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यूटरस ट्रांसप्लांट हो सकता है बांझपन का इलाजः शोध

अमेरिका में यूटरस ट्रांसप्लांट पाने वालीं महिलाओं में से आधी को प्रेग्नेंसी में सफलता मिली.

यूटरस ट्रांसप्लांट हो सकता है बांझपन का इलाजः शोध
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अमेरिका में 2016 से 2021 के बीच 33 महिलाओं को यूटरस ट्रांसप्लांट से गुजरना पड़ा. इनमें से 19 यानी लगभग 58 प्रतिशत ने कुल मिलाकर 21 बच्चों को जन्म दिया. जामा सर्जरी में छपी एक शोध रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. शोधकर्ताओं ने लिखा है, "अमेरिका में यूटरस ट्रांसप्लांट को एक क्लीनिकल वास्तविकता समझा जाना चाहिए."

जिन महिलाओं का यूटरस ट्रांसप्लांट किया गया वे कथित यूट्रिन-फैक्टर की वजह से गर्भधारण नहीं कर पा रही थीं. यानी वे या उनका यूटरस जन्म से ही नहीं था या फिर उसे किसी वजह से निकाल दिया गया था.

इस शोध को यूट्रिन-फैक्टर से पीड़ित महिलाओं के लिए बड़ी उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है. डैलस स्थित बेलर यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर की डॉ. लीजा जोहैन्सन कहती हैं कि अमेरिका में दस लाख से ज्यादा महिलाओं को यूटरस ट्रांसप्लांट का लाभ मिल सकता है.

जितनी महिलाओं को नया यूटरस लगाया गया, उनमें से 74 प्रतिशत के लिए यह ट्रांसप्लांट के एक साल से ज्यादा समय तक काम कर रहा था. इनमें से 83 प्रतिशत ने बच्चों को जन्म दिया. सभी बच्चों का जन्म सिजेरियन सेक्शन के जरिए हुआ. बच्चों के जन्म की औसत अवधि ट्रांसप्लांट के 14 महीने बाद थी. बच्चों से में आधे से ज्यादा का जन्म 36 महीने के गर्भ के बाद हुआ.

खर्च बहुत ज्यादा है

बच्चों के जन्म के बाद नए यूटरस को निकाल दिया जाता है ताकि इम्यूनोसप्रेसिव दवा का इस्तेमाल पूरी उम्र ना करना पड़े. अमेरिका में ये ऑपरेशन बेलर यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, क्लीवलैंड क्लीनिक और पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किए गए. अब तक पूरी दुनिया में यूटरस ट्रांसप्लांट के सौ से ज्यादा ऑपरेशन किये जा चुके हैं. लेकिन बहुत सी महिलाओं के लिए इस ऑपरेशन का खर्च एक बड़ी बाधा हो सकता है. डॉ. जोहैन्सन कहती हैं, "यूटरस ट्रांसप्लांट को बांझपन के इलाज में इंश्योरेंस के तहत कवर करना मूल बहस का हिस्सा है."

बेलर सेंटर की डॉ. जूलियानो टेस्टा इस शोध की सह लेखक हैं. वह कहती हैं, "यूटरस ट्रांसप्लाट बांझपन का एक प्रभावशाली इलाज है." अमेरिका में हुए कुल ऑपरेशनों में से दो तिहाई अंगदान के कारण संभव हो पाए. हालांकि कम से कम एक चौथाई मरीजों को सर्जरी के बाद मुश्किलें हुईं. नैशविल की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी ने इस शोध पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, "अगर मृत दानदाताओं की संख्या काफी नहीं है तो जीवित दानदाताओं के लिए खतरा कम करना मकसद होना चाहिए."


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