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उत्तर प्रदेश : कुशीनगर के सुबोध कांत मिश्र को आईआईएएस फेलोशिप, देशभर में आठवां स्थान

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद के कसया विकासखंड के मठिया माधोपुर गांव से निकलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व शोधार्थी डॉ. सुबोधकांत मिश्र ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि प्रतिबद्धता, अध्ययन और परिश्रम से कोई भी ऊंचाई दूर नहीं है

उत्तर प्रदेश : कुशीनगर के सुबोध कांत मिश्र को आईआईएएस फेलोशिप, देशभर में आठवां स्थान
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कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद के कसया विकासखंड के मठिया माधोपुर गांव से निकलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व शोधार्थी डॉ. सुबोधकांत मिश्र ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि प्रतिबद्धता, अध्ययन और परिश्रम से कोई भी ऊंचाई दूर नहीं है। हाल ही में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला ने अपनी डेजिगनेटेड फेलो की सूची जारी की, जिसमें देशभर से चयनित 17 विद्वानों में डॉ. मिश्र को आठवां स्थान प्राप्त हुआ है। यह चयन उनके उत्कृष्ट शोध और विद्वत्ता का प्रमाण है।

डॉ. सुबोध कांत मिश्र मठिया माधोपुर गांव के सरोजकांत मिश्र के सुपुत्र हैं। एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले इस युवा विद्वान की यह उपलब्धि न केवल बीएचयू, बल्कि पूरे कुशीनगर जनपद के लिए गौरव का विषय है। उन्होंने पूर्व में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) और भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के तहत भी शोध फेलोशिप प्राप्त की है। डॉ. मिश्र ने अपने इस चयन का श्रेय अपने शोध निर्देशक प्रो. शरदिंदु कुमार तिवारी, अपने माता-पिता, परिजनों तथा गुरुजनों को दिया है। वह आगामी दो वर्षों तक शिमला स्थित आईआईएएस संस्थान में फेलो के तौर पर शोध करेंगे।

आईआईएएस का फेलोशिप कार्यक्रम उन चुनिंदा विद्वानों को दो वर्षों तक शोध के लिए संसाधन, समय और उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराता है, जिनके कार्यों में नवाचार और समाजोपयोगिता का दृष्टिकोण हो। इसमें चयन राष्ट्र स्तर पर शोध प्रतिभा की सर्वोच्च मान्यता मानी जाती है।

इस उपलब्धि पर कुशीनगर जिले के शिक्षाविदों ने डॉ. मिश्र को बधाई दी है। उनका यह चयन न केवल संस्थान और क्षेत्र की शान बढ़ाता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा की मशाल भी है।

आईआईएएस केंद्र सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त और शीर्षस्थ शोध संस्थान है, जो मानविकी, सामाजिक विज्ञान, भारतीय संस्कृति, इतिहास और दर्शन जैसे क्षेत्रों में उन्नत शोध के लिए प्रसिद्ध है। यह संस्थान शिमला स्थित पूर्व वाइसरॉय लॉज (वर्तमान राष्ट्रपति निवास) में संचालित है। इसकी स्थापना 1964 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पहल पर हुई थी।


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