आम आदमी की सेवा के लिए न्यायपालिका में 'सुधार नहीं क्रांति की जरूरत': जस्टिस गोगोई
देश की सर्वोच्च अदालत पर संकट बताने वाले वरिष्ठ न्यायाधीश रंजन गोगोई ने न्यायपालिका को लेकर एक बार फिर बड़ा बयान दिया है

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत पर संकट बताने वाले वरिष्ठ न्यायाधीश रंजन गोगोई ने न्यायपालिका को लेकर एक बार फिर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए 'सुधार नहीं एक क्रांति' की जरूरत है।
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने तीन और वरिष्ठ जजों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश की सर्वोच्च अदालत में सब कुछ ठीक ना होने की बात कही थी। उन्होंने केस के आबंटन को लेकर मुख्य न्यायाधीश पर भी हमला बोला था। इस बयान के बाद न्यायपालिका सवालों के घेरे में आ गई थी लेकिन अब उन्होंने एक बार फिर ऐसा ही बयान दिया है।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए 'सुधार नहीं एक क्रांति' की जरूरत है।
न्याय की दृष्टि ’’विषय पर तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका को और 'अधिक सक्रिय' रहना होगा । गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका 'उम्मीद की आखिरी किरण' है और वो 'महान संवैधानिक दृष्टि का गर्व करने वाला संरक्षक' है। इस पर समाज का काफी विश्वास है इसीलिए न्यायपालिका को अधिक सक्रिय होने की जरुरत है। उन्होंने न्याय प्रदान करने की 'धीमी प्रक्रिया' पर भी चिंता जताई और कहा कि यह ऐतिहासिक चुनौती है।
आपको बता दें कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में भारत की सर्वोच्च अदालत में हजारों की संख्या में मुकदमे लंबित हैं जबकि निचली अदालतों में ये संख्या करोड़ों में है। सुप्रीम कोर्ट में 4 मई 2018 तक कुल 54,013 मुकदमे लंबित हैं। देशभर के 24 हाईकोर्ट में साल 2016 के आखिर तक लंबित मुकदमों की संख्या 40.15 लाख थी।
जबकि जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में 2.5 करोड़ मुकदमे लंबित पड़े हैं।इसी धीमी प्रकिया को लेकर पहले भी चिंता जताई गई है लेकिन आज जस्टिस गोगोई ने इसके लिए सुधार की बजाय क्रांति की बात कही है।


