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कितनी सफल रही उज्ज्वला योजना?

केंद्र की मोदी सरकार भले ही अपने काम और अपनी योजनाओं का कितना भी बखान क्यों ना कर ले, लेकिन अकसर उसके तमाम दावे की पोल खुल ही जाती है

कितनी सफल रही उज्ज्वला योजना?
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केंद्र की मोदी सरकार भले ही अपने काम और अपनी योजनाओं का कितना भी बखान क्यों ना कर ले, लेकिन अकसर उसके तमाम दावे की पोल खुल ही जाती है,... कुछ ऐसे ही हो रहा है केंद्र की उज्ज्वला योजना के साथ... दरअसल, पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के डाटा के अनुसार, 43 प्रतिशत लाभार्थी गैस सिलेंडर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, जिससे एक बार फिर केंद्र की इस योजना पर सवाल उठ रहे है...मोदी सरकार ने तमाम दावों और उम्मीदों के साथ उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद हर मंच से इस योजना का ढिंढोरा पीटा.लेकिन इस योजना का दूसरा पहलू तो सरकार की पोल खोलता हुआ नज़र आ रहा है. दरअसल, उज्ज्वला योजना का उद्देश्य परिवारों को एलपीजी से खाना पकाने का था, जो घरेलू चूल्हे के मुकाबले बहुत कम प्रदूषण करती है. इस योजना ने ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचने में कामयाबी पाई, लेकिन एक बड़ी संख्या में गरीब लोग दोबारा एलपीजी सिलेंडर भरवा ही नही सकें. इस योजना के तहत सरकार ने 8 करोड़ से ज्यादा गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए थे. लेकिन अब भी 43 पर्सेंट महिलाएं ऐसी हैं, जो एक बार सिलेंडर के इस्तेमाल के बाद वापस चूल्हे पर लौट आई हैं. जी हां, पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के डाटा के अनुसार, 1 अप्रैल 2020 तक भारत में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 8.2 करो़ड़ से ज्यादा कनेक्शन दिए गए‌. डाटा से ये बात सामने आई है कि पिछले चार सालों में दिए गए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना कनेक्शन ने ग्रामीण भारत के कुल एलपीजी कनेक्शन में 71% की बढ़ोतरी की. हालांकि इस सफलता ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के मूल उद्देश्य को पूरा करने में मदद नहीं की. एनएसओ के सर्वे के मुताबिक, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के 43% लाभार्थी खाना पकाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. सर्वे में पता चला है कि जैसे ही लोगों की आर्थिक स्थिति में नीचे की ओर चलते हैं, वैसे ही एलपीजी का इस्तेमाल न करने वाले लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ती जाती है. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 70% लाभार्थियों में भारत के नीचे के 40% लोग है. जिससे यह साफ होता है कि यह योजना गरीब लोगों तक पहुंचने में कामयाब रही. इस योजना पर सीएजी की 2019 की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2016 से दिसंबर 2018 तक भारत के 4 बड़े महानगरों में 14.2 किलोग्राम वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमत बाजार में 500 रूपए से लेकर 837 रूपए रही. 2018 का NSO सर्वे कहता है कि भारत के 20% गरीब लोगों का महीने का औसतन प्रति व्यक्ति खर्च 1065 रुपए है. इससे ये बात साफ है 500 रुपए का सिलेंडर उसके घर के आधे खर्च के बराबर है. जिसके बाद सरकार की इस योजना पर सवाल उठना भी लाज़मी है. खैर, अब देखना होगा कि सरकार अपनी इस योजना को सफल बनाने के लिए आगे क्या कदम उठाती है.


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