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शादी का झूठा वादा कर शोषण गंभीर अपराध: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा– समाज में बढ़ रही प्रवृत्ति पर रोक जरूरी

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि शुरू से ही किसी व्यक्ति का इरादा धोखा देने का हो और वह केवल अपनी हवस पूरी करने के उद्देश्य से शादी का झूठा भरोसा दिलाए, तो यह सिर्फ निजी विवाद नहीं बल्कि समाज के खिलाफ किया गया गंभीर अपराध है।

शादी का झूठा वादा कर शोषण गंभीर अपराध: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा– समाज में बढ़ रही प्रवृत्ति पर रोक जरूरी
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने और बाद में मुकर जाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे समाज के लिए बेहद गंभीर समस्या बताया है। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की मानसिकता समाज में तेजी से फैल रही है और इसे शुरुआती स्तर पर ही समाप्त किए जाने की आवश्यकता है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने औरैया निवासी प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की।

समाज के खिलाफ किया गया गंभीर अपराध

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि शुरू से ही किसी व्यक्ति का इरादा धोखा देने का हो और वह केवल अपनी हवस पूरी करने के उद्देश्य से शादी का झूठा भरोसा दिलाए, तो यह सिर्फ निजी विवाद नहीं बल्कि समाज के खिलाफ किया गया गंभीर अपराध है। ऐसे मामलों में अदालतें नरमी नहीं बरत सकतीं।

पांच साल के रिश्ते के बाद शादी से इन्कार

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी और पीड़िता के बीच करीब पांच वर्षों तक संबंध रहे। इस दौरान आरोपी ने पीड़िता को शादी का भरोसा दिलाकर उसके साथ यौन संबंध बनाए। लंबे समय तक चले इस रिश्ते के बाद अचानक आरोपी ने पीड़िता से शादी करने से साफ इन्कार कर दिया और दूसरी महिला से सगाई कर ली।

पीड़िता का आरोप है कि उसने आरोपी पर पूरी तरह भरोसा किया था और उसी विश्वास के आधार पर वह रिश्ते में बनी रही। लेकिन बाद में उसे यह अहसास हुआ कि आरोपी का उद्देश्य शुरू से ही शादी नहीं, बल्कि उसका शोषण करना था।

बचाव पक्ष की दलील: सहमति से संबंध

अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से पेश अधिवक्ता ने दलील दी कि आरोपी और पीड़िता दोनों बालिग हैं और वर्ष 2020 से सहमति से रिश्ते में साथ रह रहे थे। अधिवक्ता का कहना था कि आरोपी ने कभी भी पीड़िता से शादी का कोई स्पष्ट वादा नहीं किया। बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि केवल शादी से इन्कार कर देना अपने आप में कोई आपराधिक कृत्य नहीं है और इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। उन्होंने आरोपी को अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की।

राज्य सरकार का कड़ा विरोध

वहीं, राज्य सरकार की ओर से अग्रिम जमानत अर्जी का कड़ा विरोध किया गया। सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि मेडिकल जांच में पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए जाने के बयान की पुष्टि हुई है। इसके अलावा आरोपी पर यह भी आरोप है कि वह पीड़िता को उसके अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहा था।

सरकारी पक्ष ने दलील दी कि यह मामला सिर्फ सहमति का नहीं है, बल्कि इसमें धोखा, मानसिक उत्पीड़न और ब्लैकमेलिंग जैसे गंभीर तत्व शामिल हैं। ऐसे में आरोपी को अग्रिम जमानत देना न्यायोचित नहीं होगा।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों से स्पष्ट होता है कि आरोपी का पीड़िता के प्रति धोखे का इरादा शुरू से ही था। वह शादी का झूठा वादा कर केवल अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति कर रहा था।

न्यायालय ने कहा कि भले ही पीड़िता बालिग थी और रिश्ते के परिणामों से वाकिफ थी, लेकिन उसने आरोपी पर भरोसा किया। इस भरोसे का गलत फायदा उठाना गंभीर अपराध है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

समाज के लिए गंभीर संदेश

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि शादी का झूठा वादा कर महिलाओं का शोषण करने की प्रवृत्ति समाज में तेजी से बढ़ रही है। यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो इसके दूरगामी और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाना न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी है।

आरोपी के खिलाफ केस दर्ज

कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत थाना औरैया, जिला औरैया में मुकदमा दर्ज है। मामले की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया गया। इस फैसले के जरिए हाई कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि महिलाओं के साथ धोखे और झूठे वादों के आधार पर शोषण करने वालों को कानून के तहत कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।


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