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गढ़वाल सीट पर तीरथ सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर

 उत्तराखण्ड की चर्चित लोकसभा सीट पौड़ी गढ़वाल में इस बार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मेजर जरनल बी.सी. खण्डूरी के पुत्र और शिष्य के बीच रोचक मुकाबला

गढ़वाल सीट पर तीरथ सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर
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देहरादून । उत्तराखण्ड की चर्चित लोकसभा सीट पौड़ी गढ़वाल में इस बार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मेजर जरनल बी.सी. खण्डूरी के पुत्र और शिष्य के बीच रोचक मुकाबला है।

इस सीट पर खंडूर के पुत्र मनीष खण्डूरी कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लड रहे हैं, वहीं भाजपा ने खण्डूरी के शिष्य तीरथ सिंह रावत को मैदान में उतारा है। कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट माने जाने वाली इस सीट पर देश की राजनीति में धुरंधर माने जाने वाले नेता हेमवंती नन्दन बहुगुणा चुनाव जीत चुके हैं। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से बड़े उलट फेर होते रहे है।

भौगोलिक रूप से काफी बड़ी क्षेत्रफल वाली पौड़ी गढ़वाल सीट में चमोली, पौडी, रूद्रप्रयाग जनपद के सभी विधानसभा क्षेत्र शामिल है। इसके अलावा टिहरी जनपद के देवप्रयाग और नरेन्द्र नगर विधानसभा क्षेत्र भी इसमें शामिल है। इस सीट में कुल 13 लाख 37 हजार 306 मतदाता हैं, जिसमें छह लाख 98 हजार 981 पुरूष तथा छह लाख 38 हजार 311 महिला मतदाता हैं। जातिगत समीकरण को देखा जाए तो यहां पर करीब 62 प्रतिशत ठाकुर, 22 प्रतिशत ब्राहमण तथा 12 प्रतिशत अनूसुचित जन जाति के मतदाता शामिल है। भाजपा ने 2004 में कुल 52 प्रतिशत मत प्राप्त करके विजय हासिल की थी जबकि 2009 में कांग्रेस ने यहां पर विजय प्राप्त की थी।

पिछले 2014 के चुनाव में भाजपा के मेजर जनरल खण्डूरी ने चार लाख 56 हजार से भी अधिक वोट प्राप्त करके कांग्रेस के हरक सिंह रावत को दो लाख से भी अधिक मतों से हराया था। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद माहौल में काफी बदलाव हुआ है। वर्ष 2014 के बाद जितने भी चुनाव हुए उसमें भाजपा का ग्राफ लगातार गिरता हुआ दिखाई दिया है। कांग्रेस की स्थिति भी यहां 2009 के चुनाव के बाद कमजोर हुई है। यहां के पुराने नेता सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत इस समय भाजपा के खेमे में हैं।

मेजर जरनल खण्डूरी के चुनाव नहीं लड़ने के बाद भाजपा ने उन्हीं के शिष्य और उनकी छत्र छाया में राजनैतिक रूप से फले-फूले तीरथ सिंह रावत को मैदान में उतारा है वहीं मनीष खण्डूरी को अपनी पिता की विरासत को संभालने के लिए उनके आशीर्वाद की आवश्यकता पड़ेगी। पूर्व सैनिकों के वर्चस्व वाली इस सीट पर राजनैतिक रूप से भी रिटायर हो चुके मेजर जनरल खण्डूरी का दबदबा अभी भी कायम है। पार्टी में उनकी उपेक्षा और उनकी पार्टी से नाराजगी जग जाहिर है। जिसका लाभ कहीं ना कहीं उनके बेटे को मिल सकता है हांलाकि पुत्र और शिष्य को अपनी विरासत सौंपने को लेकर धर्म संकट में फंसे मेजर जनरल खण्डूरी ने अभी खुलकर किसी के पक्ष में प्रचार नहीं किया है।

चाैदह विधानसभा क्षेत्र वाली इस सीट पर अब तक 18 बार चुनाव हो चुका है। कांग्रेस 90 के दशक से पहले यहां सात बार जीत चुकी है। मेजर जनरल खण्डूरी ने यहां से लगातार पांच बार जीत हासिल की है। इस बार उनकी विरासत किसे मिलेगी यह 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव के बाद तय हो जाएगा।


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