गंगा दशहरा पर हजारों श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी
गंगा दशहरा के अवसर पर बिहार में हजारों श्रद्धालुओं ने आज गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगायी तथा मंदिरों में पूजा-अर्चना की

पटना। गंगा दशहरा के अवसर पर बिहार में हजारों श्रद्धालुओं ने आज गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगायी तथा मंदिरों में पूजा-अर्चना की।
गंगा दशहरा के अवसर पर राजधानी पटना में देर रात से ही ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया, जो अभी तक जारी है। सुबह होते ही श्रद्धालु ‘हर-हर गंगे, जय गंगा मैया, हर-हर महादेव’ के जयकारे के साथ गंगा में डुबकी लगाने लगे। स्नान के बाद लोगों ने विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना की और दान किया। मंदिरों में भी अन्य दिनों की अपेक्षा पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।
गंगा नदी को देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इसे ‘मां गंगा’ भी कहा जाता है। गंगा की महत्ता को देखते हुए ‘गंगा दशहरा’ मनाया जाता है।हर साल ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए भागीरथ इसी दिन गंगा को धरती पर लेकर आए थे। तभी से गंगा दशहरा पर मां गंगा की पूजा और इसमें आस्था की डुबकी लगाने की परंपरा चली आ रही है।
पुरानी मान्यता है कि गंगा दशहरा पर गंगा स्नान करने से देवता खुश होते हैं। इसी के चलते श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान करने के बाद गंगा तट पर स्थित मंदिरों में पूजा अर्चना की और भोग लगाया। गंगा दशहरा पर्व को गंगा अवतरण भी कहा जाता है, हिन्दू मान्यताओं और पोराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन गंगा स्वर्ग से उतरकर धरती पर आई थी।
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान, गंगा जल का प्रयोग, और दान करना विशेष लाभकारी होता है। इस दिन गंगा की आराधना करने से पापों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने से 10 पापों से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए, लोग इकट्ठा होकर गंगा घाट पर पूजा करते हैं और फिर पानी में डुबकी लगाते हैं। गंगा आरती करने के लिए सैकड़ों पुजारी घाट पर एकत्र होते हैं।
गंगा दशहरा भारत के कुछ अहम राज्यों में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है, ज्यादातर ऐसे राज्यों में यह मनाया जाता है जहां से गंगा हो कर जाती है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में यह गंगा दशहरा बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार पूरे 10 दिन तक चलता है और दसवें दिन गंगा के किनारे गंगा जी की आरती, पूजन और कथा की जाती है।
कहा जाता है कि राजा सगर और उनके 60,000 पुत्र ऋषि कपिला के श्राप के कारण मारे गए थे। सगर के महान पौत्र, भगीरथ अपने पूर्वजों के लिए एक समारोह आयोजित करना चाहते थे लेकिन पानी नहीं था। राजा भागीरथ की कठिन तपस्या के कारण ही पृथ्वी पर गंगा मैया का अवतरण संभव हो पाया था लेकिन पृथ्वी के अंदर गंगा के वेग को सहने की शक्ति न होने के कारण भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं के बीच स्थान दिया, जिससे एक धारा के रूप में पृथ्वी पर गंगा का जल उपलब्ध हो सके। गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में भगवान शिव का भी महत्वपूर्ण योगदान है।


