नई विधानसभा के लिए सरकार की निगाह सहारा शहर पर, योगी आदित्यनाथ जल्द इस संबंध में ले सकते हैं निर्णय
उत्तर प्रदेश में नई विधानसभा के लिए उपयुक्त स्थल की दो साल से जारी तलाश अब अपने अंतिम चरण में पहुंचती दिख रही है। सरकार की निगाह अब गोमती नगर एक्सटेंशन में स्थित सहारा शहर की 245 एकड़ जमीन पर है

सहारा शहर में नई विधानसभा बनाने को लेकर योगी की मंजूरी का इंतज़ार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नई विधानसभा के लिए उपयुक्त स्थल की दो साल से जारी तलाश अब अपने अंतिम चरण में पहुंचती दिख रही है। सरकार की निगाह अब गोमती नगर एक्सटेंशन में स्थित सहारा शहर की 245 एकड़ जमीन पर है, जिसे सबसे उपयुक्त विकल्प माना जा रहा है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जल्द इस संबंध में अंतिम निर्णय ले सकते हैं।
शासन से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार ने सहारा समूह को लीज पर दिए गए सहारा शहर की भूमि का पूर्ण कब्ज़ा ले लिया है और इसे नए विधानसभा परिसर के लिए संभावित स्थल के रूप में गंभीरता से विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लिया जाएगा।”
सरकारी निर्देश पर लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने हाल ही में इस 245 एकड़ जमीन का विस्तृत सर्वेक्षण और माप पूरा कर लिया है। यह जमीन पहले सहारा इंडिया को लीज पर दी गई थी। एलडीए ने दस दिनों में पूरी प्रक्रिया पूरी कर रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट के अनुसार, कुल भूमि में से 130 एकड़ लायसेंस समझौते के तहत, 40 एकड़ हरित पट्टी के रूप में और 75 एकड़ हरित उपयोग के लिए चिह्नित है।
अधिकारियों के मुताबिक, यह भूमि स्थानिक दृष्टि से अत्यंत उपयुक्त है। यह मुख्यमंत्री आवास, गोमती नगर स्थित विधायकों के आवास परिसर और हज़रतगंज के प्रशासनिक केंद्र से लगभग समान दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र सीधे शहीद पथ और हज़रतगंज से जुड़ा है तथा मेट्रो स्टेशन और एयरपोर्ट से महज 15-20 मिनट की दूरी पर है। माना जा रहा है कि यहां नया विधानसभा भवन बनने से सत्रों के दौरान यातायात का दबाव भी काफी कम होगा।
नई विधानसभा भवन की योजना को गति 2023 में नये संसद भवन के उद्घाटन के बाद मिली। इसके बाद राज्य सरकार ने अहमदाबाद स्थित एचसीपी डिज़ाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड (जिसने नया संसद भवन तैयार किया था) को संभावित स्थलों के सुझाव के लिए नियुक्त किया।
वित्त वर्ष 2023–24 में सरकार ने इस परियोजना के लिए 50 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान भी किया था, लेकिन भूमि तय न होने के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका। शहर के बाहरी इलाकों में प्रस्तावित स्थलों को दूरी और प्रशासनिक असुविधा के कारण खारिज कर दिया गया था। नई इमारत की आवश्यकता मौजूदा विधान भवन में जगह की भारी कमी के कारण महसूस की जा रही है। सन् 1928 में निर्मित मौजूदा विधान भवन उत्तर प्रदेश की स्थापत्य विरासत का अद्भुत नमूना है।


