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विचित्र अधिकार

विचित्र अधिकार

- विजयदान देथा 'बिज्जी' उसे रोककर कहने लगे, कैसी कुलच्छनी बहू लाई हो जो हाथ की बजाए संतों को मुँह से उत्तर दे। क्या एक अंजलि भर आटे व एक रोटी से भी...

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