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कम कीमत में अच्छे इलाज की अनूठी पहल

सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का त्रिस्तरीय ढांचा है। सबसे पहले ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिन्हें गांव में समुदाय द्वारा चुना जाता है

कम कीमत में अच्छे इलाज की अनूठी पहल
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- बाबा मायाराम

सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का त्रिस्तरीय ढांचा है। सबसे पहले ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिन्हें गांव में समुदाय द्वारा चुना जाता है। और जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉक्टरों की टीम इन्हें प्रशिक्षित करती है। दूसरे स्तर पर उपस्वास्थ्य केन्द्र हैं, जहां वरिष्ठ कार्यकर्ता होते हैं और तीसरे स्तर पर गनियारी का अस्पताल है। जहां गंभीर व जटिल बीमारियों के लिए मरीजों को लाया जाता है। बिलासपुर जिले के कोटा-लोरमी क्षेत्र के 70 से भी अधिक गांवों में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के जरिए बीमारियों का इलाज व उनकी रोकथाम की कोशिश की जाती है।

किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए दवा और उपचार ही पर्याप्त नहीं है, उसकी रोकथाम और उससे बचाव भी जरूरी है। इसमें पौष्टिक भोजन, व्यायाम और नियमित दिनचर्या भी मददगार है। आज इस कॉलम में छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे गनियारी में चल रही पहल के बारे में चर्चा करना चाहूंगा, जिससे हम स्वास्थ्य को समग्रता में समझ सकें।

हाल ही मुझे यहां जाने और करीब से देखने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले भी मैं कई बार यहां आया हूं। गनियारी छोटा कस्बा है, लेकिन अस्पताल के कारण इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है। यहां इलाज कराने के लिए बहुत दूर से लोग आते हैं। कई लोग तो एक दिन पहले ही आ जाते हैं, जिससे अगले दिन जल्दी उनकी बारी आ जाए।

बिलासपुर जिले के कस्बे गनियारी स्थित इस संस्था का नाम जनस्वास्थ्य सहयोग है। इसकी स्थापना वर्ष 1999 में हुई। संस्था की शुरूआत देश की मौजूदा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की हालत से चिंतित होकर दिल्ली के कुछ डॉक्टरों ने की थी। यह डॉक्टर जाने-माने दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से निकले थे। यहां आने से पूर्व इन्होंने देशभर में घूमकर ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया था, जहां वे उनकी सेवाएं दे सकें। और अंतत: देश के गरीब इलाकों में से एक छत्तीसगढ़ के एक कस्बे में उन्होंने काम प्रारंभ किया।

यहां के डॉक्टर मानते हैं कि कुछ रोग कुपोषण से जुड़े हैं, इसलिए कुपोषण दूर करना जरूरी है। बीमारी को ठीक करने के लिए दवा और उपचार करना ही पर्याप्त नहीं है, उसकी रोकथाम करना भी जरूरी है। इसलिए पौष्टिक अनाजों की खेती के प्रचार-प्रसार पर ज़ोर दिया जाता है। यहां जंगली खाद्यों के महत्व को ग्रामीणों से साझा किया जाता है। छोटे बच्चों के कुपोषण दूर करने के लिए फुलवारी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। टिकाऊ आजीविका के लिए स्वयं सहायता समूहों को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान दिया गया है

इस केन्द्र की उपयोगिता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2000 में बिना किसी औपचारिकता के बाह्य रोगी विभाग ( ओपीडी) शुरू हुआ था और मात्र 3 माह के अंदर यहां प्रतिदिन आनेवाले मरीजों की संख्या 250 तक पहुंच गई थी। अब ओपीडी में रोज करीब 300 मरीजों की जांच व इलाज होता है। यह सप्ताह में तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को होती है।

यहां एक बड़ा अस्पताल है। बाल चिकित्सा देखभाल इकाई, नवजात गहन देखभाल इकाई, कीमोथैरेपी वार्ड, टीबी वार्ड, प्रसव वार्ड इत्यादि हैं। शल्य चिकित्सा कक्ष है। कुष्ठ रोग से लेकर टीबी, कैंसर का भी इलाज होता है। परिसर में रहने और भोजन की सुविधा उपलब्ध है। धर्मशाला भी है। सस्ते में खाने की थाली मिलती है। यह सुविधा मरीज के साथ उसके देखभालकर्ताओं को भी उपलब्ध है।

सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का त्रिस्तरीय ढांचा है। सबसे पहले ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिन्हें गांव में समुदाय द्वारा चुना जाता है। और जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉक्टरों की टीम इन्हें प्रशिक्षित करती है। दूसरे स्तर पर उपस्वास्थ्य केन्द्र हैं, जहां वरिष्ठ कार्यकर्ता होते हैं और तीसरे स्तर पर गनियारी का अस्पताल है। जहां गंभीर व जटिल बीमारियों के लिए मरीजों को लाया जाता है।

