Top
Begin typing your search above and press return to search.

आमिर पठान के लिए दो मिनट का मौन!

लातूर, सूबा महाराष्ट्र के मराठवाडा इलाके के शहर- जो अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए मशहूर है- की जिन्दगी अब बदस्तूर सामान्य हो गयी होगी

आमिर पठान के लिए दो मिनट का मौन!
X

- सुभाष गाताडे

वैसे पूरे मुल्क में पसर रहे इस उन्माद में क्या कभी कोई कमी आएगी? ताकि किसी भी सामाजिक या धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए इस बात की गारंटी होगी कि वह भी इस गणतंत्र का बराबर का नागरिक है, यह मसला अब विचारणीय हो चला है। फिलवक्त इस बात की भविष्यवाणी मुश्किल जान पड़ती है! यह कह सकते हैं कि समूचे समाज को एक अजीब किस्म की जड़ता, संज्ञाहीनता ने जकड़ लिया है, गोया समूचा समाज सुन्न हो चला है।

लातूर, सूबा महाराष्ट्र के मराठवाडा इलाके के शहर- जो अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए मशहूर है- की जिन्दगी अब बदस्तूर सामान्य हो गयी होगी।
बमुश्किल दो सप्ताह पहले शहर के एक हिस्से में कुछ अधिक सरगर्मी थी, जिसकी फौरी वजह एक टेलिकॉम कम्पनी के एक वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी द्वारा अचानक की गयी खुदकुशी थी, गौरतलब था कि इस वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी ने कथित तौर पर रोड रेज की एक घटना के बाद- जिसमें उसे सांप्रदायिक गालियों का शिकार होना पड़ा था- दूसरे दिन खुदकुशी की थी।

हुआ यही था कि एक कारचालक जो कथित तौर पर पत्रकार था उसकी गाड़ी एक टू व्हीलर वाले से टकरा गयी। आम तौर पर जैसे होता है कारचालक उतरा और उसने उस मसले को वही 'निपटाना' चाहा और दुपहिया चालक को धमकाने की कोशिश की। सड़क पर बढ़ते इस विवाद में जब उसे पता चला कि दुपहिया चालक आमिर पठान नामक शख्स है तो वह कथित तौर पर अधिक आक्रामक हो चला और उसने उसे यह तक पूछ डाला कि क्या वह 'पाकिस्तानी है या कश्मीरी है'। कारचालक इतना दबंग था कि वह उस पूरे विवाद को रेकार्ड भी करता रहा और उसने दुपहिया चालक को यह कहते हुए भी धमकाया कि वह इस पूरे विवाद को इंटरनेट पर अपलोड कर देगा। टेलिकॉम कम्पनी का वह उच्च अधिकारी इस पूरे प्रसंग से इतना हताश हो चला कि डिप्रेशन में चला गया और इस बात की डर से कि उसे सड़क पर प्रताड़ित करने का विडियो आनलाइन हो जाएगा, उसने दूसरे दिन शाम को आत्महत्या की।

जाहिरा तौर पर सड़कों पर होने वाली रोजमर्रा की तमाम घटनाओं की तरह जहां लोगों की असभ्यता और दबंगई खुल कर सामने आती है , यह घटना भी भुला दी जाती लेकिन सड़क पर सांप्रदायिक गालीगलौज और प्रताड़ित करने के इस प्रसंग का एक किस्म से अप्रत्यक्ष गवाह आमिर की पत्नी बनी, जब धाराशिव के प्राइवेट बैंक में कार्यरत आमिर की पत्नी समरीन ने इस घटना के दौरान ही उसे कॉल किया था, यह बताने के लिए कि वह अगले संविधान चैक पर खड़ी है और दोनों वहीं से साथ घर चलेंगे। फोन पर इसी संभाषण के दौरान उसने एक अजनबी आवाज़ को सुना था जो उसके पति को धमका रहा था.
आमिर पठान की मृत्यु हुए दो सप्ताह हो गए है।

इस पूरे प्रसंग में आखिरी बात यही सुनने को मिली थी कि समरीन ने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी है, जिसमें प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति का नाम और गाड़ी नम्बर में लिखा है, मगर पुलिस ने एक तरह से बिना किसी व्यक्ति का नाम दर्ज किए रिपोर्ट दर्ज की है। उसका यह भी कहना है कि घटना को लेकर कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला है कि फलां व्यक्ति के चलते मुझे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा और घटना का कोई गवाह भी सामने नहीं आया है।

इस बात की भविष्यवाणी करने मे कोई मुश्किल नहीं होगी कि समरीन के सामने न्याय पाने का एक बेहद लम्बा और लगभग अकेला रास्ता पड़ा है, क्या उसे न्याय मिल सकेगा?

