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कुर्सी के मोंह में तीस साल पुराना रिश्ता खत्म

राजनीति में कुछ भी संभव है। कुछ ऐसा ही घटनाक्रम महाराष्ट्र की सियासत में देखने को मिला है जहां कुर्सी की चाह ने भाजपा और शिवसेना के बीच 30 साल का पुराना रिश्ता खत्म कर दिया है

कुर्सी के मोंह में तीस साल पुराना रिश्ता खत्म
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- कुमार पंकज

नई दिल्ली। राजनीति में कुछ भी संभव है। कुछ ऐसा ही घटनाक्रम महाराष्ट्र की सियासत में देखने को मिला है जहां कुर्सी की चाह ने भाजपा और शिवसेना के बीच 30 साल का पुराना रिश्ता खत्म कर दिया है। वहीं भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जता रहे देवेंद्र फड़नवीस की रणनीति पर शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरे का पलड़ा भारी रहा। विधानसभा चुनाव में जहां दोनों दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा वहीं परिणाम आने के बाद शिवसेना की निगाह लगातार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बनी रही।

चुनाव परिणाम के बाद से ही शिवसेना मुख्यमंत्री पद की मांग करती रही और कहती रही कि 50-50 का फॉर्मूला तय किया गया था। यानी ढाई साल भाजपा और ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा। जबकि भाजपा की ओर से यह दावा किया जाता रहा कि इस तरह की कोई बात नहीं की गई थी। वहीं दूसरी ओर शिवसेना ने सरकार बनाने के लिए हर रणनीति पर काम किया। उद्वव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा।

उद्वव कैसे पड़े भारी

शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरे ने चुनाव परिणाम के बाद से रणनीतिक तौर पर तय कर लिया था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी पार्टी का हक है और इसकी दावेदारी लगातार करते रहे। जबकि देवेंद्र फडनवीस यह कहते रहे कि मुख्यमंत्री भाजपा का होगा और वही प्रबल दावेदार है। इस दावेदारी के बीच फड़नवीस अकेले ही दम पर सरकार बनाने की मुहिम में जुटे रहे। जबकि भाजपा के केंद्रीय नेताओं की ओर से फड़नवीस को पूरा सहयोग नहीं मिला। फडनवीस को जब विधायक दल का नेता चुना गया उसी समय यह तय हो गया शिवसेना भाजपा को किसी भी सूरत में सरकार बनाने नहीं देगी। क्योंकि प्रथम पृष्ठ का शेष

तब तक फड़नवीस और शिवसेना नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गई थी। इस बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जरूर इस तनातनी को कम करने में जुटे रहे लेकिन कोई बड़ी सफलता नहीं मिली।

आगे अब क्या

भाजपा के शीर्ष रणनीतिकारों का मानना है कि शिवसेना को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनने से भाजपा को किसी तरह का नुकसान होने वाला नहीं है। विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा-शिवसेना की महायुति को वोट दिया लेकिन शिवसेना पीछे हट गई। पार्टी के एक शीर्ष नेता ने बताया कि भाजपा हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार है और मौजूदा घटनाक्रम से भविष्य में पार्टी को फायदा ही होगा।


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