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राष्ट्र के बारे में सोचें तभी सपने होंगे साकार

तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन  ''भारत नवोन्मेष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन' के प्रारंभ में भारत नवोन्मेष पर सामूहिक चर्चा आयोजित की गई

राष्ट्र के बारे में सोचें तभी सपने होंगे साकार
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बिलासपुर। तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के तीसरे दिन ''भारत नवोन्मेष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन' के प्रारंभ में भारत नवोन्मेष पर सामूहिक चर्चा आयोजित की गई । इस सत्र के संचालन का प्रारंभ प्रो. बी.एस.राठौर ने किया । इस चर्चा में विश्वविद्यालय के समस्त संकायों के संकायाध्यक्ष तथा विद्यापरिषद सदस्य प्रो. कोनाले, गौरांग वैष्णव मुख्य रूप से मौजूद रहे ।

सत्र का प्रारंभ कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. मनीष श्रीवास्तव के उद्बोधन से हुआ इस उद्बोधन में प्रो. श्रीवास्तव ने मुख्य रूप इस बात पर चिंता व्यक्त की कि भारत जैसे समृद्ध देश में नवोन्मेष की आवश्यकता क्यों ? इतनी मजबूत देश की संस्कृति, सामरिक विचार आदि पर यदि हमले हुये तो उसके कहीं न कहीं हम जिम्मेदार हैं । इस चिंता को समझने में निश्चय ही यह संगोष्ठी इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी । वहीं श्री गौरांग वैष्णव जी ने कहा कि हमे हर मिनट सोचना चाहिये कि राष्ट्र के लिये क्या कर सकते हैं तभी राष्ट्र के बारे में सोचे सपने को साकार कर सकेंगे । इस सत्र को आगे बढ़ाते हुये अधिष्ठाता प्रो. पी.के.बाजपेयी ने कहा कि यह संगोष्ठी वैचारिक समुद्र मंथन की तरह है जो निश्चित ही नये विचारों के लिये पथ प्रदर्शक सिद्ध होगा ।

उन्होने भगवान हनुमान के श्लोक से नवोन्मेष की समस्त अवधारणाओं को सामने रखा । इस सत्र के अगले वक्ता के रूप में श्री कोनाले जी ने कहा कि विश्वविद्यालय विचारों को पैदा करने और उसे बढ़ाने के लिये सबसे योग्य भूमि होती है और ऐसे आयोजन गुरू घासीदास विश्वविद्यालय में करना निश्चय ही सफल होगा, जहां विद्या ददाति विनयं की संकल्पना चरितार्थ होती दिखी । इस सत्र को आगे बढ़ाते हुये समाज विज्ञान संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. अनुपमा सक्सेना ने नील फर्गसन की किताब द सिविलाईजेशन द वेस्ट एण्ड द रेस्ट किताब के माध्यम से अपनी बात को रखी । इसमें उन्होंने कहा कि सूर्य की तरह सभ्यता का भी सूर्यास्त और सूर्योदय होता है । इसी किताब के माध्यम से उन्होने ये भी कहा कि एक समय ऐसा आयेगा जब ईस्ट की सभ्यता का अंत और वेस्ट की सभ्यता उदय होगा । अमर्त्य सेन की किताब द आर्गूमेंटेटीव इंडिया की चर्चा करते हुये बताया कि भारत में शास्त्रार्थ की संस्कृति रही हैं जहां सभी को अपनी बातों को रख सकते थे तो निश्चय ही यह संगोष्ठी उसमें सफल रहा । इसी चर्चा में प्रो. सक्सेना ने नोम चोमस्की के माध्यम से कंसेप्ट मेनुफेक्चरिंग की बात कहीं । अगले वक्ता के रूप में प्रो. ए.एस.रणदिवे ने संस्कृति संरक्षण, पानी संरक्षण और संतोषम् परम् धरम् की बात कहीं ।

उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ चर्चाओं तक सीमित न रहकर उन माटी पुत्रों की ओर भी जाना पड़ेगा जो सीमित और नियोजित तरीके से प्रकृति का उपयोग करते है । वहीं प्रो. बी.एस.रंगारी ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि दुनिया में विश्व गुरू के रूप में पहचाना जाने वाला भारत आज इस मुकाम पर कैसे पहुंचा कि हमे इसके गौरवशाली इतिहास के नवोन्मेष की आवश्यकता पड़ी आज से तीन हजार साल पूर्व तक्षशिला में चरक संहिता पर जब काम हो रहा था उसी समय यूरोप में मेडिसिन पर काम हो रहा था ।

जब महावीर और बुद्ध नये विचारों की ओर उन्मुख थे उस समय विदेशों में भी नये विचारों की ओर लोग उन्मुख हो रहे थे यानी हम सबकी जरूरते एक जैसी ही है । अहिंसा के उच्च विचार को लेकर महावीर, तो सत्य अहिंसा के मार्ग को आगे बढ़ाते हुये गौतम बुद्ध सामने आये और इसी देश में हर्ष वर्धन ने भी शांति का संदेश दिया जिसे गांधी जी ने नया जामा पहनाकर आजादी के आंदोलन को लड़ा और महिला शिक्षा के लिये सावित्री बाई फुले और महात्मा फुले सामने आये जिनके कारण भारत विश्व गुरू कहलाया । हमे यह सोचना होगा कि आखिरी पंक्ति में खड़ा व्यक्ति कैसे सुखी हो तभी नवोन्मेष की संकल्पना साकार हो पायेगा।

अधिष्ठाता प्रो. एम.के.सिंह ने कहा कि लाईफ को मैं बिलकुल स्टेऊट समझता था लेकिन यहां बहुत घुमाव सामने है जिसे समझे बिना नवोन्मेष संभव नहीं है । वहीं अधिष्ठाता डॉ. रेणू भट्ट ने कहां कि भारत के वैभवशाली इतिहास की तरह सब कुछ हमारे अंदर ही है बाहर से कुछ लाने की जरूरत नहीं । हमें देश के युवाओं और बच्चों को नई दिशा देनी होगी ताकि सभी परिस्थितियों में संतुलन बनाये रख सके तभी नवोन्मेष संभव है। सत्र के अंत में प्रो. एस.व्ही.एस.चौहान ने ग्रामीण भारत की ओर ध्यान आकर्षित करते हुये कहा कि गांधी जी ने भी ग्राम स्वराज्य की संकल्पना की थी और उसी से नवीन भारत संभव था और आज भी यह नवोन्मेष तभी संभव है जब ग्रामीण खुश रहें।

वहीं प्रो. हरीश कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति के बारे में हमें बहुत कुछ सीखना है । उन्होने कहा कि हमे नेशनल कैरेक्टर की आवश्यकता है ताकि हम अपनी सभ्यता संस्कृति की रक्षा कर सके । आगे उन्होने कहा कि अतिथि देवा भव: की संकल्पना वाले देश में लोग घर में ताला लगाने वाले है क्योंकि मेहमान आने वाले है अर्थात हम विभिन्न निहित विचारों से भटक रहे हैं ।


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