Top
Begin typing your search above and press return to search.

लोकतंत्र को चुप कराने की कोशिश

भाजपा पर विपक्ष कई बार ये आरोप लगा चुका है कि मीडिया की आवाज़ को दबाया जा रहा है

लोकतंत्र को चुप कराने की कोशिश
X

भाजपा पर विपक्ष कई बार ये आरोप लगा चुका है कि मीडिया की आवाज़ को दबाया जा रहा है। मंगलवार को इस आरोप का एक जीवंत प्रसारण देखने मिल गया। टाइम्स नाउ चैनल की एक पत्रकार ने भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह से सीधे-सीधे कुछ सवाल किए। भाजपा सांसद उन सवालों के आधे-अधूरे जवाब देते रहे, कई बार सवालों को टालने की कोशिश की, लेकिन महिला पत्रकार ने फिर भी अपना कार्य जारी रखा यानी वे सवाल पूछती रहीं तो भाजपा सांसद ने कुछ तेज आवाज़ में कहा चुप। इस दबंगई भरे चुप के फरमान के बावजूद महिला पत्रकार रुकी नहीं, ब्रजभूषण शरण सिंह के गाड़ी में बैठने तक सवाल करती रहीं, तो सांसद महोदय ने गाड़ी का दरवाजा बंद किया, खिड़की के शीशे चढ़ाए, बिना यह देखे कि उसमें महिला पत्रकार का हाथ फंस रहा है और माइक गिर रहा है। यह सारा घटनाक्रम कैमरे में रिकार्ड हुआ है, इसलिए इसमें कहीं फोरेंसिक जांच की भी जरूरत नहीं दिख रही कि वीडियो की सत्यता की पुष्टि की जाए। जो कुछ घटा, कैमरे के सामने घटा और सब कुछ रिकार्ड हो चुका है।

करीब 3 साढ़े 3 दशक पहले एक फिल्म आई थी कर्मा, जिसमें डा. डैंग नाम का खलनायक बने अनुपम खेर का एक संवाद काफी चर्चित हुआ था कि इस थप्पड़ की गूंज तुम्हें मरते दम तक सुनाई देगी जेलर। ऐसा लग रहा है कि भाजपा सांसद के चुप की गूंज भी राजनीति में लंबे वक्त तक सुनाई देने वाली है। यह चुप किसी एक पत्रकार के लिए नहीं, समूचे मीडिया और लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के लिए चुनौती बन गया है। भवानीप्रसाद मिश्र की कविता है-
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए-से,
ऊंघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊंचे और नीचे
चुप खड़े हैं आंख भींचे;
घास चुप है, कास चुप है
मूक साल, पलाश चुप है।

आज हम मानो लोकतंत्र को ऐसे ही किसी घने जंगल में तलाश रहे हैं, जहां जनता अब तक नींद में डूबी, अनमनी सी ऊंघ रही है। और लोकतंत्र के स्वघोषित पहरुए आंखें भींचे चुपचाप खड़े हैं। सत्ता अपने सामने अन्याय, अत्याचार, अधर्म देखकर चुप है। प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी टूटने का इंतजार देश कर रहा है कि कब वे मणिपुर में चल रही हिंसा पर कुछ कहेंगे। कब वे टमाटर के आकाश छू रहे दामों पर राहत की घोषणा करेंगे। कब श्री मोदी पहलवान बेटियों की इंसाफ की लड़ाई में अपने समर्थन की आवाज़ मिलाएंगे। और कब वे अपनी पार्टी के सांसद से कहेंगे कि आपके ऊपर आरोप है, तो आप अदालत का फैसला आने तक नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दें। जब लखीमपुर खीरी कांड हुआ था, तब भी प्रधानमंत्री मोदी से ऐसी ही अपेक्षा की गई थी।

