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श्रम दिवस से अंजान मजदूर

श्रम दिवस मनाया गया है। इस मौके पर जगह-जगह श्रमिकों का सम्मान किया गया है...

श्रम दिवस से अंजान मजदूर
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रायपुर। श्रम दिवस मनाया गया है। इस मौके पर जगह-जगह श्रमिकों का सम्मान किया जा रहा है लेकिन वे स्वयं इस विशेष दिवस से अंजान बने हुए हैं। आज भी वे रोज की तरह सुबह से मजदूरी करने निकल पड़े। देश की आजादी के बाद से मजदूरों के उत्थान और कल्याण के साथ ही आर्थिक दशा में सुधार के लिए कई प्रयास करने के दावे किए गए लेकिन आज भी मजदूरों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।

मजदूर दिवस पर विशेष बातचीत में कोतवाली चौक चावड़ी में खड़े होने वाले मजदूरों से प्रतिनिधि को बताया कि वे निरंतर पिछले 15 से 20 वर्षों से रोजगार की तलाश में चावड़ी आते है। किसी दिन रोजी मिलती है किसी नहीं मिलती। कोलार अभनपुर से आने वाले श्रमिक टोमन साहू का कहना था कि चावड़ी में मजदूरों के बैठने के लिये कोई जगह नहीं है। वही गांधी मैदान में टाइल्स लगा दिया गया लेकिन मजदूरों के लिये सेड नहीं लग पाया। उपर से प्रतिदिन पार्किंग ठेकेदार को 10 रुपये सायकिल पार्किंग का देना पड़ता है। दिन भर किसी दुकान, किसी पेड़ की छांव में अप्रैल-मईर् के दिन काटने पड़ते है। पीने के पानी के लिये आसपास की जगह में जाना पड़ता है। कई बार उक्त जगह के मालिक भगा देते है। वही रायपुर के मठपुरेना से आने वाले जगदीश प्रसाद का कहना था कि परिवार में दो भाई और तीन बहन है।

सभी की सादी हो गई है। मठपुरैना हाईस्कूल से 5वीं तक की शिक्षा हासिल की है आगे की शिक्षा माता-पिता ने नहीं दिलाई इसलिये पढ़ाई नहीं की. पेंटर का काम सीखकर रोजी मजदूरी कर रहा हूं। गुजारा चल जाता है। परिवार में माता पिता है और 2 एकड़ खेती है। वे मानते हैं कि मजदूरों को गांधी मैदान में पीने के पानी.बैठने के लिये शेडनुमा स्थान और माह में एक बार स्वास्थ्य कैम्प लगाकर स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए। क्योंकि कई मजदूर बीमारी की हालत में रोजी कमाने आते है। वहीं महिला श्रमिक चंद्रिका बाई और रूपमती का कहना था कि सुबह 5 बजे सोकर जल्दी उठना पड़ता है।

घर का काम करने के बाद खाना बनाकर टिफिन में लेकर मजदूरी के लिये आती हूं। दिन भर रोजी कमाने के बाद फिर घर काम बच्चों की देखभाल उपर से पति का ताना सुनना पड़ता है। यहां आने के बाद कोई मदद नहीं मिलती। धूप में खड़े रहकर ग्राहक तलाशते रहते है। कोई रोजगार देने के लिये मजदूर ढूंढ़ते हुए आता है तो सभी मजदूर दौड़ पड़ते है उक्त ग्राहक पसंद के मजदूर को काम देकर साथमें ले आता है। ऐसा हर दिन होता है। क्या करे साहब परिवार देखना पड़ता है। रोजी मजदूरी नहीं करेंगे तो पेट कैसे भरेगा।

इन महिला मजदूरों का कहना था कि रोजी देने वाले कई बार गंदी निगाह से देखकर बातचीत करते है। जिसकी कोई सुरक्षा व्यवस्था यहां पर नहीं है। क्योंकि शिकायत तो कर नहीं सकते। मजदूरों की सुनता कौन है। वहीं बुजुर्ग श्रमिक फत्तेलाल का कहना था कि नेता आते हैं 200 रुपये देते है रैली में ले जाते है।

कोई नेता आता है मैदान से पुलिस वाले भगा देते है मजदूरी नहीं मिलती। कुछ बोलो तो मारते है। ऐसे में साफ है कि मजदूर दिवस पर मजदूरों की चिंता नहीं हो रही है। समाज कल्याण विभाग के पास पंजीकृत और अपंजीकृत श्रमिक हैं योजनाएं है जिनका लाभ नहीं मिलता। पहुंच वाले फायदा उठाते है।


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