इस भारत को न जानने और न मानने वाले
18वीं लोकसभा का चुनाव शुरु होने में अब केवल 15 दिन रह गए हैं। भाजपा का दावा है कि वह तीसरी बार सत्ता में वापसी करने जा रही है

- सर्वमित्रा सुरजन
इस बार के चुनाव शुरु होने से पहले ही जिस तरह बार-बार बहुमत की जगह 4 सौ के आंकड़े को भाजपा ने लोगों के दिल-दिमाग में बिठाने की कोशिशें शुरु कर दी हैं, दरअसल वह एक बड़े खेल की रणनीति है। जिसमें जनता को मानसिक तौर पर एक बड़े बदलाव के लिए तैयार किया जा सके। 2014 में अच्छे दिनों का जुमला भी ऐसा ही एक खेल था।
18वीं लोकसभा का चुनाव शुरु होने में अब केवल 15 दिन रह गए हैं। भाजपा का दावा है कि वह तीसरी बार सत्ता में वापसी करने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2023 को लालकिले से ऐलान कर ही दिया था कि वे अगली बार भी झंडा फहराने आएंगे। इसके अलावा अलग-अलग मौकों पर कई मंचों से उन्होंने अपनी वापसी का तानाशाही भरा ऐलान किया। हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 90वें स्थापना दिवस पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं सौ दिन चुनाव में व्यस्त हूं, तब तक का वक्त आप लोगों के पास है। उसके बाद आप तैयार हो जाइए धमाधम काम आने वाला है। उनकी इस बात पर वहां मौजूद तमाम रसूखदार लोग कठपुतलियों की तरह ताली बजाते और ठहाका भरते नजर आए। किसी ने यह सवाल करने की जहमत नहीं उठाई कि साहब पहले मतदान तो हो जाने दीजिए। सात चरणों में मतदान होगा, फिर 4 जून को नतीजे आएंगे, तब बता दीजिएगा कि धमाधम काम आएगा या नहीं।
प्रधानमंत्री का एकालाप मगन होकर सुनने वालों में राज्यपाल, केन्द्रीय मंत्री और भारत सरकार के आला दर्जे के अफसर सभी शामिल थे, लेकिन सभी में रीढ़ की हड्डी गायब दिखी। इनकी शिक्षा, अनुभव, ओहदा, सब बेकार नजर आए। वहीं एक निजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में तिहाड़ जेल जा चुके एक कथित पत्रकार भाजपा के झूठ को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। अपने संबोधन में इन पत्रकार महोदय ने यूक्रेन और रूस के युद्ध को नरेन्द्र मोदी ने रुकवाया है, इस झूठ को आगे बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन श्रोताओं में मौजूद एक छात्रा ने पलट कर कह दिया कि अच्छा तो तब लगता जब युद्ध वाकई रुका होता। इस छात्रा की हिम्मत रिजर्व बैंक के समारोह में उपस्थित कथित गणमान्य लोगों की काबिलियत पर भारी दिखी। कम से कम उसने सच बोलने और झूठ बोलने पर टोकने का जज्बा तो दिखाया वर्ना यह सिलसिला ऐसे ही आगे बढ़ता रहता।
इस वक्त देश में उस छात्रा जैसी हिम्मत और तार्किक सोच रखने वालों की सख्त जरूरत है। क्योंकि इस बार के चुनाव वाकई तय करेंगे कि अब देश में संविधान बचा रहेगा या फिर देश हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। व्हाट्सऐप पर एक संदेश इन दिनों खूब प्रसारित किया जा रहा है। जिसमें लिखा है कि किसे वोट दें, यह समझ नहीं आए तो किन-किन लोगों से पूछना चाहिए। फिर इसमें कश्मीरी पंडितों, राम मंदिर के भक्तों, तीन तलाक पाने वाली महिलाओं, 5 किलो मुफ्त अनाज पाने वाले गरीब, आयुष्मान कार्डधारी लोगों, ऐसे कई वर्गों का जिक्र किया गया है और इसमें खुलकर झूठ का बखान भी है, जैसे 24 घंटे बिजली पाने वाले, सीधे खाते में रुपए पाने वाले आदि बातों को लिखा गया है।