बिलासपुर जिले के कोटा-लोरमी क्षेत्र के 70 से भी अधिक गांवों में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के जरिए बीमारियों का इलाज व उनकी रोकथाम की कोशिश की जाती है। इस ग्रामीण सामुदायिक कार्यक्रम के तहत गांव की 70 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण किया गया है। इनमें से अधिकांश महिलाएं बिना पढ़ी-लिखी या कम पढ़ी-लिखी हैं।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता के लिए योग्यता पढ़ाई-लिखाई नहीं, सेवा भावना होती है। कई सालों से इस कार्यक्रम को संचालित करने में ऐसी अनुभवी महिलाओं का योगदान है। यह कार्यकर्ता गंभीर मरीजों को खुद अस्पताल लेकर आती हैं, और इलाज करवाती हैं। इस कार्यक्रम का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है, तीन उपस्वास्थ्य केन्द्र जो सेमरिया, शिवतराई और बम्हनी में बनाए गए हैं।

शिवतराई व बम्हनी, अचानकमार अभयारण्य के अंदर के गांव हैं। बम्हनी तक पहुंच मार्ग नहीं है। रास्ते में मनियारी नदी है, जिसमें बारिश के दिनों में बाढ़ होती है।
यहां कार्यकर्ताओं के अलावा नर्सिंग स्टॉफ होता है और सप्ताह में निर्धारित दिन क्लिनिक भी होता है, जिसमें पुराने व नए मरीजों का इलाज किया जाता है। यहां खून जांच, वजन इत्यादि लेने की भी सुविधा होती है। इसके अलावा, दाई प्रशिक्षण, गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं।
इस कार्यक्रम का एक हिस्सा उपयुक्त टेक्नालॉजी का विकास भी है। इसके तहत स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सरल-सहज तकनीक से ऐसे यंत्र तैयार किए जा रहे हैं, जो बीमारी की जांच और रोकथाम में मददगार हों।

इसी प्रकार, यहां ब्लड प्रेशर चैक करने की मशीन विकसित की गई है। प्रदूषित पानी की जांच की जा सकती है। यह एक सरल विधि है, जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति गांव के हैंडपंप के पानी की भी जांच कर सकता है। ओ.आर.एस. के पैकेट, प्रसूति किट, बच्चों के पोषण आहार तैयार किए जाते हैं। यहां साबुन बनाया जाता है और आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं।

6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए फुलवारी ( झूलाघर) कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह झूलाघर की तरह होता है, जिसमें बच्चों को खाना भी खिलाया जाता है। इसमें एक महत्वपूर्ण पहलू है कि जिन माता-पिता के बच्चे फुलवारी में जाते हैं, वे अपना दैनंदिन काम तो आराम से कर ही सकते हैं। साथ ही मजदूर अभिभावक भी अपना काम कर सकते हैं, जिससे उनकी आजीविका पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।

जन स्वास्थ्य सहयोग ने छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी, मड़िया, सांवा, कांगनी जैसे पौष्टिक अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए खेती कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जन स्वास्थ्य सहयोग के परिसर में इसकी खेती होती है, और देसी बीज तैयार करके गांवों में किसानों को वितरित किए जाते हैं।
यहां देसी बीज बैंक भी है, जिसमें 400 प्रजाति का देसी धान है। यहां से लगभग 400 किसानों को बीज वितरित किए गए हैं। बिना रासायनिक खेती की यह पहल पूरी तरह देसी बीजों पर आधारित है। पौष्टिक अनाजों को भोजन में शामिल में करने से कुछ बीमारियों की रोकथाम व बचाव भी होता है। क्योंकि इनमें रेशा ( फाइबर) की मात्रा होती है। आजकल डॉक्टर भी पौष्टिक अनाजों को भोजन में शामिल करने की सलाह देते हैं।

जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉ. पंकज तिवारी बताते हैं कि यहां न तो गैरजरूरी जांच की जाती है और न ही अनावश्यक दवाएं दी जाती हैं। यह कोशिश होती है कि एक ही दिन में रोगी की जांच, दवा और इलाज का काम पूरा हो जाए। अब इस कार्यक्रम का विस्तार हुआ है। पांच वर्ष पहले से मध्यप्रदेश के डिंडौरी, अनूपपुर और शहडोल में चल रहा है। वे आगे कहते हैं कि हमारे काम की सीमाएं हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य का काम तो सरकार की जिम्मेदारी है, इसलिए हमने उनके साथ मिलकर काम करना शुरू किया है।

कुल मिलाकर, यहां सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, ग्रामीण जांच प्रयोगशाला, ब्लड बैंक, आयुर्वेदिक दवा निर्माण, कृषि व पशु स्वास्थ्य सुधार के लिए काम किया जा रहा है। गरीबों के लिए कम कीमत पर बेहतर इलाज किया जाता है। रोगों की रोकथाम के लिए निरंतर प्रयास किया जाता है।
यानी हमें स्वास्थ्य को समग्रता में समझना होगा। इसके लिए हमें भोजन, व्यायाम, नियमित दिनचर्या इत्यादि कई चीजों का ख्याल रखना होगा। तभी हम हमारी सेहत को ठीक रख सकेंगे। अगर हम जैविक व प्राकृतिक खेती को अपनाएंगे तो हमें पौष्टिक भोजन तो मिलेगा ही, अच्छे पर्यावरण की दिशा में भी आगे बढ़ सकेंगे। लेकिन क्या हम दिशा में आगे बढ़ने के लिए सचमुच तैयार हैं?


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