हिन्दी-मैथिली की अप्रतिम साहित्यकार अनुराधा शंकर की मां उषाकिरण खान का निधन
हिन्दी-मैथिली की अप्रतिम साहित्यकार और भारतीय पुलिस सेवा की वरिष्ठ अधिकारी अनुराधा शंकर की मां उषाकिरण खान का आज दोपहर पटना के अस्पताल में निधन हो गया

नई दिल्ली। हिन्दी-मैथिली की अप्रतिम साहित्यकार और भारतीय पुलिस सेवा की वरिष्ठ अधिकारी अनुराधा शंकर की मां उषाकिरण खान का आज दोपहर पटना के अस्पताल में निधन हो गया। वे गंभीर रूप से अस्वस्थ थीं। उषा जी का जन्म 24 अक्टूबर, 1945 को बिहार के लहेरियासराय (दरभंगा) में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से इतिहास एवं पुरातत्व में स्नातकोत्तर तथा मगध विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. करने के बाद उन्होंने लम्बे समय तक अध्यापन किया। उनके लेखन की शुरुआत 1977 से हुई।
'विवश विक्रमादित्य', 'दूबधान', 'गीली पांक', 'कासवन', 'जलधार', 'जनम अवधि', 'घर से घर तक', 'खेलत गेंद गिरे यमुना में', 'मौसम का दर्द' (कहानी संग्रह), 'अगनहिंडोला', 'सिरजनहार', 'गई झूलनी टूट', 'फागुन के बाद', 'पानी की लकीर', 'सीमान्त कथा', 'रतनारे नयन', 'गहरी नदिया नाव पुरानी' (उपन्यास); 'कहां गए मेरे उगना', 'हीरा डोम' (नाटक); 'प्रभावती-एक निष्कम्प दीप', 'मैं एक बलुआ प्रस्तर खंड' (कथेतर गद्य), 'सिय पिय कथा' (खंडकाव्य) उनकी प्रमुख हिन्दी कृतियां हैं। मैथिली में प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें हैं।
'कांचहि बांस', 'गोनू झा क्लब', 'सदति यात्रा' (कहानी संग्रह), 'अनुत्तरित प्रश्न', 'दूर्वाक्षत', 'हसीना मंजिल', 'भामती-एक अविस्मरणीय प्रेमकथा', 'पोखरि रजोखरि', 'मनमोहना रे' (उपन्यास), 'चानो दाई', 'भुसकौल बला', 'फागुन', 'एक्सरि ठाढ़ि' (नाटक)।
दोनों भाषाओं में बच्चों के लिए भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। विभिन्न रचनाओं के ओड़िया, बांग्ला, उर्दू एवं अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' (2010), 'भारत भारती' (2019) और 'प्रबोध साहित्य सम्मान' (2020) सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मान उन्हें प्रदान किए जा चुके हैं। वर्ष 2015 में उन्हें 'पद्मश्री' से विभूषित किया गया।


