इस गाँव को दरकार है एक अदद कब्रिस्तान की
यहां के लोगों के सामने कश्मकश ही कुछ ऐसी है...वो दुआओं में जन्नत की बजाय खुदा से कब्रिस्तान मांगते हैं। आखिर कब तक जिंदा लोगों के बीच मरहूमों का मेला लगाते रहेंगे
आसिफ़ इक़बाल
(डीबी लाइव)
आगरा- उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में
इंसान मिट्टी का पुतला...जब जिया तो मन में हजारों तमन्ना...लेकिन मरने के बाद बेजान शरीर को चाहिए तो सिर्फ दो गज जमीन...मौत तो हर इंसान के मुकद्दर में लिखी है...मरने के बाद शरीर को मिट्टी में मिल जाना है, लेकिन उसके लिए भी परिवार को जमीन के लिए गिड़गिड़ाना है। जी हां, आगरा के अछनेरा कस्बे के एक गांव में कोई कब्रिस्तान नहीं है, जिसकी वजह से लोग घर को ही कब्रगाह बनाने के लिए मजबूर हैं। यहां मौत के बाद मातम भी मनता है, जनाजा भी निकलता है, लेकिन सिर्फ घर से घर तक...
आगरा शहर से लगभग 30 किमी दूर छह पोखरा गांव के मुस्लिम परिवार ईद पर अल्लाह से दुआ कर कब्रिस्तान मांगते हैं। हर घर के बाहर उनके परिवार के लोगों की कब्र है। वहीं, कई लोगों का मानना है कि कब्र की वजह से उनके घर के बच्चों को कथित रूप से शैतान पकड़ लेता है। इसके बाद वह झाड़फूंक के चक्कर में फंसते हैं। गांववालों का मानना है कि इन कब्रों की वजह से उनके बच्चे सालों से बीमार हैं। अछनेरा कस्बे के पोखर छह गांव में करीब 35 मुस्लिम परिवार रहते हैं। सभी मजदूरी का काम करते हैं। गांव में मुस्लिम परिवारों की आबादी करीब 200 की है लेकिन, यहां एक भी कब्रिस्तान नहीं है। लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार अपने घर के बाहर करते हैं। पिछले 60 सालों में यहां 50 से अधिक मुस्लिमों की मौत हुई है और उन्हें घर के बाहर ही दफनाया गया है। वहीं, तालाब के किनारे गांव बसे होने के कारण कई कब्र बारिश में पानी भरने से धंस कर खत्म हो गई है।
गांव में रहने वाली जुनेषा के घर के बाहर इनके ससुर हुसैन खान की कब्र है।http://dblive.tv/
नूरबानो बताती हैं कि उनकी 18 साल की बेटी रजिया पिछले तीन साल से बीमार है और कोई दवा का असर नहीं होता है। इस कारण अब झाड़फूंक का इलाज चल रहा है।
यहीं पड़ोस की रहने वाली बेबी के घर में एक कथित तांत्रिक उसकी 16 साल की बेटी मुमताज का झाड़फूंक के जरिए इलाज कर रहा था। घर के युवक लाल खान ने बताया कि वे मजदूरी करते हैं। गांव में कब्रिस्तान न होने के कारण उनके परिवार का कोई मरता है, तो उन्हें घर के बाहर दफनाते हैं। उनका मानना है कि अब कोई रूह अच्छी होती है और कोई शैतान। घर के काम करने और निकलने पर पैर लग जाता है, जिससे शैतानी आत्माएं नाराज हो जाती हैं। कई घरो के बच्चे सालों से बीमार हैं।
आपको बता दें कि 50 से अधिक लोग इस गांव में दफन हैं। बारिश में तालाब में पानी चढ़ जाता है और उसके कारण कब्र धंस कर खत्म हो जाती हैं। गांव के लोग बताते हैं कि कागजों में आज भी 387,388,389 नंबर पट्टा कब्रिस्तान के नाम है। जब भी शिकायत की जाती है, तो पैमाइश में तालाब के अंदर की जगह बताई जाती है। जब तालाब कब्रिस्तान की जमीन पर है, तो असल तालाब कहां है। हालत इस कदर ख़राब हैं कि दूसरा कब्रिस्तान लगभग 16 किमी दूर है और वहां के स्थानीय मुस्लिम अपनी कब्रिस्तान में किसी दूसरे गांव की मय्यत को दफनाने का विरोध करते हैं।


