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उप्र चुनाव : लोकतंत्र में जनता की चौखट पर राजा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। यूं तो देश में अब रजवाड़े नहीं रह गए हैं, लेकिन कई राजघरानों के वारिस भी चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

उप्र चुनाव : लोकतंत्र में जनता की चौखट पर राजा
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लखनऊ , 14 फरवरी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार राजघरानों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। यूं तो देश में अब रजवाड़े नहीं रह गए हैं, लेकिन कई राजघरानों के वारिस भी चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

अमेठी राजघराने के राजा संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह इस बार चुनावी मैदान में हैं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने टिकट दिया है। गरिमा सिंह राजमहल भूपति भवन पर कब्जे को लेकर विवादों में रही हैं। गरिमा सिंह को जिताने के लिए उनके बेटे-बेटी ने उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है।

राजकुमारी महिमा सिंह के साथ कुंवर अनंत विक्रम सिंह इलाके के हर घर में दस्तक भी दे रहे हैं। उनकी कोशिश हर घर तक पहुंचने की है।

अनंत विक्रम सिंह ने बातचीत के दौरान कहा कि इस बार अमेठी की जनता इंसाफ करेगी। वह कहते हैं,

"पिछले कई दशकों से यहां की जनता के साथ अन्याय होता आया है। राहुल जी यहां से सांसद हैं, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में यहां न तो उद्योग-धंधों का विकास हुआ है और न ही रोजगार परक बुनियादी सुविधाएं युवाओं को मुहैया हो पाई हैं।"

वह कहते हैं,

"अमेठी विधानसभा की जनता को इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी।"

दिलचस्प बात यह है कि अमेठी विधानसभा से ही अखिलेश सरकार के सबसे चर्चित मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार उन्हें इसी सीट से जीत हासिल हुई थी। इस बार वह समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी भी हैं।

अमेठी राजघराने के बाद बात करते हैं, प्रतापगढ़ जिले के भदरी राजघराने की। यहां के राजा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया हैं। इस इलाके में इनका खासा दबदबा माना जाता है। वर्ष 1993 से लागातार वह कुंडा से जीतते आ रहे हैं। कुंडा में आज भी उनकी ही तूती बोलती है।

सपा सरकार में हालांकि उन्हें कम महत्व का विभाग देकर उनकी हनक कम करने की कोशिश की गई, लेकिन इलाके में उनका रुतबा पहले की तरह ही है। इलाके के युवाओं में राजा भैया का खासा क्रेज है। राजा भैया के निर्दलीय नामांकन से पहले ही लोग उनके नाम की माला जप रहे हैं।

हालांकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान ही कुंडा में पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजा भैया का नाम भी सामने आया था। इस वजह से अखिलेश सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। इस हत्याकांड के बाद से ही अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों की डोर काफी नरम पड़ गई।

रायबरेली की तिलोई रियासत की भी अपनी एक अलग पहचान है। इस सियासत के राजा मयंकेश्वर सिंह महल से निकलकर वर्ष 1993 में पहली बार जनता की चौखट पर वोट मांगने पहुंचे थे। तब से पांच बार इस विधानसभा चुनाव से वह चुनाव लड़ चुके हैं और जनता ने तीन बार उनको जीत का सेहरा पहनाकर विधानसभा तक पहुंचाया है।

इस बार एक बार फिर वह चुनावी मैदान में हैं। भाजपा से सपा और फिर भाजपा में पहुंचने वाले मयंकेश्वर मैदान में हैं। उन्होंने इस बार एक नया नारा गढ़ा है। वह कहते हैं, "2017 में देखेगा जमाना, तिलोई में ऊपर चढ़ेगा खुशहाली का पैमाना।"

मयंकेश्वर ने बातचीत के दौरान कहा, "जनता को विकास चाहिए। तिलोई की जनता इस बार विकास के नाम पर वोट करेगी। इलाके में सड़क, पानी और बिजली की स्थिति ठीक करने का काम किया जाएगा।"

बहरहाल, राजघरानों के अलावा यदि उत्तर प्रदेश के कुछ नवाबों के परिवार पर नजर डालें, तो रामपुर के नवाब घराने का नाम पहले आता है। रामपुर का नूरमहल इस पुराने घराने की शान का प्रतीक माना जाता है। नवाबों का यह घराना दशकों से कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। इसी घराने की नूर बानो जहां कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंच चुकी हैं, वहीं बेटे नवाब काजिम अली खान उर्फ नावेद मियां चार वर्षो से विधायक भी हैं।

रामपुर के स्वार सीट से मैदान में उतरे नावेद के सामने इस बार चुनौती काफी कड़ी है। रामपुर के कद्दावर मंत्री आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आजम उनके सामने हैं। आजम ने भी अपने बेटे को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। वह अपनी विधानसभा से ज्यादा अपने बेटे का प्रचार करते नजर आ रहे हैं।

आजम के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे नावेद कहते हैं, "सामने चाहे कोई भी हो, स्वार की जनता को पता है कि क्या करना है। सिर्फ चुनावी मौसम में स्वार आने से यहां का विकास नहीं हो जाता। आजम ने यहां की जनता के लिए किया क्या है?"

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगरा के भदावर रियासत का भी बड़ा नाम रहा है। इस रियासत से जुड़े राजा महेंद्र अरिदमन सिंह 2007 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़कर 1989 से ही जीतते आ रहे हैं। अरिदमन सिंह इस बार साइकिल छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। इस बार उन्होंने अपनी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह को मैदान में उतारा है। पत्नी को जिताने के लिए इस बार अरिदमन सिंह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।


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