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टमाटर की मार

देश भर में टमाटर की कीमतों में जबरदस्त इजाफे के बीच तमिलनाडु सरकार ने राज्य की 82 दुकानों में कम दाम में टमाटर की बिक्री करने का फैसला किया है

टमाटर की मार
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देश भर में टमाटर की कीमतों में जबरदस्त इजाफे के बीच तमिलनाडु सरकार ने राज्य की 82 दुकानों में कम दाम में टमाटर की बिक्री करने का फैसला किया है। मंगलवार से फार्म फ्रेश की इन दुकानों पर 60 रुपये प्रति किलो की दर से टमाटर की बिक्री शुरू कर दी है। हालांकि जो टमाटर पहले 20-30 रूपए किलो मिल जाते थे और उससे भी पहले इतने सस्ते होते थे कि किसानों को टमाटर बेचने से नुकसान होता था और वो अपनी उपज को सड़कों पर फेंक देते थे, उस टमाटर के लिए 60 रूपए प्रति किलो का दाम भी आम आदमी के लिए अधिक ही है। मगर फैज साहब के शब्दों में कहें तो इस खबर को सुनकर वैसा ही लगा, जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए। देश में महंगाई किसी मर्ज से कम नहीं है, जिसके मरीज आम भारतीय ही बन रहे हैं और इसका कोई इलाज मोदी सरकार के पास नहीं है, ये तय है।

मोदीजी मणिपुर का म नहीं कहते तो महंगाई का म भी नहीं कहेंगे। उनके लिए म से केवल मन की बात होती है और इसमें महंगाई की बात कही नहीं होती। बल्कि आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अगर इस महीने के मन की बात में वे भारतीयों को टमाटर खाने के नुकसान न गिनाने लग जाएं। जब वित्त मंत्री प्याज से परहेज कर सकती हैं, तो प्रधानमंत्री टमाटर का त्याग कर ही सकते हैं। एक समाचार चैनल और भाजपा समर्थक अखबार ने तो बाकायदा एक खबर ही ऐसी चला दी कि कैसे पहले के जमाने में लोग टमाटर को जहर मानते थे और टमाटर गरीबों का भोजन माना जाता था। जब पाकिस्तान में टमाटर महंगा हुआ तो ऐसे मीडिया घरानों को आम पाकिस्तानियों की तकलीफ फौरन नजर आ गई कि वहां टमाटर खरीदना कैसा मुश्किल हो रहा है।

लेकिन अब अपने ही देश में टमाटर डेढ़ सौ रूपए किलो तक मिल रहा है। पेट्रोल के दाम और टमाटर के दाम में आगे निकलने की होड़ है, तो सरकार के पिट्ठु पत्रकारों को आम हिंदुस्तानियों की तकलीफ नजर नहीं आती। इसलिए तमिलनाडु सरकार का सस्ते में टमाटर बेचने का फैसला थोड़ी राहत तो जनता को दे ही देगा। कई राज्यों की भाजपा सरकारें तो केंद्र सरकार का ख्याल रखते हुए ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगी, लेकिन गैर भाजपा सरकारों को भी तमिलनाडु का अनुसरण करना चाहिए।

वैसे पिछले दिनों केवल टमाटर ही नहीं बाकी सब्जियों के दाम भी बेतहाशा बढ़ गए हैं। इसके अलावा दालों की कीमतों में भी उछाल देखने को मिल रहा है। ये तेजी खास तौर से पिछले दस दिनों में देखने मिली है। दाल, सब्जी, फल, दूध-दही सब कुछ आम जनता की पहुंच से दूर हो रहा है। लेकिन सरकार की प्राथमिकता में महंगाई पर काबू की बात कहीं नहीं दिख रही है। न ही सरकार इस बात को बर्दाश्त कर रही है कि कोई और जनता को होने वाली तकलीफ पर आवाज उठाए। मंगलवार को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय के बाहर कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं ने टमाटर समेत सभी सब्जियों के दाम बढ़ने पर विरोध प्रदर्शन करना चाहा, तो दिल्ली पुलिस ने ऐसा करने से न केवल उन्हें रोका, बल्कि पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिलाओं के साथ झड़प की, जो कानूनन गलत है। किसी भी महिला पर कोई पुरुष पुलिसकर्मी कार्रवाई करे, यह गैरकानूनी है। मगर मोदीराज में सब मुमकिन दिख रहा है।

दिल्ली की इस घटना पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि मई में हमारी महिला चैंपियन पहलवानों के साथ जिस तरह का दुर्व्यवहार किया था वो पूरे देश ने देखा। उन्होंने आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए पुरुष अधिकारियों को भेजकर सभी प्रोटोकॉल तोड़ दिए जबकि वे सभी तो सिर्फ शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने के अपने अधिकारों का प्रयोग कर रही थीं। इस बारे में दिल्ली पुलिस का तर्क है कि कांग्रेस के पास विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं थी। महिला कांग्रेस की नेता में से कुछ ने मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी की। हमने ऐसे में सिर्फ अपना काम किया। घटनास्थल पर महिला पुलिसकर्मी भी मौजूद थीं।

दिल्ली पुलिस के इस बयान को सुनकर यकीन हो जाता है कि हम नए भारत में ही रह रहे हैं, जहां महंगाई जैसे जरूरी मुद्दे पर अपनी आवाज उठाने के लिए भी अनुमति लेनी होगी। निश्चित ही मोदी सरकार को इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं है कि इस बेतहाशा महंगाई से लोगों के बजट पर, उनकी जीवनशैली पर कितना गंभीर असर पड़ रहा है।

सरकारी आंकड़ों में महंगाई को लेकर चाहे जितनी बाजीगरी की जाए, अगर लोगों को वास्तव में चीजें किफायती दामों पर नहीं मिलेंगी, तो वे अपने खानपान में कटौती करने लगेंगे। अभी ऐसा ही हो रहा है अब लोग डेढ़ सौ में टमाटर खरीदने की जगह 25 रूपए में 200 ग्राम टमाटर की प्यूरी खरीद रहे हैं। इसी तरह अदरक-लहसून का पेस्ट, जीरा पाउडर आदि खरीद कर काम चला रहे हैं। क्योंकि बाजार में अदरक, लहसून, जीरा सब बेहद महंगे हो गए हैं। वहीं एफएमसीजी कंपनियां आपदा में अवसर तलाशते हुए छोटे पैकेट या पाउच का वजन घटाकर पुरानी कीमत या फिर दाम बढ़ाकर अपना माल बेच रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रांडेड कमोडिटी के छोटे पैकेट की मांग में इस साल मई में पिछले साल की तुलना में 23 प्रतिशत का उछाल आया है।

भाजपा जितना जोर चुनाव जीतने और हार गई तो सत्ता हथियाने में लगाती है, उतना ही ध्यान अगर देश की वास्तविक समस्याओं पर दे, तो लोगों को अपनी जरूरतों में कटौती की नौबत न आए।


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