समय को दर्ज करती मार्मिक कविताएं
अंकुश कुमार की कविताओं में इस अभागे समय की विसंगतियां तो दर्ज होती ही हैं, इन विसंगतियों की पीछे छिपे अंधरे कोनों की शिनाख्त भी मार्मिकता के साथ होती है

- रोहित कौशिक
युवा कवि अंकुश कुमार के 'हिन्द युग्म़से प्रकाशित कविता संग्रह 'काम में उलझा समय़की कविताएं इस दौर में हो रहे बदलावों को बहुत ही सहजता के साथ प्रकट करती हैं। इस दौर का यथार्थ सहजता के साथ उसी कवि के माध्यम से प्रकट हो सकता है, जिसके अंदर प्रेम की भावना भरी हो। सुखद यह है कि सहजता के साथ सधी हुई भाषा इस संग्रह को विशेष बनाती है।
अंकुश कुमार की कविताओं में इस अभागे समय की विसंगतियां तो दर्ज होती ही हैं, इन विसंगतियों की पीछे छिपे अंधरे कोनों की शिनाख्त भी मार्मिकता के साथ होती है। कवि ने खुद लिखा है कि यह युग उनका है जो राजा की बीन के आगे फन फैलाए नाच रहे हैं।
सवाल यह है कि इस दौर में उन लोगों का क्या होगा जिन्हें राजा की बीन से कर्कश ध्वनि सुनाई देती है ? उन लोगों के साथ कौन खड़ा होगा जो राजा की जयकार नहीं करते ? हालांकि कवि ऐसे लोगों के साथ खड़ा दिखाई देता है जो राजा की बीन के आगे नहीं नाचते हैं। जब कवि अपनी कविता में राजा की आत्ममुग्धता और राजा के प्रति जनता की भक्ति पर बात करता है तो हम उसके संग्रह में प्रतिरोध की कविताएं ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं।
यह सही है इस संग्रह में उस अर्थ में हमें प्रतिरोध की कविताएं दिखाई नहीं देती हैं लेकिन सच्चा कवि अपनी कविताओं के माध्यम से किसी न किसी रूप में मानवीयता बचाने की कोशिश करता ही है। मानवीयता बचाने की कोशिश ही सत्ता की हठधर्मिता और समाज की विसंगतियों के विरुद्ध एक प्रतिरोध है। इस अर्थ मे अंकुश कुमार की कविताओं में रचा-बसा प्रतिरोध महसूस किया जा सकता है। यह प्रतिरोध किसी नारे की शक्ल में नहीं है।
कवि यह अच्छी तरह जानता है कि इस दौर में तर्क के लिए कोई जगह नहीं बची है। इस असहिष्णुता के कारण ही हमारे विचारों में हिंसा पनप रही है। इस माहौल में विवेकशील मनुष्य क्या करें ? खुद ही कुतर्क करते हुए लोग जब विवेकशील मनुष्य के तर्क को भी कुतर्क सिद्ध कर दें तो कहने को क्या रह जाता है। कवि यह सवाल उठाता है कि कविताएं यह तय करें कि उन्हें किसके हक में बोलना है और किसकी पीड़ा पर मरहम लगाना है। कवि का यह सवाल उठाना ही उसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
मध्यमवर्गीय जीवन के मनोविज्ञान को कवि ने बखूबी व्यक्त किया है। हम सब जिस मध्यमवर्गीय जीवन को जी रहे हैं, अगर वह जीवन कविता में नहीं आएगा तो हमारी कविताएं सच्ची कविताएं नहीं हो सकतीं। मध्यमवर्गीय जीवन की हलचल हमारी कविताओं को समृद्ध करती है।
सुखद यह है कि अंकुश कुमार ने मध्यमवर्गीय जीवन के सच को शब्दों में पिरो कर एक सच्चे कवि होने का फर्ज निभाया है। जिंदगी है तो जिंदगी के सुख और दुख भी हैं। इन सुखों और दुखों के बीच कामनाएं भी हैं। कवि के भीतर बेहतर बनने की इच्छा है। अपनी रचनाओं के माध्यम से शायद हर रचनाकार एक बेहतर समाज बनाने की इच्छा रखता ही है। सवाल यह है कि क्या रचनाओं के माध्यम से एक बेहतर समाज बनाया जा सकता है ? दरअसल यह सब सिर्फ रचनाकार पर ही नहीं, बल्कि समाज पर भी निर्भर करता है। इतना तो तय है कि एक रचनाकार समाज को बेहतर समाज का स्वप्न तो दिखा ही सकता है।
'लेटर बॉक्स़शीर्षक कविता जहां एक ओर हमारे मर्म को छूती है वहीं दूसरी ओर समाज में हो रहे बदलाव को भी बहुत ही सलीके से व्यक्त करती है। सच्चाई तो यही है कि नई पीढ़ी लेटर बॉक्स से आत्मीय जुड़ाव महसूस नहीं करती है। उनके लिए लेटर बॉक्स अप्रासंगिक हो गया है और संदेश भेजने के नए उपकरण प्रासंगिक हो गए है।
लेकिन पुरानी पीढ़ी लेटर बॉक्स से एक आत्मीय जुड़ाव महसूस करती थी। 'पिता की साइकिल़जैसी मार्मिक कविता लिखने वाले अंकुश कुमार ने संवेदना के उस स्तरको छुआ है, जिसको छूने के लिए अक्सर एक लंबा सफर तय करना पड़ता है। यह सही है कि उन्हें अभी एक लंबा सफर तय करना है। साथ ही इस सफर की अनेक चुनौतियों से भी जूझना है लेकिन इस संग्रह में उन्होंने जिस तरह से छोटी-छोटी चीजों और प्रक्रियाओं को दर्ज किया है, उससे उनके सफर की सफलता का अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।
अंकुश कुमार की कविताओं में आम आदमी का संघर्ष है और कई रूपों में संघर्ष की स्मृतियां भी मौजूद हैं। संघर्ष से उपजा अवसाद भी इन कविताओं में दर्ज हुआ है लेकिन किसी न किसी रूप में इन कविताओं की मूल भावना प्रेम है। प्रेम ही सच्चे अर्थों में हमारे जीवन का आधार भी है। सीमित संदर्भों में प्रेम का अर्थ ग्रहण कर हम इन कविताओं के साथ न्याय नहीं कर सकते। मानवीयता से प्रेम ही इन कविताओं की ताकत है। इन कविताओं को पढ़कर यह समझा जा सकता है कि एक युवा कवि अपने समय को किस तरह देखता है।


