बोतल में लौटता नहीं यह जिन्न...
हरियाणा के नूंह (मेवात) में सोमवार को जिस तरह से शोभायात्रा निकालने के मामले में हिन्दू संगठन और प्रशासन आमने-सामने हैं,

हरियाणा के नूंह (मेवात) में सोमवार को जिस तरह से शोभायात्रा निकालने के मामले में हिन्दू संगठन और प्रशासन आमने-सामने हैं, उससे साबित हो गया है कि कट्टरता का जिन्न एक बार बाहर निकले तो उसे वापस बोतल में डालना बहुत मुश्किल होता है। हर साल यहां श्रावण मास के अंतिम सोमवार को होने वाली ब्रजमंडल यात्रा बहुत प्रसिद्ध है जिसमें देश भर से बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
31 जुलाई को यहां के नलहड़ मंदिर के पास निकली यात्रा के दौरान हुए पथराव व तत्पश्चात हुए साम्प्रदायिक दंगों के चलते इस बार प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी थी लेकिन हिन्दू संगठन इसे निकालने के लिए आमादा हैं जिन्होंने पहले ही चेता दिया था कि उन्हें किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। नूंह के साथ ही पूरे हरियाणा में इसे लेकर तनाव है। जुलाई की आग अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुई है और यह नये तनाव का सबब बन गया है। सोमवार को यहां धारा 144 लगा दी गई है। मंगलवार तक इंटरनेट सेवाएं बन्द रखने का ऐलान कर दिया गया है ताकि अफवाहें न फैले।
प्रशासन की इस बात से नाराज हिन्दू संगठनों का न सिर्फ नूंह में बड़ा जमावड़ा है वरन सटे हुए गुरुग्राम जिले के उस हिस्से में भी दहशत फैल गई है जहां झुग्गी बस्तियां हैं और जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक बसते हैं। यह वही इलाका है जहां पिछले वक्त आगजनी हुई थी और कुछ लोग मारे गये थे। सोमवार की सुबह यहां हिन्दू संगठनों द्वारा दीवारों पर लिखा पाया गया कि वे (अल्पसंख्यक) इस इलाके को खाली कर दें क्योंकि यहां से शोभा यात्रा निकलेगी। वैसे यहां के अनेक लोग पिछले दंगों के समय से ही बस्तियां छोड़कर अन्यत्र जा चुके हैं। पुलिस के आला अफसरों ने आश्वस्त तो किया है कि वे (झुग्गीवासी) न घबरायें परन्तु पिछली वारदात का खौफ़ इतना है कि लोगों का पुलिस व स्थानीय प्रशासन ही नहीं सरकार पर से भी भरोसा उठ चुका है। इन इलाकों में पिछले कुछ समय से तनाव और डर का माहौल है।
राज्य सरकार हिन्दू संगठनों के आगे बेबस दिख रही है। प्रशासन ने शोभा यात्रा न निकलने देने के लिये पूरे इलाके में पुलिस की तैनाती की है, तो वहीं हिन्दू संगठन इस आदेश को न मानने पर आमादा हैं। वैसे नलहड़ मंदिर में पूजा के लिये प्रतीकात्मक रूप से 11 लोगों को अनुमति तो दी गई है पर इसे हिन्दू संगठन नहीं मान रहे हैं। उधर इस पूरे परिदृश्य में किसान नेता राकेश टिकैत की भी एंट्री हो गई है जिन्होंने कहा है कि अगर शोभा यात्रा निकाली गई या प्रशासन ने उन्हें अनुमति दी तो जवाब में किसान लाखों ट्रैक्टरों के साथ विशाल रैली निकालेंगे और महापंचायत भी करेंगे। उल्लेखनीय है कि जुलाई के अंत में हुए दंगों में किसान अल्पसंख्यकों के साथ थे। जाटों व मुस्लिमों की एकता से भारतीय जनता पार्टी के लोग और कट्टरवादी संगठन कमजोर पड़ गये थे।
पिछले कुछ समय से इस यात्रा के कारण मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर पसोपेश में हैं क्योंकि शोभा यात्रा को अनुमति न देने से हिन्दुओं की उन्हें चुनावों में नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। सरकार की पहले ही काफी भद्द भी पिट चुकी है। अगर शोभा यात्रा निकली और फिर से हिंसा हुई तो उसे सम्भाल पाना सरकार के लिये खासा मुश्किल होगा। नूंह जिला गुरुग्राम से लगा हुआ है जो देश का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। यहां दुनिया के कई महत्वपूर्ण उद्योग-धंधों के मुख्यालय व कारखाने हैं। देश के जिन तीन शहरों की प्रति व्यक्ति आय सर्वाधिक है उनमें एक गुरुग्राम भी है जहां होने वाली हिंसा का असर कारोबार जगत और भारत की छवि पर पड़ेगा।
उम्मीद तो है कि हिन्दू संगठन देश के अमन-चैन को ध्यान में रखकर इस शोभा यात्रा को सीमित व प्रतीकात्मक रूप से निकालेंगे और इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनायेंगे। प्रशासन को भी चाहिये कि वह अपने निर्देशों का पालन कड़ाई से करे। साथ ही यह भी आवश्यक है कि संविधान को लागू करने की जिम्मेदारी जिन पर है, वे अपने दायित्वों का पालन कर कानून व व्यवस्था का राज बनाए रखें।
वैसे यह मामला इस बात का सटीक उदाहरण है कि कट्टरता को जब एक बार राज्य की ओर से बढ़ावा मिलता है तो उसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। अनेक संगठन या व्यक्ति संविधान से ऊपर हो जाते हैं। धार्मिक संगठनों के हौसले पिछले कुछ समय से जिस बुलन्दी पर हैं, वह संविधान के लिये चुनौती बन गया है। ऐसे संगठन व लोग यह मानते हैं कि कानून का पालन करना उनके लिये आवश्यक नहीं है।
पिछले कुछ समय से ऐसे अनेक दृष्टांत सामने आये हैं जब सत्ता व समाज के शीर्ष पर बैठे लोगों की अपीलें भी काम नहीं आ रही हैं। एक बार तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दलितों के उत्पीड़न से व्यथित होकर कह चुके हैं- 'दलितों को मारने से अच्छा है कि उन्हें (पीएम को) मार दें।' ऐसे ही, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी अपने लोगों को समझा चुके हैं कि 'मुस्लिम भी भाई ही हैं और इन्हें मारने वाले हिन्दू नहीं हो सकते।' जिस विचारधारा के लोग हिन्दू संगठनों को चला रहे हैं या उनके सदस्य हैं, उनमें से ज्यादातर भाजपा एवं संघ से जुड़े हैं। अपील करने वाले अपने-अपने संगठनों के शीर्ष पर हैं। जब उनका कहा बेअसर हो रहा है, तो हरियाणा के सीएम या प्रशासन की बिसात ही क्या है! नफरत और हिंसा का जिन्न वापस जाने के लिए बोतल से नहीं निकलता।


