दुनिया को रहने योग्य बनाने के लिए फिर लौटना होगा गांधी की ओर
2अक्टूबर को हमने फिर गांधी को याद किया। यह आश्वस्त करने वाली बात है कि कम से कम उन्हें याद करने की परंपरा जारी है

- डा. सुदर्शन अयंगर
इस तरह गांधी अपना 'स्वराज' हासिल करने की राह पर चलते रहे। हम में से प्रत्येक को आत्मावलोकन, आत्म-परीक्षा और आत्म-सुधार के जरिए ऐसा करने का प्रयास करना चाहिए। विश्व के सभी देशों को नीति के रूप में सत्ता के राजनीतिक और आर्थिक विकेंद्रीकरण को अपनाना होगा। इस प्रक्रिया से प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन पर नियंत्रण आरंभ हो सकेगा।
2अक्टूबर को हमने फिर गांधी को याद किया। यह आश्वस्त करने वाली बात है कि कम से कम उन्हें याद करने की परंपरा जारी है। हम आशा करें कि इस परंपरा की सहायता से अहिंसा की फिलॉसफी किसी दिन मानवता की प्रकृति बन जाएगी। 2022 तक यह तर्क दिया जाता था कि युद्ध कम हो गए लेकिन सशस्त्र संघर्ष बढ़ गए थे। फिर रूस-यक्रेन युद्ध आरंभ हुआ और राष्ट्र संघ के अनुसार सिर्फ 2022 में संघर्ष से संबंधित मामलों में नागरिक मौतों में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई। फिलीस्तीन पर इजरायली हमलों और बमबारी ने इस वैश्विक स्थिति को बदतर बना दिया है। अब हमारे पास फिलिस्तीनी लोगों की मृत्यु एवं दुखों का एक अंतहीन सिलसिला है। युद्ध के दुख के अतिरिक्त अन्य तरीकों और साधनों से भी हिंसा होती है जिसे मोटे तौर पर 'संघर्ष' के रूप में ब्रांडेड किया जाता है।
संघर्ष अब निरंतर, अंतहीन और सामान्य होते जा रहे हैं। उन्हें कभी-कभी इस अर्थ में कम घातक माना जाता है जब अक्सर दो पूर्ण या समान रूप से शक्तिशाली देशों के बजाय घरेलू समूहों के बीच हिंसा होती है। अनसुलझे क्षेत्रीय तनाव, कानून-व्यवस्था के भंग होने, सरकारी या सहकारी संस्थानों की अनुपस्थिति, अवैध आर्थिक लाभ तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या के कारण संसाधनों की कमी संघर्ष के प्रमुख कारण बन गए हैं। इसके अलावा राष्ट्र संघ ने यह भी नोट किया है कि 'तकनीकी प्रगति ने घातक स्वायत्त हथियारों तथा साइबर हमलों, बॉट्स और ड्रोन के सशस्त्रीकरण एवं चरमपंथी हमलों के टीवी पर सीधे प्रसारण ने भी चिंताएं बढ़ाई हैं।' इसके साथ ही 'डेटा हैक और रैंसमवेयर (किसी उपभोक्ता या संगठन के कम्प्यूटर सिस्टम में घुसकर उसके डेटा हैक कर संबंधित व्यक्ति से मोटी रकम की मांग करना) जैसी आपराधिक गतिविधियों में वृद्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय सहयोग की गतिविधियां तनाव में हैं जो सभी रूपों में संघर्ष व हिंसा की रोकथाम तथा समाधान की वैश्विक क्षमता को कम कर रहा है।'
ग्लोबल पीस इंडेक्स- 2024 में कहा गया है कि इस समय 92 देश संघर्षों में शामिल हैं। गाज़ा और यूक्रेन संघर्ष वैश्विक शांति में गिरावट के प्राथमिक कारण हैं। पिछले साल केवल संघर्षों के कारण लगभग 162,000 मौतें हुईं। अमेरिकी सैन्य क्षमता चीन की तुलना में तीन गुना अधिक है। संघर्ष के कारण 2023 में वैश्विक जीडीपी पर 13.5 प्रश या 19.1 ट्रिलियन डॉलर का असर पड़ा। प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण और नीतियों, विशेष रूप से अमेरिका-चीन मतभेदों को भी विभिन्न देशों के बीच और घरेलू संघर्षों की श्रृंखला का एक कारण माना जाता है।
एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में हत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं जबकि विश्व स्तर पर लिंग आधारित हमले बढ़ रहे हैं। सारे विश्व में यह माना जा रहा है कि बच्चों के खिलाफ हिंसा सहित पारस्परिक हिंसा की घटनाओं से विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ रहा है।
गांधी आज भी दुनिया में इन घटनाओं के मूक गवाह बने हुए हैं। मानवता इस बात से अनजान है और भूल गई है कि प्रकट हिंसा और संघर्षों का गहरा संबंध है कि हम कैसे सोचते हैं, व्यवहार करते हैं और जीते हैं। अज्ञानता और बौद्धिक अहंकार व्यक्तिगत जीवन में संकट लाते हैं। ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा दांव पर हैं। लोभ और भोग की वजह से मानवीय गुणों की जगह विकारों ने घेर ली है। उच्चतम सार्वजनिक पदों पर बैठे लोग शायद ही चरित्रवान होते हैं। यह एक बुनियादी संकट है।
गांधी जयंती का यह अवसर कुछ उदात्त विचारों की पेशकश करने या नैतिक आधार लेने के लिए नहीं है। हम यह स्वीकार करें कि देश और स्थान के बावजूद हमारा चरित्र सामूहिक रूप से हम सभी के सामूहिक व्यवहार में प्रकट होने के लिए जिम्मेदार है। एक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने के लिए लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आत्म-विनियमन और संभालने के लिए शिक्षित करना होगा जहां न्यूनतम संघर्ष और हिंसा हो।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता ने सामाजिक मानदंडों तथा देश के कानूनों की अनदेखी, उल्लंघन और तोड़-फोड़ करने वाले स्वेच्छाचारी व्यवहार को जन्म दिया है। गांधी ने 'हिंद स्वराज्य' में 19वीं सदी के जाने-माने जीवविज्ञानी और मानवविज्ञानी थॉमस हेनरी हक्सली को उद्धृत किया है- 'मुझे लगता है कि वह आदमी जिसे अपनी युवावस्था में इतना प्रशिक्षित किया गया है कि उसका शरीर उसकी इच्छा का तैयार सेवक है और आसानी और खुशी के साथ वह सब काम करता है, जो एक तंत्र के रूप में वह करने में सक्षम है; जिसकी बुद्धि साफ है,उसे स्वार्थहीन शिक्षा प्राप्त हुई है.., जिसका मन प्रकृति के महान और मौलिक सत्य एवं उसके संचालन के नियमों के ज्ञान के साथ संग्रहीत है .., जानता है कि जुनून को एक जोरदार इच्छा से पैरों तले आने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, एक संवेदनशील विवेक का सेवक .., सभी प्रकार की दुष्टता से घृणा करना और अपने समान ही दूसरों का सम्मान करना। मुझे लगता है कि उसे स्वार्थहीन शिक्षा मिली है क्योंकि वह प्रकृति के साथ सद्भाव में है। वह प्रकृति को और प्रकृति उसे सबसे अच्छा बना देगी।'
दुर्भाग्य से अगली पीढ़ी को उपरोक्त वर्णित भावना में शिक्षित करने में दुनिया भर की शिक्षा प्रणाली विफल रही है। हिंसा एक दिन में खत्म नहीं होगी। इसके लिए हमें अगली पीढ़ियों को शिक्षित करना है। गांधी ने साबित किया था कि शिक्षा शास्त्र और शिक्षा की फिलॉसफी मन,कर्म व बुद्धि को शिक्षित करने के क्रम में थी।
