एसटी कोटे की नौकरियां हड़पने के लिए उप्र में हजारों बने जनजाति
उत्तर प्रदेश में अनुसचित जाति (एसटी) के कोटे की हजारों सरकारी नौकरियां दूसरी श्रेणी के लोगों द्वारा हड़पने का मामला उजागर हुआ है

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में अनुसचित जाति (एसटी) के कोटे की हजारों सरकारी नौकरियां दूसरी श्रेणी के लोगों द्वारा हड़पने का मामला उजागर हुआ है। एसटी कोटे की नौकरियां हड़पने के इस खेल को जिलाधिकारियों समेत कोयला प्रशासन के अधिकारियों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया।
कतिपय ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों ने खुद एसटी केटेगरी में बदल लिया है ताकि एसटी केटेगरी की नौकरियों पर वे अपना कब्जा जमा सकें।
एसटी केटेगरी की नौकरियां हड़पने वाले रैकेट का बोलबाला प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासन काल में बढ़ा। देश के सबसे बड़े प्रदेश में इन दोनों दलों का बीते दो दशकों तक वर्चस्व रहा।
आरक्षण कोटे का दुरुपयोग के संबंध में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के प्रमुख बृजलाल ने आखिरकार जिलाधिकारियों को तीन मुख्य जनजातियों-खरवार, गोंड और चेराव के एसटी प्रमाण-पत्रों की जांच का आदेश दिया है।
बृजलाल ने आईएएनएस को बताया कि उनको कई ऐसी शिकायतें मिली थीं जिनमें ओबीसी के उम्मीदवारों ने गलत तरीके से खुद को एससी या एसटी उम्मीदवार बताते हुए प्रमाण-पत्र हासिल किया।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक व पूर्व आईपीएस अधिकारी बृजलाल ने बताया, "जाहिर है कि इसका मकसद विभिन्न क्षेत्रों में कोटे का फायदा उठाना था। मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि इसमें जिलाधिकारियों की मिलीभगत नहीं होगी क्योंकि एससी/एसटी प्रमाण पत्र जारी करने का उनके पास अधिकार होता है। मैं ऐसे मामलों की संख्या का अनुमान नहीं लगा सकता क्योंकि यह खेल काफी समय से चलता आ रहा है। मैंने सोमवार को गोरखपुर में आला अधिकारियों के साथ एक बैठक करके उनको इस रैकेट की जांच करने का निर्देश दिया।"
इस रैकेट में सत्ता में काबिज राजनेताओं की भूमिका के संबंध में बृजलाल ने कहा कि 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक सरकारी आदेश पारित कर ओबीसी को एससी/एसटी केटेगरी में बदलने का प्रस्ताव दिया था।
हालांकि इस आदेश की कोई कानूनी शुचिता नहीं थी क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार की मंजूरी और आरक्षण के संबंध ऐसे प्रावधान में संशोधन के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक है।
लेकिन मुलायम सिंह यादव द्वारा आदेश पारित किए जाने के बाद विभिन्न आरक्षित केटेगरी में जाति परिवर्तन का रैकेट प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पैदा हो गया।
शुरुआती जांच से पता चला है कि गोंड, खरवार और चेराव जनजाति के फर्जी उम्मीदवारों ने बलिया, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर और गोरखपुर जिला प्रशासन से एसटी प्रमाण पत्र हासिल किए।
हालांकि उपर्युक्त तीन जनजातियां इन जिलों में नहीं पाई जाती हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने बताया, "गोंड और खरवार जनजातियां सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली में हैं। राजस्व रिकॉर्ड में ऐसी जनजातियां गोरखपुर या बलिया जैसे उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर प्रदेश में नहीं पाई जाती हैं। हमारे संज्ञान में आया है कि ओबीसी के लोग जो पहले कहार, कुम्हार, और भूर्जी जातियां थे उन्होंने खुद को गोंड या अन्य जातियों में बदल लिया ताकि जनजाति समुदाय के अधिकारों को वे हड़प सकें।"
उधर, उत्तर प्रदेश एससी/एसटी आयोग ने जिलाधिकारियों को संदिग्ध उम्मीदवारों के पैतृक और मातृक विरासत के तार खंगालने का निर्देश दिया है। आयोग ने जिलाधिकारियों को ऐसे उम्मीदवारों के मूल स्थान का पता लगाने के लिए राजस्व व संपत्ति का रिकॉर्ड खंगालने को कहा है।
सूत्रों ने बताया कि इन जिलों में पदस्थापित जिलाधिकारी रहे आईएएस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जााएगी।
आईएएनएस ने इस संबंध में मुलायम सिंह यादव का बयान लेने के लिए उनके दफ्तर से संपर्क किया लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिल पाया।
हालांकि लखनऊ स्थित सपा के मुख्यालय के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि मुलायम सिंह यादव ने इस आदेश को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि उनको केंद्र सरकार की इजाजत नहीं मिली।
पदाधिकारी ने कहा, "यह कहना सही नहीं है कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की इस मामले में कोई भूमिका रही है।"


