Top
Begin typing your search above and press return to search.

कला के जरिए सत्ता से सच बोला जाता है

इतिहास गवाह है कि कलाकार, लेखक तथा बुद्धिजीवी सामाजिक परिवर्तन को संगठित करने और दमनकारी शासकों व राज्यों का तख्ता पलटने में अग्रणी रहे हैं

कला के जरिए सत्ता से सच बोला जाता है
X

- रश्मि देवी साहनी

कलाकार और बुद्धिजीवी कला के सही उद्देश्य को पहचानेंगे तथा संस्थान को भारत के नागरिकों के प्रति उत्तरदायी ठहराएंगे और कला को सत्ता के सामने सच बोलने के लिए प्रेरित करेंगे। कला को व्यावसायिक साम्राज्यों द्वारा वित्त पोषित किया जा सकता है लेकिन जब विचाराधीन कंपनी लोकतंत्र विरोधी ताकतों की करीबी सहयोगी है तो कलाकारों सहित सभी लोगों द्वारा उसका प्रतिरोध किया जाना चाहिए।

इतिहास गवाह है कि कलाकार, लेखक तथा बुद्धिजीवी सामाजिक परिवर्तन को संगठित करने और दमनकारी शासकों व राज्यों का तख्ता पलटने में अग्रणी रहे हैं। दमनकारी प्रणालियों को उजागर करने व जनता की राय को आकार देने की क्षमता के कारण अत्याचारी शासकों ने व्यापारियों या बैंकरों की तुलना में अधिक से अधिक बुद्धिजीवियों को सलाखों के पीछे डाला है। बुद्धिजीवियों के व्यवसायों की यह एक अनूठी विशेषता रही है जो रचनात्मकता और कला, काम तथा जीवन के बीच एकात्मक निरंतरता को जोड़ने की इच्छा से निर्देशित हो कर काम करते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की सरकार और उसकी विदेश नीति के विरोध में 1969 में जीन टोचे और जॉन हेंड्रिक्स ने न्यूयॉर्क स्थित गुरिल्ला आर्ट एक्शन ग्रुप (जीएएजी) की स्थापना की। हेंड्रिक्स और टोचे ने पैरोडी के माध्यम से निक्सन सरकार की विकृत और परस्पर विरोधी व्यवहारों का विरोध करके कला और समाज की प्रणालियों को चुनौती दी, उन तथ्यों की विडंबना को उजागर किया जिनकी सरकार ने निंदा की। 1967 में कैलिफोर्निया में छात्रों ह्यूई न्यूटन और बॉबी सीले द्वारा स्थापित ब्लैक पैंथर पार्टी ने अपना दस सूत्रीय कार्यक्रम 'व्हाट वी वॉन्ट नाउ' प्रस्तुत किया। इसमें निम्नलिखित मांगें शामिल थीं- 'हम अपने लोगों के लिए रोजगार चाहते हैं। हम अपने काले समुदाय के पूंजीपतियों द्वारा की जा रही डकैती का अंत चाहते हैं। हम मनुष्यों के रहने लायक आकर्षक आवास चाहते हैं। हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जो हमें हमारा सच्चा इतिहास सिखाए और इस पतनशील अमेरिकी समाज की प्रकृति को उजागर करे। हम पुलिस की बर्बरता और काले लोगों की हत्या की वारदातों को तत्काल समाप्त करना चाहते हैं। हम जमीन, रोटी, आवास, शिक्षा, कपड़ा, न्याय और शांति चाहते हैं।' इसी दौरान नामदेव ढसाल, जेबी पवार और राजा ढाले जैसे लेखकों के नेतृत्व में मुंबई (तब बॉम्बे) में दलित पैंथर आंदोलन के माध्यम से मराठी में प्रतिवादी साहित्य की एक कट्टरपंथी शैली से जाति उत्पीड़न के लंबे इतिहास को चुनौती दे रहे थे।

जीएएजी ने 30 अक्टूबर 1969 को आधुनिक कला संग्रहालय (एमओएमए) को एक घोषणापत्र दिया। उन्होंने पहली मांग यह की कि एमओएमए अपने कला संग्रह से कुछ पेंटिग्स बेच कर 10 लाख डॉलर इक_ा करे और इस आय को अमेरिका में सभी जातियों के गरीब व्यक्तियों को दान करे। इसमें लिखा गया था- 'कलाकार के रूप में हम महसूस करते हैं कि सामाजिक संकट के इस समय में तत्काल सामाजिक आवश्यकता को पूरा करने से कला का इससे बेहतर कोई उपयोग नहीं हो सकता है। कला ने हमेशा एक अभिजात वर्ग की सेवा की है इसलिए कला अभिजात वर्ग द्वारा गरीबों के उत्पीड़न का हिस्सा रहा है अत: यह दान गरीबों के लिए क्षतिपूर्ति का एक रूप है।'
अगले दिन न्यूयॉर्क के कला जगत के कई सदस्यों की उपस्थिति में हेंड्रिक्स और टोचे ने कला के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करने वाले रूसी पेंटर कासिमिर मालेविच की पेंटिंग 'व्हाइट ऑन व्हाइट' को हटाकर उसकी जगह एमओएमए में अपने घोषणापत्र की प्रति लगा दी। इसके साथ ही जीएएजी ने अमेरिकी उद्योगपति रॉकफेलर्स से एमओएमए ट्रस्ट से इस्तीफे की मांग की और कहा कि वियतनाम युद्ध में संस्था के मिशन के साथ रॉकफेलर्स के आर्थिक हित मेल नहीं खाते थे।

