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बंगाल में बंकिमचंद्र के अपमान पर घमासान, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने ममता पर साधा निशाना

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल ने पश्चिम बंगाल में महापुरुषों से जुड़े स्थानों की उपेक्षा पर नाराजगी और गहरा दुख जताया है

बंगाल में बंकिमचंद्र के अपमान पर घमासान, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने ममता पर साधा निशाना
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नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल ने पश्चिम बंगाल में महापुरुषों से जुड़े स्थानों की उपेक्षा पर नाराजगी और गहरा दुख जताया है। उन्होंने वन्देमातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी के अपमान का आरोप लगाते हुए ममता बनर्जी पर निशाना साधा है। दरअसल केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल गुरुवार को संन्यासी विद्रोह का केन्द्र रहे ऐतिहासिक देवी चौधरानी मंदिर के दर्शन के लिए गए, मगर मंदिर की हालत और भवानी पाठक और देवी चौधरानी की जली हुई प्रतिमाओं को देखकर काफी दुखी हुए।

प्रहलाद सिंह पटेल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को निशाने पर लेते हुए मंदिर के विषय में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया। गौरतलब है कि चार साल पहले यह प्राचीन मंदिर जल गया था लेकिन अब तक मंदिर के पुनर्निमाण का कार्य पूरा नहीं हो पाया है।

जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंदिर का काम पूरा होने कि मंत्रालय को गलत जानकारी दी। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसे न सिर्फ धार्मिक रूप से लोगों की भावनाओं को आहत करना बताया, बल्कि वंदे मातरम के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का भी अपमान बताया। उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र ने इसी पवित्र भूमि पर वंदे मातरम की रचना की थी और यहीं से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार किया था। प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा, "हम बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के सम्मान में देशभर से वंदे मातरम गाने वाले कलाकारों को इस पवित्र भूमि पर इकट्ठा करेंगे और एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करेंगे।"

बता दें कि पश्चिम बंगाल धार्मिक और राजनैतिक दोनों ही ²ष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। यहां का संन्यासी विद्रोह इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में क्रांतिकारी संन्यासियों के वेश में शरण लेते थे। धर्म प्रचार के आवरण में देश भक्ति का प्रचार किया जाता था। इन्हीं क्रांतिकारियों में अग्रणी थे भवानी पाठक जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के मूल निवासी थे। उन्होंने उत्तर बंगाल को अपना कर्म क्षेत्र चुना था और इस कर्म यज्ञ में उनकी सहयोगी बनीं थीं यहां की एक बागी पुत्र-वधू जो कालांतर में देवी चौधरानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।


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