बड़ी सफाई से 15 लाख हर खाते में, हर साल 2 करोड़ रोजगार, किसानों की दोगुनी आय, सस्ता पेट्रोल और रुपए की कीमत में सुधार जैसी बातों को छोड़ दिया गया है। फिर इसमें अपील की गई है कि इसे 10 हिंदू मित्रों और रिश्तेदारों के साथ साझा करें। आगे इस संदेश में ये भी बताया गया है कि इस बार 400 पार जाना क्यों जरूरी है। संसद में सीटों का आंकड़ा समझाते हुए कहा गया है कि इस बार मोदी जी को 407 सीटें दीजिए। मोदी 3.0 2024 में होगा तो वक्फ बोर्ड खत्म होगा, 10 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियों को भगा देंगे, अल्पसंख्यक आयोग खत्म होगा, पूजा स्थल कानून खत्म हो जाएगा, आतंकवाद की फैक्ट्री वाले मदरसों पर रोक लगाई जाएगी और समान शिक्षा कानून बनाया जाएगा, केंद्र और 29 राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे 600 अल्पसंख्यक मंत्रालय खत्म हो जाएंगे, 4-4 निकाह और 3 तलाक पर रोक लग जाएगी, पत्थरबाजों और दंगाइयों की 100प्रतिशत संपत्ति जब्त कर 10 साल की सजा का प्रावधान होगा। इसके बाद आखिरी में लिखा है कि आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, एआई, कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश 100प्रतिशत बढ़ाया जाएगा।
व्हाट्सऐप पर प्रसारित हो रहा ये संदेश बहुत बड़ा है, जिसे संक्षिप्त में ऊपर वर्णित किया गया है। इस संदेश को देखने के बाद कोई संदेह नहीं रह जाता कि नरेन्द्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के पीछे की मंशा देश का संविधान बदलना है। ध्यान देने की बात ये है कि भाजपा अपने इस मकसद को बड़ी चालाकी से जनता तक पहुंचा रही है। क्योंकि मोदी की गारंटियों में कहीं हिंदू राष्ट्र बनाने का जिक्र नहीं है। भाजपा का घोषणापत्र भी अब तैयार हो रहा है, जिसमें सरकार की उपलब्धियों और कश्मीर, राम मंदिर जैसी बातों का उल्लेख होगा, लेकिन साफ तौर पर ये कहीं नहीं लिखा होगा कि हम तीसरी बार सत्ता में आएंगे तो संविधान बदल देंगे। मगर भाजपा काम उसी दिशा में कर रही है।
भाजपा के सांसद अनंत हेगड़े ने पिछले दिनों कहा था कि अगर 4 सौ से ज्यादा सीटें एनडीए को मिलती हैं, तो संविधान बदल देंगे। वहीं हाल ही में राजस्थान के नागौर से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें वे अपने प्रचार के दौरान लोगों से कह रही हैं कि- आप लोग जानते हैं कि अगर संविधान में हमें कोई बदलाव करना होता है तो संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत की आवश्यकता होती है। लोकसभा में आज बीजेपी और एनडीए के पास प्रचंड बहुमत है लेकिन राज्यसभा में आज भी हमारे पास बहुमत नहीं है।
यहां ज्योति मिर्धा ने संसद के आंकड़े वैसे ही लोगों को समझाए जैसे व्हाट्सऐप में समझाए गए हैं। इसका मतलब भाजपा का एजेंडा एकदम साफ है कि उन्हें 4 सौ सीटें संविधान बदलने के लिए चाहिए। ज्योति मिर्धा के इस वीडियो पर जब सवाल उठे, तो उन्होंने सफाई दी कि उनके बयान को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है। वे लोगों को केवल संविधान संशोधन की प्रक्रिया समझा रही थीं। ज्योति मिर्धा का यह दावा भी झूठा ही है, क्योंकि उन्होंने साफ-साफ संविधान में बदलाव की बात की है। जबकि 1950 से लेकर अब तक सौ से ज्यादा संशोधन संविधान में हो चुके हैं और इस दौरान जो भी गठबंधन या दल सत्ता में रहा, उसे इसके लिए 4 सौ से ज्यादा सीटों की जरूरत नहीं पड़ी।
