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बाइडेन के भारत में 'जेनोफोबिया' वाले बयान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता का टिप्पणी से इनकार

संयुक्त राष्ट्र के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस दावे पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है

बाइडेन के भारत में जेनोफोबिया वाले बयान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता का टिप्पणी से इनकार
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संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस दावे पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था धीमी है क्योंकि यह "जेनोफोबिया" देश है यानी यह विदेशी लोगों को पसंद नहीं करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के उप प्रवक्ता फरहान हक ने शुक्रवार को कहा, "उन्होंने जो कहा, उस पर मैं टिप्पणी नहीं करूंगा।"

संयुक्त राष्ट्र की "जेनोफोबिया" की परिभाषा के बारे में संवाददाता द्वारा पूछे जाने पर, हक ने कहा कि यह "केवल शब्दकोश परिभाषा है"।

बाइडेन ने बुधवार को कहा था, "आप जानते हैं, हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ने का एक कारण क्या है -- आप और अन्य लोग। क्यों? क्योंकि हम अप्रवासियों का स्वागत करते हैं। क्यों चीन आर्थिक रूप से इतनी बुरी तरह रुका हुआ है? जापान को परेशानी क्यों हो रही है? भारत को क्यों दिक्कत हो रही है? क्योंकि वे अपने देश में अप्रवासी नहीं चाहते।"

हालांकि , कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट बाइडेन के दावे से अलग कहानी बताती है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था पिछले साल 2.5 प्रतिशत बढ़ी और इस साल 2.7 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, जबकि बाइडेन के अनुसार, भारत की "रुकी हुई" अर्थव्यवस्था अमेरिका की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ी है। पिछले साल 7.8 फीसदी और इस साल ढाई गुना तेज 6.8 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है।

चीन की अर्थव्यवस्था पिछले वर्ष 5.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि इस वर्ष 4.8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है।

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कैरिन जीन-पियरे ने बाइडेन के दावे पर सफाई देते हुए कहा कि उनकी टिप्पणी व्यापक संदर्भ में थी, वह कह रहे थे कि अप्रवासियों का देश में होना कितना महत्वपूर्ण है।

हक ने बाइडेन की टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "हम मानते हैं कि हमारे सभी सदस्य देशों को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के सभी बुनियादी मानकों को बनाए रखना चाहिए, जिसमें सभी नस्लों, सभी तरह के लोगों के साथ समान व्यवहार शामिल है। हमारा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इस दिशा में काम करते हैं।"


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