहता को रेखांकित किया।

हर्ष गुप्ता ने जोर देकर कहा कि समाज को भूकंप के साथ जीना सीखना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूल स्तर पर बच्चों को भूकंप के कारण, प्रभाव और बचाव के उपायों की शिक्षा दी जानी चाहिए। 1950 के बाद हिमालय में 8 तीव्रता का भूकंप नहीं आया, लेकिन 2015 में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था। यदि भविष्य में 8 तीव्रता का भूकंप आता है, तो व्यापक तबाही की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीत कुमार गहलोत ने कहा कि कुमाऊं और गढ़वाल हिमालय के सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं। पिछले 300-400 वर्षों में यहां कोई बड़ा भूकंप नहीं आया, जिसके कारण खतरा बढ़ गया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि नैनीताल सहित कई क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं। विशेष रूप से भवन निर्माण में भूकंप रोधी मानकों का पालन नहीं होता।

डॉ. गहलोत ने बताया कि 20 से अधिक अत्याधुनिक उपकरणों के माध्यम से भूकंप की निरंतर निगरानी की जा रही है, ताकि जोखिम का पूर्वानुमान लगाया जा सके। उन्होंने जलवायु परिवर्तन को भी खतरे का एक प्रमुख कारक बताया और उत्तराखंड के धराली क्षेत्र को ताजा उदाहरण बताया।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डीएस. रावत ने कहा कि यह सम्मेलन भू-गतिकीय अध्ययन और आपदा प्रबंधन पर केंद्रित है। भूकंप और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह के सम्मेलन विद्यार्थियों को शोध और तकनीकी दृष्टिकोण से सशक्त करेंगे, जिससे भविष्य में जानमाल की हानि को कम किया जा सके।

सम्मेलन में विशेषज्ञों ने भूकंप से संबंधित वैज्ञानिक तथ्यों को साझा करने के साथ-साथ जागरूकता, तैयारी और तकनीकी सुदृढ़ीकरण को आपदा प्रबंधन का मूल आधार बताया।

यह सम्मेलन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देगा, बल्कि नीति निर्माताओं और आम जनता को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए जागरूक और तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।


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