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नियमों का पालन करने वाले संकट को भी हँसते-हँसते सह लेते हैं : विजयराज

 प्रज्ञानिधि विश्ववल्लभ आचार्य श्री विजयराज जी ने कहा कि मन तीन प्रकार के होते है-पहला दुर्जन, दूसरा सज्जन एवं तीसरा संतजन

नियमों का पालन करने वाले संकट को भी हँसते-हँसते सह लेते हैं : विजयराज
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राजनांदगांव। प्रज्ञानिधि विश्ववल्लभ आचार्य श्री विजयराज जी ने कहा कि मन तीन प्रकार के होते है-पहला दुर्जन, दूसरा सज्जन एवं तीसरा संतजन। दुर्जन मन उत्तम नियमों का पालन नहीं करते, बल्कि नियम पालन करने वालों का माखौल उड़ाते हैं। उत्तम नियमों का पालन वे करते है, जो सज्जन है।

सज्जन भी उत्तम नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाते। जो संतजन है वो पूरी तरह नियमों का पालन करते है। संतजन का जीवन नियमों वाला होता है। उत्तम नियमों का पालन करने वाले यदि संकट में भी आ जाते हैं तो उनका आत्मविश्वास जागृत रहता है। संकट में आत्मविश्वास, साधना में आत्मज्ञान और सुख का उपभोग करते समय आत्म संयम जरूरी है। ये 3 चीजें नियमों का पालन करने वालों के पास होती है।

आचार्य विजयराज जी ने उदयाचल की विजय वाटिका में अपने नियमित प्रवचन के दौरान फरमाया कि उत्तम नियम का पालन करने वालों के पास संकट आने के समय आत्मविश्वास रहता है जिससे वे संकट को भी आसानी से हँसते हुए पार कर लेते हैं। संकट के समय वे सोचते हैं कि ये मेरे कर्म के कारण हो रहा है। जो स्थिर रहते हैं, संकट के समय भी स्थिर ही रहते हैं। उनके मन में अस्थिरता का भाव नहीं आता और वो संकट को हँसते - हँसते सह लेते है। राम ने अपने पिता के आदेश को हँसते - हँसते स्वीकार कर लिया और आदेश का पालन भी किया, क्योंकि उन्होंने उत्तम नियमों का पालन किया।

साधन से हमें आत्मसुख, ज्ञान की प्राप्ति होती है। संसारियों की जो इच्छा होती है, वो करते है। किन्तु साधना में जब व्यक्ति रहता है तो हर कार्य को वह सोच समझ कर करता है। समुद्र को नदियों से, नदियों को पानी से और शमशान को शव से मुक्ति नहीं मिलती। भूख को रोटी से कभी भी तृप्ती नहीं मिलती, क्योंकि इच्छाएं अतृप्त होती है। आप इच्छा को छोड़ दो, इच्छाएं कभी भी पूरी नहीं हो सकती।

आचार्य श्री ने कहा कि संसारी व्यक्ति इच्छा आधारित जीवन जीते हैं, इसलिए उनकी इच्छाएं पूरी नहीं होती। संयम, नियम का पालन करों तो ये इच्छाएं जन्म नहीं लेगी। जिनके जीवन में उत्तम निमय होते हैं, उनका मन शांत होता है। उत्तम जीवन जीने वालों के मन में पश्चाताप की भावना भी आ जाती है। संत व्यक्ति के भीतर में परिवर्तन लाते है संतों के प्रति आस्था होनी चाहिए और जीवन में उत्तम नियम का पालन कर मन को शांत करना चाहिए।


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