इस बार के चुनाव शुरु होने से पहले ही जिस तरह बार-बार बहुमत की जगह 4 सौ के आंकड़े को भाजपा ने लोगों के दिल-दिमाग में बिठाने की कोशिशें शुरु कर दी हैं, दरअसल वह एक बड़े खेल की रणनीति है। जिसमें जनता को मानसिक तौर पर एक बड़े बदलाव के लिए तैयार किया जा सके। 2014 में अच्छे दिनों का जुमला भी ऐसा ही एक खेल था, जिसमें उलझ कर जनता ने भाजपा को बहुमत दिया था। यह एक किस्म की मनोवैज्ञानिक रणनीति है, जिसमें एक ही बात को इतनी बार कहा जाए कि फिर उसके होने पर लोग यकीन करने लगें और जब दावे के अनुरूप कुछ न हो, तब भी सवाल पूछने की जरूरत महसूस न हो।
जनता को मनोवैज्ञानिक तौर पर प्रभावित करने का एक और जरिया फिल्में और गीत भी हैं। कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी के बाद इस बार के चुनाव से पहले आर्टिकल 370, वीर सावरकर और जेएनयू जैसी फिल्मों का जिक्र भाजपा खेमे से होने लगा है। प्रधानमंत्री मोदी भी कई बार अपने भाषणों में इन फिल्मों का प्रचार करते दिखे और यह समझना कठिन नहीं है कि देश के लिए करने वाले सारे कामों को छोड़कर उन्हें किसी फिल्म के प्रचार की जरूरत क्यों पड़ती है। बहरहाल, जेएनयू यानी जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी नाम की फिल्म का एक गीत अभी चर्चा में आया है, जिसमें लेखक, अभिनेता पीयूष मिश्रा पर फिल्माया गया है, आवाज भी उन्हीं की है। इस गीत के बोल हैं- पूंजीवाद से मुझको डराते हो क्यों, मुझको लेनिन के सपने दिखाते हो क्यों, चे ग्वारा है जो, सिर्फ चेहरा है वो, उसके अंदाज को, उसके जज्बात को मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता।
ये गीत सीधे-सीधे पाकिस्तान के बड़े शायर हबीब जालिब की नज्म दस्तूर की नकल पर लिखा गया है, हालांकि इसमें अक्ल का इस्तेमाल जरा भी नहीं किया गया है। हबीब जालिब ने लिखा था-
दीप जिस का महल्लात ही में जले, चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले,
वो जो साए में हर मस्लहत के पले, ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता।
इस गीत में तानाशाही के खिलाफ बड़े सलीके से आवाज बुलंद की गई थी और इसकी कीमत भी हबीब जालिब ने चुकाई। लेकिन उनके दस्तूर को बड़ी बेहूदगी के साथ जेएनयू फिल्म के गीत में निभाया गया है। कोई लेनिन या चे ग्वारा को माने या न माने, यह उसकी मर्जी है। लेकिन उन्हें केवल चेहरा बताने की सोच यह दर्शाती है कि इस गीत को लिखने और गाने वालों के पास इतिहास, राजनीति और कला बोध की बेहद कमी है। हालांकि इतना तय है कि पूंजीवाद से डराने पर आपत्ति करने वाले असल में तानाशाही कायम करने के हिमायती हैं, तभी वे लेनिन के सपनों और चे ग्वारा के अंदाज ही नहीं नेहरू, गांधी और अंबेडकर के अनेकता में एकता वाले भारत को भी न जानते हैं, न मानते हैं।


