Top
Begin typing your search above and press return to search.

बेमेतरा में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति

आम चुनाव के शंखनाद के पूर्व जिला में राष्ट्ीय दलों की सुगबुगाहट और बेचैनी साफ तौर पर झलक रही हैं

बेमेतरा में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति
X

बेमेतरा। आम चुनाव के शंखनाद के पूर्व जिला में राष्ट्रीय दलों की सुगबुगाहट और बेचैनी साफ तौर पर झलक रही हैं। सत्ताधारी दल भाजपा एवं पिछले तीन चुनाव में हार का दंश झेल रही कांग्रेस के आला नेताओं का निर्देष व दौरा क्रमष: राज्य में होना प्रारंभ भी हो गया है।

भाजपा को इस दफा आसन्न चुनाव में जहां निष्चित रूप से एंटीकम्बेन्सी का जबरदस्त सामना करना पड़ेगा। वहीं कांग्रेस को अब कहने का अवसर नही मिलेगा कि उनके ही दल के आला नेता कुछ सीटों पर निपटाने की जुगत मे लगे हुये थे क्योकि आरोप जिनके उपर लगता रहा है, वे अब पार्टी से बाहर आकर अपने स्वयं का संगठन बनाकर मजबूती से जनता के बीच लगभग एक वर्ष पूर्व से ही अगंद के पांव की तरह अपनी उपस्थिति दिखा रहे है।

दोनों ही राष्ट्रीय दल बाहर से इसे नकारते जरूर है, पर भीतर से घबराहट और चिंता से ग्रस्त हैं। साफ तौर पर अभी कहा नही जा सकता कि अजीत प्रमोद जोगी किसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे है लेकिन स्पष्ट है कि जोगी का प्रभाव व कार्य शैली अलग-अलग विधानसभा सीटों पर भाजपा व कांग्रेस को तिलमिलाने वाली चोट जरूर पहुंचायेगी, जो आगामी पांच वर्षो तक उन्हे सालता रहेगा।

छग निर्माण के बाद कांग्रेस सरकार की कार्यषैली के बीच स्व. विद्याचरण शुक्ल की नाराजगी और उनके द्वारा बनाई गई गैर राजनीतिक संगठन छ.ग. संघर्ष परिषद की सक्रिय भूमिका किसी से छिपा नही है। स्वं. विद्याचरण शुक्ल जैसे बड़ी शख्सियत का डर और उपेक्षा की वजह से कांग्रेस को आज 14 वर्षो से वनवास झेलना पड़ रहा है।

स्व. विद्याचरण शुक्ल भले ही राजनीतिक तौर पर दल बदलने में माहिर कहे जा सकते है परन्तु देष के भीतर विषेष तौर पर उनकी मातृ और कर्मभूमि छग में उन्हें कमजोर और जनाधारविहीन नेता कहने वालों को राकांपा बनाकर सात प्रतिषत से अधिक वोट झटक कर कांग्रेस को धूल चटा दिया था। जिसका दर्द तीन चुनावों से कांग्रेस न छुपा पा रही है और न ही उससे उबर पा रही है।

जिले में तीनों विधानसभा सीट पर भाजपा की पकड़ काफी कमजोर होती जा रही है। तीन बार से मिली विजय का अहंकार, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के दर्द को दिन प्रतिदिन बढ़ाती ही गई है। आज के परिद्वष्य में देखा जाये तो जिला संगठन में जनाधारविहीन लोग अनेक प्रकोष्ठ के प्रथम पंक्ति में नजर आते हैं।

जिसका न तो मुख्यालय में वजूद है और न ही ग्रामीण क्षेत्रों में जनता उन्हें जानती भी हैं। पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ता व पदाधिकारी जो जमीन से जुड़कर कार्य करते रहे हैं, उनकी उपेक्षा सबके सामने है। मुख्यालय में की जाने वाली सभा व कार्यक्रमों के अतिरिक्त इन नेताओं को गांव की जनता से संपर्क करने शायद फुर्सत नही मिलती। गांव-गांव में समस्याये भरी पड़ी है किन्तु उनकी समस्याओं को जानने व सुलझाने का समय नही है। विगत चुनाव के दरमियान पार्टी द्वारा किये गये वायदे व घोषणा का पूरा नही होना भी आम जनमानस को विषेष तौर पर ग्रामीणों को भड़काया हुआ हैं।