भारत में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में ये ऐतिहासिक घटनाएं याद रखने के लिए उपयोगी हैं- 31 मार्च, 2023 को मुंबई में बांद्रा-कुर्ला व्यापार केंद्र में नीता मुकेश अंबानी सांस्कृतिक केंद्र (एनएमएसीसी) का उद्घाटन और इसे 'कला, कलाकारों और दर्शकों का घर' के रूप में वर्णित करना।

एनएमएसीसी में अलग-अलग क्षमता के कई थिएटर शामिल हैं जिनमें सबसे बड़ा थिएटर 2000 सीटों वाला और 8400 स्वारोवस्की हीरे से जड़ा हुआ है। समकालीन कला शो के लिए 16,000 वर्ग फुट की चार मंजिला आर्ट गैलरी बनाई गई है जिसमें से पहली गैलरी संगम कॉन्फ्लुएंस के अध्यक्ष मुंबई के कवि और क्यूरेटर रंजीत होसकोटे तथा न्यूयॉर्क स्थित कला डीलर जेफरी डिच थे। कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी ने बॉलीवुड और हॉलीवुड की विभिन्न हस्तियों की मौजूदगी में इसका उद्घाटन किया था। इस शो में पांच क्षेत्रीय और पांच अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की कलाओं के प्रदर्शन शामिल हैं। ये लोग विभिन्न माध्यमों में और अलग-अलग संदर्भों तथा परिस्थितियों में काम कर रहे हैं जिन्हें 'सांस्कृतिक संगम' की छतरी के नीचे एक साथ लाया गया है। धनी समाजसेवियों का कला की दुनिया का समर्थन करने में कुछ भी असामान्य या अप्रिय नहीं है फिर भी, अंबानी के नए उद्यम से उन सभी को चिंतित होना चाहिए जो लोकतंत्र विरोधी एजेंडे व संस्थानों द्वारा कला तथा संस्कृति के अपहरण से परेशान हैं।

हम भारत के इतिहास में एक अभूतपूर्व समय में हैं जहां कई क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था संकट में है। संघवाद पर हमला हो रहा है। सरकार द्वारा भीड़ की हिंसा और घृणा को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की इमारत पर हमला किया जा रहा है।

ऐसा समय प्रगतिशील लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों को संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने एवं स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के आदर्शों की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है। क्या अंबानी द्वारा स्थापित सांस्कृतिक केंद्र हिंदुत्व की दमनकारी और हिंसक विचारधारा पर सवाल उठाने की अनुमति देगा? जैसा कि एक विश्वस्तरीय कला और संस्कृति संस्थान से उम्मीद की जाती है? क्या यह असहमति और बहस का समर्थन करेगा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करेगा, क्या वह दलितों और आदिवासियों को लोक कलाकारों के रूप में 'प्रदर्शन' करने के अलावा उनके लिए अपने नौ सितारा दरवाजे खोलेगा? या यह जरूरी सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को धन की चमक के नीचे ढंक देगा? यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि एनएमएसीसी में निवेश करने वाले केंद्र या समूह या परिवार एक ऐसी जगह होंगे जहां विरोध का स्वर प्रकट करने वाली कविता को आवाज मिलेगी या जहां कला रूपों के माध्यम से निर्बाध पूंजीवादी लालच और राज्य समर्थित हिंसा की आलोचना की जा सकती है।

बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां राजनीतिक दलों को उनके चुनावी अभियानों के लिए धन प्रदान करती हैं और बदले में सरकारें कॉर्पोरेट हितों की रक्षा करती हैं। यह व्यापक रूप से बताया गया है कि 2014-2019 के बीच मोदी सरकार के पहले चार वर्षों के भीतर मुकेश अंबानी की संपत्ति 23 बिलियन डॉलर से बढ़कर 55 बिलियन डॉलर हो गई। जिसका अर्थ है कि मुकेश अंबानी ने अपने पूरे जीवन में अर्जित और विरासत में जितना कमाया था उससे कहीं अधिक इन 5 वर्षों में कमाया। हालांकि आंकड़े कम-ज्यादा हो सकते हैं लेकिन प्रवृत्ति स्पष्ट है।

कला और संस्कृति पर अपनी काफी संपत्ति खर्च करने की अंबानी की इच्छा बुरी बात नहीं हो सकती है। उन्होंने लंदन में सर्पेंटाइन गैलरी के क्यूरेटर हैंस उलरिच ओबरिस्ट और न्यूयॉर्क की दीया आर्ट फाउंडेशन की निदेशक जेसिका मॉर्गन जैसी कला जगत की हस्तियों से सलाह और समर्थन मांगा है। यह मामूली विडंबना से कहीं अधिक है कि ये दोनों उनके सलाहकार बोर्ड में हैं।

उम्मीद की जा सकती है कि एनएमएसीसी के बहकावे में आए कलाकार और बुद्धिजीवी कला के सही उद्देश्य को पहचानेंगे तथा संस्थान को भारत के नागरिकों के प्रति उत्तरदायी ठहराएंगे और कला को सत्ता के सामने सच बोलने के लिए प्रेरित करेंगे। कला को व्यावसायिक साम्राज्यों द्वारा वित्त पोषित किया जा सकता है लेकिन जब विचाराधीन कंपनी लोकतंत्र विरोधी ताकतों की करीबी सहयोगी है तो कलाकारों सहित सभी लोगों द्वारा उसका प्रतिरोध किया जाना चाहिए।
(लेखिका सिनेमा, दृश्य कला विषयों की विशेषज्ञ हैं। सिंडिकेट: दी बिलियन प्रेस)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it