जनता तब भी निराश हुई थी। क्योंकि श्री मोदी ने किसान आंदोलन और किसानों को कुचलने के अपराध के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी भी तो यह कहने के लिए मेरी तपस्या में कमी रह गई, जो किसानों को समझा नहीं पाए। उनके वक्तव्य में किसानों की पीड़ा कहीं नहीं झलकी थी। अब ऐसा ही कुछ पहलवानों के साथ हो रहा है। इन्हीं महिला पहलवानों पर श्री मोदी ने गर्व किया था कि वे देश के लिए पदक जीत कर लाई हैं। अतीत में प्रधानमंत्री ने क्रिकेट खिलाड़ी शिखर धवन की अंगूठे की चोट पर ट्वीट किया था कि आपकी कमी खलेगी, जल्दी स्वस्थ हों। जब प्रधानमंत्री को एक क्रिकेटर की चोट पर इतनी चिंता हो सकती है, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को जीत दिलाने वाली महिला पहलवानों के टूटते हौसले की फिक्रक्यों नहीं हो रही।

जनवरी से लेकर अब तक कितना कुछ सहन कर लिया है महिला पहलवानों ने। पहले भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की, तो मामला जांच समिति को सौंप दिया गया। वहां से इंसाफ की कोई सूरत नजर नहीं आई तो जंतर-मंतर पर धरना दिया, वहां से उन्हें खदेड़ दिया गया, तो उन्होंने संसद की चौखट तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में ही उन्हें बलपूर्वक रोक लिया गया। गिरफ्तारी होनी थी आरोपी की, लेकिन महिला पहलवानों को गिरफ्तार कर लिया गया। पहलवानों ने अपने पदकों को गंगा में बहाना चाहा, तो उन्हें किसानों ने समझा-बुझा कर रोक लिया, हालांकि सरकार तब भी चुप ही रही। अब मामला अदालत में है, आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, कई महिला पहलवानों ने अपने बयान दर्ज करवाए हैं और दिल्ली पुलिस ने अपने आरोपपत्र में कहा है कि अभी तक की जांच के आधार पर सिंह पर यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और पीछा करने के 'अपराधों के लिए मुक़दमा चलाया जा सकता है और दंडित किया जा सकता है।' इस आरोपपत्र में कहा गया है कि एक मामले में ब्रजभूषण सिंह ने 'कई बार और लगातार' उत्पीड़न किया।

महिला पत्रकार इस आरोपपत्र के बाद ही ब्रजभूषण शरण सिंह से सवाल कर रही थीं कि क्या ये आरोप सही हैं। उन्होंने आरोपी भाजपा सांसद से इस्तीफे को लेकर भी सवाल किया। सवालों से नाराज सांसद महोदय ने सत्ता की रसूख वाला चुप पूरी तल्खी के साथ कहा। क्योंकि इसी चुप के इर्द-गिर्द ही सारी सत्ता चल रही है। शासकों का रवैया सबके सामने जाहिर हो गया है। वे चुप रहेंगे और चुप कराते रहेंगे। ब्रजभूषण शरण सिंह से पहले बहुत से दूसरे भाजपा सांसदों, मंत्रियों और नेताओं ने ऐसे ही सवाल पूछने वालों पर नाराजगी जाहिर की है। आत्मसम्मान रखने वाले पत्रकार इस नाराजगी पर भी सवाल उठाने की हिम्मत दिखाते रहे हैं। लेकिन कई मीडिया घराने सत्ता के आगे नतमस्तक होकर दिन-रात जी-हुजूरी में लगे रहते हैं। ऐसे घरानों में काम करने वाले पत्रकारों के सामने अब दो ही विकल्प बच गए हैं, वे या तो आत्मसम्मान और अपने कर्तव्य को किनारे रखकर किसी के चुप कहने से पहले ही मुंह पर उंगली रखकर सत्ता की कक्षा में बैठ जाएं या फिर चुप के फरमान पर और पुरजोर तरीके से अपने सवाल सत्ता के सामने रखें। तोप का मुकाबला कलम से हो, तो हिम्मत जुटानी ही पड़ती है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it