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बैंक धोखाधड़ी मामला: सीबीआई कोर्ट ने दो एसबीआई अधिकारियों और निजी कंपनी को दोषी ठहराया, सजा सुनाई

बैंक धोखाधड़ी के एक गंभीर मामले में लखनऊ की सीबीआई विशेष अदालत (पश्चिम) ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया

बैंक धोखाधड़ी मामला: सीबीआई कोर्ट ने दो एसबीआई अधिकारियों और निजी कंपनी को दोषी ठहराया, सजा सुनाई
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लखनऊ। बैंक धोखाधड़ी के एक गंभीर मामले में लखनऊ की सीबीआई विशेष अदालत (पश्चिम) ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के दो पूर्व अधिकारियों और एक निजी कंपनी को दोषी करार दिया है। अदालत ने दोषियों को तीन वर्ष की सश्रम कैद और जुर्माने की सजा सुनाई।

दोषियों में एसबीआई बैंक के सेवानिवृत्त डिप्टी मैनेजर सुभाष चंद्र अग्रवाल, एसबीआई सीपीसी के डेस्क ऑफिसर जॉय चक्रवर्ती और एक निजी कंपनी एम/एस एडियापोलो प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल है। अदालत ने सुभाष चंद्र अग्रवाल और जॉय चक्रवर्ती को तीन साल की कैद और 30 हजार रुपए का जुर्माना लगाया, जबकि आरोपी कंपनी पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। इस मामले में चौथे आरोपी कांति कुमार सिंह, जो उक्त कंपनी के निदेशक थे, की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई, जिसके कारण उनके खिलाफ कार्रवाई समाप्त कर दी गई थी।

यह मामला वर्ष 2010 में उस वक्त सामने आया, जब भारतीय स्टेट बैंक की लखनऊ मुख्य शाखा के डीजीएम ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि एम/एस एडियापोलो प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक कांति कुमार सिंह ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर बैंक से 5.70 करोड़ रुपए का टर्म लोन झूठे और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर प्राप्त किया।

जांच में सामने आया कि इस राशि को तीन कथित फर्जी फर्मों के खातों में ट्रांसफर किया गया। बाद में आरोपियों ने इन खातों का संचालन स्वयं किया और राशि को मूल उद्देश्य से भिन्न कार्यों में उपयोग करते हुए बैंक को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया।

सीबीआई की ओर से यह मामला 26 मार्च 2010 को दर्ज किया था और विस्तृत जांच के बाद 29 नवम्बर 2011 को चार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि बैंक अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी करते हुए लोन स्वीकृत किया और निजी कंपनी को धोखाधड़ी करने में सहायता प्रदान की। लंबे ट्रायल के बाद सीबीआई अदालत ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी आरोप सिद्ध हो चुके हैं। अदालत ने कहा कि बैंक अधिकारियों का आचरण उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं था और उन्होंने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सार्वजनिक धन के साथ विश्वासघात किया।


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