दो दिन में दो भाषण, फिर भी कुछ साफ नहीं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को रात आठ बजे राष्ट्र को संबोधित किया। वीर रस से सराबोर इस संबोधन में कई ऐसे मुद्दे हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को रात आठ बजे राष्ट्र को संबोधित किया। वीर रस से सराबोर इस संबोधन में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर नए सवाल खड़े हो गए। इन सवालों को विपक्ष ने पूछना शुरु किया ही था कि मंगलवार को सुबह पहले नरेन्द्र मोदी अचानक पंजाब के आदमपुर एयरबेस पहुंच गए और फिर दोपहर तक उनका एक और वीर रस में पगा हुआ भाषण सामने आ गया। शनिवार रात शाहबाज शरीफ ने भी इसी तरह का भाषण पाकिस्तान के लोगों को सुनाया था। इन भाषणों को सुनकर न जाने क्यों चाबी वाले खिलौनों का ख्याल आता है, जिसमें चाबी भर दो तो वह तब तक चलता रहता है, जब तक चाबी पूरी तरह से उल्टी न घूम जाए। चाबी भरने वाले हाथ दिखाई नहीं देते, केवल खिलौने चलते दिखते हैं।
खैर..मंगलवार सैनिकों के बीच पहुंचकर श्री मोदी ने अच्छा ही किया। जो लोग जान हथेली पर लेकर देश की रक्षा करते हैं, उनका हौसला बढ़ाने के लिए जो किया जाए, सो कम है। आदमपुर एयरबेस से जो तस्वीरें सामने आईं, उनमें अनकहा संदेश भी पाकिस्तान के लिए था। इनमें मोदी के साथ पार्श्व में मिग-29 और एस-400 भी दिखाई दिए। जबकि पाकिस्तान का दावा था कि उसने आदमपुर में एस-400 वायुरक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया है। यहां सैनिकों को संबोधित करते हुए भी श्री मोदी ने पाकिस्तान को कहा कि निर्दोषों का खून बहाने का एक ही अंजाम है, महाविनाश। अभी सैन्य कार्रवाई सिर्फ स्थगित की है, फिर से दुस्साहस किया तो मुंहतोड़ जवाब देंगे। कुछ ऐसी ही बात सोमवार के संबोधन में भी थी।
तब श्री मोदी ने कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत का सैन्य ऑपरेशन अभी सिफ़र् स्थगित हुआ है. आने वाले दिनों में पाकिस्तान के हर कदम को इस कसौटी पर मापा जाएगा कि वो क्या रवैया अपनाता है। अब सवाल उठता है कि अगर अब भी वार-प्रतिवार की आशंका है, तो फिर युद्धविराम की बात कहां से आई, क्यों श्री मोदी इसका खुलकर खंडन नहीं कर रहे। क्या ये समय शाब्दिक जाल फैलाने का है कि सैन्य आपरेशन अभी स्थगित हुआ है। इसका क्या मतलब है, प्रधानमंत्री साफ-साफ बतलाएं कि अभी हम युद्ध में हैं या नहीं हैं। हम पाकिस्तान के अगले कदम या उसके दुस्साहस का इंतजार क्यों कर रहे हैं। क्या पहलगाम के बाद भी हमारे जो जवान शहीद हुए, बेकसूर नागरिक मारे गए, उनकी जान की कोई कीमत नहीं है। अगर पाकिस्तान की तरफ से भी युद्धविराम की घोषणा के बाद हमारे सीमांत इलाकों में ड्रोन मंडराते हुए देखे गए हैं, तो क्या इसे पाकिस्तान का दुस्साहस ही नहीं समझा जाना चाहिए। इस संकट की घड़ी में भी अगर प्रधानमंत्री साफगोई से सारी बातें नहीं करेंगे, तो फिर कब करेंगे।
जब नोटबंदी या लॉकडाउन का ऐलान किया गया था, तब भी कई गोल-मोल बातें और दावे सरकार ने किए थे। उन पर भी विपक्ष ने सवाल उठाए लेकिन किसी का जवाब देना जरूरी नहीं समझा गया। चलिए वो देश के आंतरिक मामले थे और जनता ने कुछ अच्छा होने की उम्मीद में तब के कष्टों को सहन कर लिया। लेकिन इस बार तो आम जनता की सुरक्षा और देश की प्रतिष्ठा दोनों दांव पर लगी है।
अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के संदर्भ में मनमाने बयान दे रहे हैं। युद्ध विराम के ऐलान के बाद नए बयान में डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि दोनों देशों ने अमेरिका के साथ व्यापार की वजह से ये संघर्ष विराम किया है। पाकिस्तान अपनी जाने कि उसने किस दबाव में संघर्ष विराम मंजूर किया, लेकिन भारत इसके लिए राजी क्यों हुआ, ये बात नरेन्द्र मोदी को अपने संबोधन में बतानी चाहिए थी। क्या ट्रंप अब भारत के आधिकारिक प्रवक्ता हो गए हैं कि वो जो बयान देंगे, दुनिया उसे भारत का बयान मानेगी, क्योंकि ट्रंप की किसी बात को अब तक श्री मोदी ने या उनकी सरकार ने खारिज नहीं किया है।
सोमवार के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने एक गंभीर बात कही कि 'भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा। परमाणु ब्लैकमेल के तहत चलने वाले आतंकी ढांचे भारत के निशाने पर होंगे।c ध्यान रहे कि ब्लैकमेल एक गंभीर शब्द और बड़ा आरोप है, खासकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में। श्री मोदी क्या यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत को आणविक युद्ध की धमकी देकर ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई, ये कोशिश पाकिस्तान की तरफ से हुई या चीन या अमेरिका की तरफ से, देश को यह बताना चाहिए।
क्या एकदम से युद्धविराम के लिए सहमत होने के पीछे ब्लैकमेल जैसी कोई बात थी। अगर ऐसा है तो कम से कम विपक्ष को इस बारे में सूचित किया जाना था। जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकती थी तो शनिवार से लेकर अब तक सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाई गई। सभी दलों को नहीं बुलाना तो कम से कम दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्षों के साथ प्रधानमंत्री को बैठक करनी चाहिए थी ताकि इस तथाकथित ब्लैकमेलिंग का जवाब दिया जाए।
पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर, युद्धविराम और राष्ट्र के नाम संबोधन तक के पूरे घटनाक्रम में कई सारे सवाल हैं जिन पर प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए। सोमवार को प्रधानमंत्री ने कहा कि पहलगाम हमला मेरे लिए व्यक्तिगत दर्द था। देश का मुखिया होने के नाते वे ऐसा कह सकते हैं लेकिन याद रखें कि पहलगाम के 26 पीड़ितों से लेकर उसके बाद पाकिस्तान की तरफ से किए गए हमलों में मारे गए लोगों के परिवार असल में व्यक्तिगत दुख झेल रहे हैं। यह वक्त उनके दुखों को कम करने का है, राजनीति में अपने अंक बढ़ाने का नहीं।


