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रांची में जुटे सात राज्यों के आदिवासियों ने उठाई अलग धर्म कोड की मांग

भारत की जनगणना के फॉर्म में सरना आदिवासी धर्मावलंबियों की पहचान के लिए अलग 'धर्म कोड' की मांग को लेकर रांची में आदिवासियों की बड़ी रैली हुई

रांची में जुटे सात राज्यों के आदिवासियों ने उठाई अलग धर्म कोड की मांग
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रांची। भारत की जनगणना के फॉर्म में सरना आदिवासी धर्मावलंबियों की पहचान के लिए अलग 'धर्म कोड' की मांग को लेकर बुधवार को रांची में आदिवासियों की बड़ी रैली हुई। इसमें ऐलान किया गया कि अगर उनकी यह मांग नहीं मानी गई तो 30 दिसंबर को 'भारत बंद' बुलाया जाएगा।

दावा किया गया कि आदिवासी सेंगल अभियान के बैनर तले आयोजित इस रैली में देश के सात राज्यों के अलावा नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के आदिवासी स्त्री-पुरुष शामिल हुए।

सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासियों को जबरन कहीं हिंदू, कहीं ईसाई तो कहीं मुस्लिम बनाया जा रहा है। आदिवासियों की धार्मिक पहचान आदिवासी या सरना के रूप में रही है, लेकिन जनगणना में इनकी गिनती हिंदू, ईसाई या किसी अन्य धर्म के अंतर्गत की जा रही है। जब तक आदिवासियों को धार्मिक पहचान नहीं मिल जाती, तब तक आंदोलन करते रहेंगे।

दरअसल, भारत में जनगणना के लिए जिस फॉर्म का इस्तेमाल होता है, उसमें धर्म के कॉलम में जनजातीय समुदाय के लिए अलग से विशेष पहचान बताने का ऑप्शन नहीं है। जनगणना में हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन को छोड़कर बाकी धर्मों के अनुयायियों के आंकड़े अन्य (अदर्स) के रूप में जारी किये जाते हैं।

आंदोलित आदिवासियों का कहना है कि वे सरना धर्म को मानते हैं। उनकी पूरे देश में बड़ी आबादी है। उनके धर्म को पूरे देश में विशिष्ट और अलग पहचान मिले, इसके लिए जनगणना के फॉर्म में सरना धर्मकोड का कॉलम जरूरी है।

झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर 2020 को ही विशेष सत्र में आदिवासियों के सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन इस पर अब तक निर्णय नहीं हुआ है।

खास बात यह है कि जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का यह प्रस्ताव झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी वाली सरकार ने लाया था, जिसका राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया था। झारखंड के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा राज्य है, जिसने आदिवासियों के लिए अलग धर्मकोड का प्रस्ताव पारित किया था।


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