साजा के धाकड़ व अविजीत माने जाने वाले पूर्व प्रतिपक्ष नेता रविन्द्र चैबे को पिछले आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। साजा विधान सभा क्षेत्र से स्वतंत्रता के बाद होने वाले सभी विधानसभा चुनावों पर दृष्टिपात करें तो दो चुनावों को छोड़कर पिता स्व. देवी प्रसाद चैबे, माता स्व. श्रीमती कुमारी देवी चैबे और उनके अग्रज प्रदीप चैबे तथा स्वयं रविन्द्र चैबे के नाम पर ही सीट सुरक्षित रहा है। पिछले चुनाव में क्षेत्र की जनता ने उन्हें नकार कर मृदुभाषी व सरल स्वभाव के लिये पहचाने जाने वाले व्यवसायी भाजपा प्रत्याषी लाभचंद बाफना को अपना नेता चुनकर सदन में पहुंचाया था।

हार के तुरन्त बाद सबक लेते रविन्द्र चैबे ने ताबड़तोड़ व जीवन्त संपर्क अपने क्षेत्र के लोगों से सतत रूप से जारी रख, पिछले चार वर्षो में जितने भी स्थानीय चुनाव हुये हैं। सभी चुनावों में साजा क्षेत्र की जनता ने पुन: उन्हें सर आंखों पर बिठाकर जीत दिलवा, उनका आत्म विष्वास बढ़ा दिया है।

यहां प्रतीत होता हैं कि साजा की जनता को अपनी भूल का अहसास हो गया हैं। चुनाव जीत कर साजा के वर्तमान भाजपा विधायक लाभचंद बाफना क्षेत्र का दौरा कर लोगों के संपर्क में तो रहते हैं लेकिन रविन्द्र चैबे से हटकर जनता को पैसे बांटने के अतिरिक्त कोई उल्लेखनीय विकास कार्य क्षेत्र में करवाने असफल रहे हैं, जिसका खामियाजा भुगतान लगभग तय हैं। बावजूद उसके लाभचंद बाफना अपने सरल स्वभाव व मृदुभाषी होने के कारण आम जनता के बीच चर्चा में बने ही रहते हैं। लिहाजा आम चुनाव में उन्हे 19 मानने की गलती, कांगे्रस को भारी पड़ सकती हैं।

नवागढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस द्वारा कमजोर प्रत्याषी उतारे जाने के साथ ही वहां बसपा की तगड़ी सेंधमारी ने वर्तमान विधायक व मंत्री दयालदास बघेल के भाग्य को बार-बार प्रबल बनाया हुआ है। वे तीन बार की विधायकी आने के दौरान दो बार प्रदेष के मंत्री होने पर भी क्षेत्रवासियों को यादगार सौगात देने पूर्ण रूप से असफल रहे हैं। मंत्री बनने की उपलब्धि यदि क्षेत्र की कुछ सड़के, दरार युक्त सरकारी भवन को ही पर्याय माना जा रहा हैं, तो बात अलग है वरना आज की स्थिति में नवागढ़, मारो क्षेत्र में दीर्घकालिक विकास योजना, परियोजना या फिर कृषकों के हितार्थ कोई कृषि आधारित उद्योग, लघु उद्योग एवं खेतों की सिंचाई हेतु स्थाई साधन शून्य है। षिक्षा के नाम पर कुछ स्कूलो के अन्नयन को छोड़ दे तो आपातकालीन स्थिति में चिकित्सा सुविधा के नाम पर भगवान भरोसे रहना लोगों की नियति बन चुका हैं।

अनुविभाग, तहसील व नगर पंचायत के दृष्टिकोण से नवागढ़, मारो विधानसभा को भांपने का प्रयास करे, तो जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते कस्बाई और बड़ी आबादी वाले गांव का ही आभाष कराते हैं। जहां पीने के पानी व अच्छी सड़क तक कें लिये वहां के लोग तरस रहे है। दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी नवागढ़, मारो की गलियां तो पगडण्डी का ही अहसास कराती है। हां, एक बात जरूर है कि प्रतिवर्ष संस्कृति एवं पर्यटन विभाग, अपने मंत्री दयालदास बघेल के आतिथ्य में लाखों रूपयों की बंदर-बाट करते जिला स्तरीय कार्यक्रम जरूर आयोजित कराती हैं। जिससे चंद लोगों के सिवाय किसी का भला नही होता।

दिन-प्रतिदिन और पल-पल बदल रही राजनीतिक फिजां से अहसास होने लगा हैं कि बेमेतरा विधानसभा सीट भी वर्तमान विधायक अवधेष चंदेल के लिये भी आसान न होकर प्रतिष्ठापूर्ण और संघर्ष भरा ही रहने वाला है क्योकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस जोगी के प्रदेष महासचिव योगेष तिवारी के वर्षों की सक्रियता गांव-गांव में निरन्तर बनी हुई है।

जहां लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल दिखलाई पड़ रहे हैं। वही जिला कांग्रेस अध्यक्ष आषीष छाबड़ा एवं जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती कविता साहू क्षेत्र में अपनी उपस्थित लगातार बनाकर कांग्रेस का मनोबल बढ़ाये हुये है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it