Top
Begin typing your search above and press return to search.

बिजली बचाने के चक्कर में मर रहे हैं हजारों लोग : शोध

बिजली बचाने और एयर कंडिशनर जैसी मशीनों के कम इस्तेमाल को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जरूरी बताया जा रहा है. लेकिन एक नया शोध बताता है कि बिजली बचाने को कहना कोई अच्छा आइडिया नहीं है.

बिजली बचाने के चक्कर में मर रहे हैं हजारों लोग : शोध
X

2011 में फुकुशिमा न्यूक्लियर रिएक्टर में हादसा होने के बाद जब जापान ने परमाणु बिजली का उत्पादन बंद करने का फैसला किया था तो उसने अपने देशवासियों से कहा था कि बिजली बचाएं क्योंकि अब ऊर्जा की कमी का सामना करना होगा. इसके लिए लोगों को कुछ सलाहें दी गई थीं जिनमें एक यह थी कि एयर कंडिशनर की जगह पंखे का इस्तेमाल करें.

वैसी ही कुछ अपील अब यूरोप के कई देशों में की जा रही हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप के देश बिजली के संकट से जूझ रहे हैं और इसलिए लोगों से एयर कंडिशनर का इस्तेमाल ना करने की अपील की गई. लेकिन, एक रिसर्च के मुताबिक जापान में एसी का इस्तेमाल कम या बिल्कुल ना होने के कारण 7,710 लोगों की मौत समय से पहले हो गई.

कैसे हुआ अध्ययन?

इस अध्ययन में 2011 से 2015 के बीच बिजली बचाने के लिए उठाए गए उपायों का विश्लेषण किया गया है. आंकड़े दिखाते हैं कि भले ही इस नीति की मंशा भली थी लेकिन इसके कारण लोगों की सेहत के लिए कई खतरे पैदा हुए हैं और अक्षय ऊर्जा पर तेज निवेश इसका उपाय हो सकता है.

हांग कांग विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर गुओजुन ही इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में शामिल थे. वह बताते हैं, "लोग अक्सर सोचते हैं कि ऊर्जा की बचत एक अच्छी चीज है. इससे पर्यावरण की सुरक्षा होती है और पैसा भी बचता है. लेकिन जापान से मिले आंकड़े दिखाते हैं कि लोगों को ऊर्जा का इस्तेमाल करने से रोकना बुरा हो सकता है.” प्रोफेसर गुओजुन ही कहते हैं कि नीतियों की लक्ष्य गंदी, क्षय ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा से बदलना होना चाहिए ना कि ऊर्जा की खपत घटाना.

इस शोध की रिपोर्ट अमेरिकन इकनॉमिक जरनल में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट कहती है कि जापान में गर्मियों के मौसम में बिजली की कुल खपत का लगभग आधा एयर कंडिशनरों के कारण होता था. फुकुशिमा के बाद जब सरकार ने लोगों से एयर कंडिशनरों का इस्तेमाल घटाने को कहा तो बिजली की खपत 15 प्रतिशत घट गई.

लेकिन जब शोधकर्ताओं ने स्वास्थ्य संबंधी डेटा का विश्लेषण किया तो पाया कि ऊर्जा संरक्षण की कोशिश के दौरान हर साल लगभग 7,710 ज्यादा लोगों की जान गई और इनमें से ज्यादातर मौतें ज्यादा गर्म दिनों में हुईं. मरने वालों में ज्यादातर लोग 65 वर्ष से ऊपर के थे जो गर्मी से ज्यादा प्रभावित होते हैं. हालांकि शोध में यह भी पता चला कि युवाओं में जान ना लेने वाले हीट स्ट्रोक के मामलों की संख्या में उछाल आया था.

अक्षय ऊर्जा की ओर ध्यान

प्रोफेसर ही कहते हैं कि जबकि पूरी दुनिया में जीवाश्म ईंधनों को खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं और नीति-निर्माताओं पर ऐसी ऊर्जा के इस्तेमाल को घटाने का दबाव है, ऐसे में इस तरह के खतरों को समझना आवश्यक हो जाता है. वह कहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की रक्षा अहम है लेकिन आज जिंदा लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए.

जलवायु परिवर्तनः आल्प्स की सर्दी में भी गर्मी का अहसास

उन्होंने कहा, "जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियां बनाते और उन्हें लागू करते वक्त नीति-निर्माताओं को इस नुकसान का पता होना चाहिए. लोगों को ऊर्जा की खपत कम करने को कहना काफी बुरा विचार है, जबकि उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो. उन्हें ऐसी मशीनें खरीदने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो ऊर्जा की कम खपत करती हैं."

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में गर्मी के बहुत ज्यादा हो जाने की घटनाएं बढ़ी हैं. इस कारण बहुत से लोगों का जीवन खतरे में पड़ा है. ऐसा अमीर और गरीब दोनों ही देशों में हुआ है और वे समुदाय भी खतरे में हैं, जिन्हें पहले ऐसे खतरे से बाहर माना जाता था. 2021 में अमेरिका के वॉशिंगटन में अभूतपूर्व गर्मी पड़ी थी और तब 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सिएटल जैसे आमतौर पर ठंडे माने जाने वाले शहरों में भी तापमान 42 डिग्री तक पहुंच गया था.

अमीर देशों पर भी असर

विशेषज्ञ कहते हैं कि अमीर देशों में घरों और दफ्तरों को ठंडा रखने की बेहतर व्यवस्थाएं होती हैं और वे अत्याधिक गर्मी पड़ने पर हालात को संभालने में ज्यादा सक्षम होते हैं. लेकिन वहां भी तब बिजली की मांग बढ़ जाती है जब बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है. ऐसे में बिजलीघरों पर दबाव बढ़ता है और वे फेल हो सकते हैं. अन्य कुदरती आपदाओं जैसे बाढ़ या तूफान आदि से भी बिजलीघर फेल हो जाते हैं. ऐसे में लोग खतरे में पड़ जाते हैं.

उदाहरण के लिए अमेरिका के फ्लोरिडा में 2017 में जब समुद्री तूफान इरमा आया था तो कई दिन तक बिजली नहीं थी. इस कारण नर्सिंग होम में रहने वाले करीब 28 हजार लोगों में मौत के मामलों में तेज वृद्धि देखी गई थी. जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में इस बारे में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी.

शोधकर्ता कहते हैं कि अक्षय ऊर्जा में निवेश की ज्यादा जरूरत है ताकि लोगों को एसी चलाने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली सस्ती बिजली उपलब्ध कराई जा सके. ऐसा भारत जैसे उन देशों में तो बहुत ज्यादा जरूरी है जहां गर्मी के कारण पहले ही मौतों की संख्या बहुत अधिक है. प्रोफेसर ही कहते हैं कि अमेरिका के मुकाबले भारत में गर्मी के कारण मरने की दर 20 से 30 फीसदी ज्यादा है क्योंकि लोगों के पास बिजली नहीं है. वह कहते हैं, "गरीब देशों को इस सवाल का जवाब समस्या पैदा होने से पहले ही खोज लेना चाहिए.”


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it