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यूएन: सबसे पहले महिलाएं होती हैं प्रभावित, सुनवाई सबसे आखिर

संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से महिलाओं के जीवन, स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा के लिए और ठोस कदम उठाने की अपील की है.

यूएन: सबसे पहले महिलाएं होती हैं प्रभावित, सुनवाई सबसे आखिर
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अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि महिलाएं युद्ध और संघर्ष की पहली शिकार होती हैं, लेकिन कूटनीतिक वार्ताओं में उन्हें बहुत कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए और उपाय करने का आग्रह किया.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर यूएन विमिन की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने विश्व समुदाय से दुनिया भर में महिलाओं के जीवन, स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा के लिए और अधिक प्रयासों की जरूरत बताई.

महिलाओं की भागीदारी कम

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महिला, शांति और सुरक्षा पर एक बहस को संबोधित करते हुए बहाउस ने कहा, "हमें याद रखना चाहिए कि हमने न तो शांति वार्ता की मेज पर बैठे लोगों में कोई खास बदलाव किया है और न ही लोगों के इलाज में कोई बदलाव किया है. महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अत्याचार के अपराधियों को सजा भी नहीं दिलाई है."

बहाउस ने अफगानिस्तान में "लैंगिक भेदभाव"का हवाला देते हुए कहा कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से, महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखा गया है, विश्वविद्यालयों, पार्कों और नौकरियों से महिलाओं को हटा दिया गया है. उन्होंने कहा, "अफगानिस्तान महिलाओं के अधिकारों को प्रतिबंधित करने के सबसे चरम उदाहरणों में से एक है, लेकिन ऐसा करने वाला यह एकमात्र देश नहीं है."

"शांति ही समाधान"

उन्होंने कहा कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध में जिन 80 लाख लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था उनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं और उनके बच्चे हैं जबकि यूक्रेन में लाखों विस्थापित लोगों में लगभग 70 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं.

संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी निदेशक ने कहा कि "इस प्रक्रिया में महिलाओं को शामिल करने के साथ, शांति ही एकमात्र समाधान है."

उन्होंने विश्व नेताओं से वर्ष 2000 में अपनाए गए ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुरूप कार्य करने का आग्रह किया, जिसमें संघर्ष की रोकथाम और समाधान में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला गया.

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने भी यही भावना व्यक्त की. उन्होंने कहा, "मैं दुनिया भर में ईरान, अफगानिस्तान, यूक्रेन के रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों और दुनिया भर के कई अन्य स्थानों पर होने वाली हिंसा और उत्पीड़न की ओर ध्यान आकर्षित करूंगी."

कब पूरा होगा लैंगिक समानता का सपना

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने बहस की शुरुआत करते हुए चेतावनी दी थी कि महिलाओं के अधिकारों पर वैश्विक प्रगति "हमारी आंखों के सामने से गायब हो रही है और लैंगिक समानता के मायावी लक्ष्य को प्राप्त करने में और प्रगति हो रही है." उन्होंन यह भी कहा कि लैंगिक समानता को हासिल करने में तीन शताब्दियां लगेंगी.

उन्होंने कहा, "पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारोंका शोषण हो रहा है और उनके अधिकारों को कुचला जा रहा है."

गुटेरेश ने कहा कि दशकों में हासिल की गई प्रगति हमारी आंखों के सामने से ओझल हो रही है. इस संबंध में उन्होंने विशेष रूप से तालिबान शासित अफगानिस्तान में गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला, जहां "महिलाएं और लड़कियां सार्वजनिक जीवन से गायब हो गई हैं."

गुटेरेश ने विशेष रूप से अन्य देशों का नाम नहीं लिया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि "कई जगहों पर महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों को वापस लिया जा रहा है और कुछ देशों में स्कूल जाने वाली लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है और हमलों का सामना करने का जोखिम होता है."

साथ ही उन्होंने कहा, "सदियों की पितृसत्ता, भेदभाव और हानिकारक रूढ़ियों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक बड़ा लैंगिक अंतर पैदा किया है."

उन्होंने दुनिया भर में सरकारों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र से लिंग-केंद्रित शिक्षा प्रदान करने, कौशल प्रशिक्षण में सुधार करने और 'डिजिटल लिंग विभाजन को पाटने' में अधिक निवेश करने के लिए सामूहिक प्रयास करने का आह्वान किया.


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