गौरतलब है कि आमिर पठान को सड़क पर सरेआम जिस प्रताड़ना से गुजरना पड़ा भारत की सड़कों की आम परिघटना हो चली है, जहां अक्सर हम यह भी सुनते हैं कि ऐसे घटना की परिणति आपसी मारपीट यहां तक कि कई बार हत्या तक पहुंचती है। आमिर के साथ उसकी धार्मिक पहचान का पहलू भी जुड़ गया।

ढेर सारी रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं कि 21 वीं सदी की इस तीसरी दहाई में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हिन्दोस्तां के अंदर एक सम्मान का जीवन जीना और समान नागरिक के तौर पर अपनी जिन्दगी बिताना अधिकाधिक मुश्किल हो चला है। विश्लेषकों ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि सत्ता के उच्चपदस्थ लोग भी अपने वक्तव्यों और मौन से ऐसी कार्रवाइयों को हवा देते हैं। कुछ साल पहले सत्ता पर बैठे ऐसे ही व्यक्तियों द्वारा उन्हें 'कपड़ों से पहचाने जाने वाले', 'चार-चार शादियां करने वाले' के तौर पर लांछन लगाते सुना गया था।

आमिर के साथ जिस दिन यह हादसा हुआ, वह वही दौर था जब पहलगाम आतंकी हमला हो चुका था और देश भर से यह ख़बरें भी आ रही थीं कि किस तरह भारत में कश्मीरियों और मुसलमानों पर हमले की घटनाओं में उछाल आया था।

विभिन्न नागरिक अधिकार संगठनों ने ऐसी घटनाओं का बाकायदा दस्तावेजीकरण भी किया है और ऐसे मामलों की सूची तक पेश की है कि किस तरह देशभर में नफरती हमले हुए, लोगों को मारा पीटा गया, कहीं-कही हत्याएं भी हुई।

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन आफ सिविल राइटस ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे '184 मामलों की सूची बनायी है जहां देश भर में मुस्लिमों के खिलाफ नफरती हिंसा हुई, उन्होंने 22 अप्रैल 2025 से 8 मई 2025 में मीडिया में प्रकाशित ऐसी रिपोर्टों को अपना आधार बनाया है। उनके मुताबिक ऐसी घटनाओं में 84 घटनाएं नफरती वक्तव्यों की थी, 39 हमले की घटनाएं थी, 19 घटनाओं में अल्पसंख्यकों के मकानों या दुकानों को आग के हवाले किया गया और हत्या की तीन घटनाएं थीं।

हम यह भी पाते हैं कि 'पहलगाम की प्रतिक्रिया' के नाम पर मुसलमानों पर ऐसे व्यक्तिगत, स्वत:स्फूर्त हमलों के अलावा, धर्मांध ताकतों ने- जो हिन्दुत्व वर्चस्ववादी संगठनों से ताल्लुक रखती हैं या उनके निर्देश पर काम करती है , उन्होंने देश भर ऐसे कारनामे किए ताकि देश का सांप्रदायिक माहौल और बिगड़ जाए, आपसी दंगे शुरू हो, गनीमत यही थी कि आम लोग उनके बहकावे में नहीं आए।

आमिर पठान की मौत की ख़बर जल्द ही भुला दी जाएगी।
'चिर बैरी पाकिस्तान' के साथ युद्ध के अधबीच में ही समाप्त हो जाने और जिसके लिए राष्ट्रपति ट्रम्प की कथित मध्यस्थता की ख़बर से आहत प्रबुद्ध समाज के एक बड़े हिस्से के लिए लातूर की यह अदद मौत क्या मायने रखती है?

मुमकिन है कि नागरिक अधिकारों के प्रेमी चंद लोग इस मौत को लेकर अभी भी शोकमग्न हो तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिए उसे दस्तावेजीकृत कर दें।
धाराशिव के प्राइवेट बैंक में कार्यरत समरिन को न्याय पाने की लड़ाई में नैतिक बल प्रदान कर दें।

वैसे पूरे मुल्क में पसर रहे इस उन्माद में क्या कभी कोई कमी आएगी? ताकि किसी भी सामाजिक या धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए इस बात की गारंटी होगी कि वह भी इस गणतंत्र का बराबर का नागरिक है, यह मसला अब विचारणीय हो चला है। फिलवक्त इस बात की भविष्यवाणी मुश्किल जान पड़ती है!
यह कह सकते हैं कि समूचे समाज को एक अजीब किस्म की जड़ता, संज्ञाहीनता ने जकड़ लिया है, गोया समूचा समाज सुन्न हो चला है।

हमारे हुक्मरान अक्सर बताते रहते हैं कि यह एक नया भारत है, लेकिन क्या पूछा जा सकता है कि क्या इसी भारत का हमें इन्तज़ार था, जहां संविधान की कसमें खाकर पद संभाले लोग मुल्क के नागरिकों के एक हिस्से को घुसपैठिया कहते हैं या दीमक के तौर पर सम्बोधित करते हैं। क्या यह कहना मुनासिब होगा कि उम्मीदों का हमारा गणतंत्र रफता-रफता डर के गणतंत्र में तब्दील हो चला है।

हम चाहें ना चाहें इतिहास ने हमारे कंधे पर एक बड़ी जिम्मेदारी डाली है। आईंदा किसी आमिर पठान को अपनी जान नाहक ना देनी पड़े इसलिए यही चुनौती हमारे सामने है कि हम हमारे गणतंत्र को नए सिरे से उम्मीदों के गणतंत्र में रूपांतरित करने के लिए प्रतिबद्ध हो।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it