राजस्थान में जसवंत सिंह की इस बार भी राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर
राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दबदबा वाले बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में इस बार भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता रहे एवं पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा

बाड़मेर । राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दबदबा वाले बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में इस बार भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता रहे एवं पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी है जबकि भाजपा के नये उम्मीदवार पूर्व विधायक कैलाश चौधरी के सामने सीट बचाने की कड़ी चुनौती है।
जसवंत सिंह के पुत्र पूर्व सांसद मानवेन्द्र सिंह बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर फिर चुनाव मैदान में उतरे हैं। मानवेन्द्र सिंह इस बार कांग्रेस प्रत्याशी हैं जबकि उन्होंने वर्ष 2004 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लाेकसभा पहुंचे। उनका चुनाव में सीधा मुकबला चौधरी से हैं। हालांकि इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दल के अलावा एक प्रत्याशी बीएमयूपी पार्टी तथा चार निर्दलीय उम्मीदवार सहित कुल सात प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही होने के आसार है। इनमें इस बार भी कोई महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रही है।
इस बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रत्याशी पूर्व पुलिस अधिकारी पंकज चौधरी का नामांकन खारिज होने से इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी मानवेन्द्र सिंह को होने की उम्मीद जताई जा रही है। माना जा रहा है कि बसपा प्रत्याशी के चुनाव मैदान में नहीं होने से कांग्रेस के परम्परागत माने जाने वाले मतों का बंटवारा नहीं होगा और इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिलेगा। पहले चरण के तहत 29 अप्रैल को बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में होने वाले चुनाव के लिए नामांकन वापस लेने की शुक्रवार को आखिरी तारीख के बाद चुनाव प्रचार ने भी जोर पकड़ लिया और जगह जगह चुनाव बैठकों का दौर शुरु हो गया। मानवेन्द्र सिंह के प्रचार की कमान उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने संभाल रखी है और वह बैठके कर लोगों से संपर्क कर रही है। अभी कांग्रेस के बड़े नेताओं का चुनावी दौरा जिले में शुरु नहीं हुआ है। बताय जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तथा राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलाेत सहित कई नेताओं की चुनाव सभाएं होगी।
आठ विधानसभा क्षेत्र वाले बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में आठ में से सात विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का कब्जा है और बायतू से विधायक चुने गये हरीश चौधरी राज्य में राजस्व मंत्री हैं जबकि शिव से अमीन खां एवं गुडामालानी से हेमाराम चौधरी मंत्री रह चुके है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार एवं उसके द्वारा किसानों का कर्ज माफ, बेरोजगारों को भत्ता आदि उपलब्धियों के साथ श्री जसवंत सिंह का लम्बे समय तक राजनीति से जुड़े रहने तथा मानवेन्द्र सिंह का एक बार सांसद एवं वर्ष 2013 में शिव से भाजपा विधायक रहने का राजनीतिक फायदा मिल सकता है।
इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे। वह जोधपुर से एक बार एवं चित्तौड़गढ से दो बार तथा पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से एक बार लोकसभा चुनाव जीता। भाजपा में जसवंत सिंह को तरजीह नहीं मिलने से नाराज मानवेन्द्र सिंह गत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में आ गये और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने झालावाड़ जिले की झालरापाटन से कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा, हालांकि चनुाव हार गये लेकिन पार्टी में छवि बन गई। मानवेन्द्र सिंह को पार्टी के साथ जाति गत वोट बैंक का भी फायदा मिल सकता है। भाजपा प्रत्याशी के नया चेहरा होने का भी उन्हें लाभ मिल सकता है।
उधर भाजपा उम्मीदवार कैलाश चौधरी के पास वर्ष 2013 में बायतू से विधायक बनने के अलावा कोई राजनीतिक दबदबा नहीं रहा है। हालांकि वह चुनाव में केन्द्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों एवं मोदी लहर के सहारे जीत का दावा कर रहे है। श्री चौधरी को भाजपा द्वारा नागौर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के साथ गठबंधन का फायदा भी मिलने की उम्मीद है। रालोपा के संयोजक हनुमान बेनीवाल नागौर से भाजपा के समर्थन से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और वह भाजपा के लिए प्रचार भी करेंगे। श्री बेनीवाल के श्री चौधरी के पक्ष में प्रचार करने पर जाटों के मतों का कम बंटवारा होने का फायदा मिल सकता है, क्योंकि गत विधानसभा चुनाव से पहले एवं रालोपा पार्टी बनाने से पूर्व श्री बेनीवाल ने किसान रैली की शुरुआत बाड़मेर से की थी और उन्हें शानदार समर्थन मिला था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 21 अप्रैल को बाड़मेर में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में चुनाव सभा होगी। इसके अलावा पार्टी के अन्य स्टार प्रचारकों की सभाएं भी होगी।
बाडमेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में अब तक हुए सोलह लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने नौ बार जीत हासिल कर अपना राजनीतिक दबदबा बनाया जबकि भाजपा केवल दो बार चुनाव जीत सकी है। इनके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार जनता पार्टी, जनता दल एवं रामराज्य परिषद पार्टी ने चुनाव जीता है। इनमें वर्ष 1952 में पहली लोकसभा का चुनाव जज रहे एवं पूर्व जागिरदार भवानी सिंह ने निर्दलीय के रुप में जीता। वर्ष 1957 में निर्दलीय रघुनाथ सिंह तथा 1962 में रामराज्य परिषद के तान सिंह विजय रहे जबकि लोकसभा चनुाव शुरु होने के पन्द्रह साल बाद वर्ष 1967 में कांग्रेस के अमृत नाहटा चुनाव जीते। इसके अगला चुनाव भी उन्होंने जीता।
आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में तान सिंह ने फिर चुनाव जीता लेकिन इस बार वह जनता पार्टी के प्रत्याशी थे। इसके बाद वर्ष 1980 एवं 1984 में कांग्रेस के वृद्धि चंद जैन, वर्ष 1989 में केन्द्र में संयुक्त गठबंधन के चलते जनता दल के कल्याण सिंह कालवी, वर्ष 1991 में कांग्रेस के रामनिवास मिर्धा ने लोकसभा चुनाव जीता।
वर्ष 1996 से कांग्रेस के कर्नल सोना राम ने लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते लेकिन वर्ष 2004 में भाजपा प्रत्याशी मानवेन्द्र सिंह के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2009 में कांग्रेस के हरीश चौधरी मानवेन्द्र सिंह को हराकर लोकसभा पहुंचे। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा में आने पर सोनाराम को पार्टी का टिकट मिल गया और वह चौथी बार लोकसभा पहुंचे। इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को दे दिया।