प्रचलित शिक्षा प्रणाली अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा और 'मैं पहले' की भावना को जन्म देती है। यह सहयोग, करुणा और प्रेम की भावना को खत्म करती है। प्रतियोगिता एक 'अच्छे जीवन' के लिए है। अच्छे जीवन को शारीरिक आराम और आनंद के रूप में देखा जा रहा है। यह व्यक्तियों को जीवन में खुशी की ओर ले जाने में समर्थ नहीं है। व्यक्तियों की वृद्धि और विकास का मापदंड भौतिक संसाधनों की असीमित मांग और उनकी निर्बाध आपूर्ति को माना जाता है और यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में परिलक्षित होता है।
अब यह समझा जाता है कि किसी देश के अंदर और देशों के बीच संघर्ष मुख्य रूप से प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए होता है जो शारीरिक आराम और आनंद के लिए भौतिक वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते हैं। बेशक, एक वर्ग है जो दावा करता है कि यह प्रकृति को यथासंभव गहराई से जानने और पृथ्वी को समृद्धि के साथ सबसे अच्छा जीवित ग्रह बनाने के लिए सत्य की खोज है। प्रतिस्पर्धा, संघर्ष व अनियंत्रित उपभोग के साथ-साथ चारित्रिक संकट ने तथाकथित उदार समाजों और देशों को बचाने एवं उन पर हमला करने के लिए धार्मिक कट्टरवाद को प्रेरित किया है।
जातीय हिंसक संघर्षों में भी अनिवार्य रूप से राजनीतिक और आर्थिक नियंत्रण होते हैं। संसाधनों पर कब्जे को सक्षम करने के लिए शक्ति तथा प्रभुत्व की वैश्विक भूख ने एक-दूसरे के प्रति नफरत को बढ़ावा दिया है। यह बहुत तार्किक नहीं लग सकता तथा राजनीतिक-आर्थिक शक्ति के खेल एवं बढ़ते धार्मिक कट्टरवाद के बीच संबंध कमजोर दिखाई दे सकते हैं, लेकिन एक गहरा प्रतिबिंब कनेक्शन को प्रकट करेगा। गांधीजी ने सौ साल से भी अधिक समय पहले आधुनिकता की नकारात्मक विशेषताओं पर अच्छी तरह से चर्चा की है जिसने कुछ पारंपरिक समाजों को धार्मिक कट्टरवाद का सहारा लेने, पुरातन विश्वासों के माध्यम से अपनी आबादी को गुलाम बनाने और धर्म-आधारित सभ्यता की स्थापना के नाम पर खूनी युद्ध करने के लिए उनका ब्रेनवॉश करने के लिए प्रेरित किया है।
यह मानवता के लिए शुभ संकेत नहीं है। नस्ल, आर्थिक असमानता, धर्म व नस्लीय पूर्वाग्रह प्रतिशोध के साथ वापस आ गए हैं एवं दुनिया में प्रकट और संरचनात्मक हिंसा को बढ़ावा देंगे। मानवता आखिर इससे कैसे बच निकलती है? गांधीजी ने एक जीवन जिया और उसे दिखाया। अपने जीवन के अंतिम दिन तक वे अपनी कमजोरियों पर चिंतन करते रहे और अपने चरित्र को मजबूत करने के लिए उन्हें दूर करने की कोशिश की।
इस तरह गांधी अपना 'स्वराज' हासिल करने की राह पर चलते रहे। हम में से प्रत्येक को आत्मावलोकन, आत्म-परीक्षा और आत्म-सुधार के जरिए ऐसा करने का प्रयास करना चाहिए। विश्व के सभी देशों को नीति के रूप में सत्ता के राजनीतिक और आर्थिक विकेंद्रीकरण को अपनाना होगा। इस प्रक्रिया से प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन पर नियंत्रण आरंभ हो सकेगा।
शूमाकर कॉलेज, डेवोन, (यूके) के संस्थापक सतीश कुमार के शब्दों में, 'आत्मा का पोषण करना, समाज में दूसरों से प्यार करना और धरती की देखभाल करना मानवता को अहिंसक दुनिया की ओर ले जाएगा।' वास्तव में यही महात्मा गांधी का संदेश है कि एक अहिंसक और रहने योग्य दुनिया का निर्माण किया जाए।
(लेखक महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


