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कन्नौज सीएमओ पर भ्रष्टाचार की जांच, डिप्टी सीएम ने दिए निर्देश

टेंडर में गड़बड़ी, वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप में कन्नौज के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. स्वदेश गुप्ता पर शिकंजा कस गया है

कन्नौज सीएमओ पर भ्रष्टाचार की जांच, डिप्टी सीएम ने दिए निर्देश
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स्वास्थ्य विभाग में गड़बड़ियों पर सख्ती, कई अधिकारियों पर कार्रवाई तय

  • टेंडर अनियमितता और निजी प्रैक्टिस पर शिकंजा, यूपी में जांच तेज
  • यूपी स्वास्थ्य विभाग में अनुशासनहीनता पर कार्रवाई की तैयारी

लखनऊ। टेंडर में गड़बड़ी, वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप में कन्नौज के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. स्वदेश गुप्ता पर शिकंजा कस गया है। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने शिकायतों के आधार पर जांच कराने का फैसला किया है।

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को डॉ. स्वदेश गुप्ता के खिलाफ शिकायतों की जांच कराने और आरोप पत्र देकर विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।

आरोप हैं कि अल्ट्रासाउण्ड सेन्टरों में अनियमित्ता को बढ़ावा दिया गया। इस संबंध में डिप्टी सीएम ने प्रमुख सचिव को आरोपों की जांच कराने व आरोप-पत्र देकर उनके विरूद्ध विभागीय कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं।

अमेठी, जगदीशपुर सीएचसी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. प्रदीप तिवारी का स्थानान्तरण मुसाफिरखाना सीएचसी पर किया गया था। इसके बावजूद डॉ. प्रदीप ने नवीन तैनाती स्थल पर कार्यभार ग्रहण नहीं किया है, उच्चादेश की अवहेलना की है। डिप्टी सीएम ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. प्रदीप के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही किये जाने के निर्देश दिए हैं।

चित्रकूट के मुख्य चिकित्साधिकारी से स्पष्टीकरण तलब किया गया है। आरोप है कि मुख्य चिकित्साधिकारी अकसर मुख्यालय से अनुपस्थित रहते हैं, उच्चादेशों का अनुपालन नहीं करते हैं और शासकीय व पदीय दायित्वों के निर्वहन में लापरवाही बरत रहे हैं। इसलिए इन पर कठोर कार्यवाही की जाएगी।

श्रावस्ती जिले के संयुक्त चिकित्सालय में तैनात डॉ. डीके गुप्ता पर महोबा जिला चिकित्सालय में कार्यरत रहते हुए गैर-कानूनी तरीके से निजी प्रैक्टिस करने और मेडिकल स्टोर संचालकों से मिलीभगत करने के आरोप लगे। जांच में ये आरोप सही पाए गए। इसके बाद उपमुख्यमंत्री ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को आदेश दिया कि डॉ. गुप्ता की तीन वेतन वृद्धियां स्थायी रूप से रोक दी जाएं और उन्हें परिनिन्दा (निंदा) का दंड दिया जाए। साथ ही, महोबा में उनकी 10 साल की तैनाती के दौरान निजी प्रैक्टिस से मिले पैसे को ब्याज सहित वसूला जाए।


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