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बेहद अहम हैं ये विधानसभा चुनाव

केन्द्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा सोमवार को जिन 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई है वे अनेक मायनों में महत्वपूर्ण हैं

बेहद अहम हैं ये विधानसभा चुनाव
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केन्द्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा सोमवार को जिन 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई है वे अनेक मायनों में महत्वपूर्ण हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विभिन्न चरणों में घोषित किये गये इन चुनावों को एक तरह से देश के सबसे बड़े सियासी टूर्नामेंट यानी लोकसभा चुनाव-2024 के सेमी फाइनल के रूप में देखा जा रहा है। दो बार केन्द्र में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी, खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिये अगला चुनाव तो चुनौतीपूर्ण माना ही जा रहा है, मौजूदा सियासी हालात में ये विधानसभा चुनाव भी उनके लिये कोई कम तकलीफदेह नहीं साबित होने जा रहे हैं।

पिछले दो लोकसभा चुनावों में बिखरे हुए विपक्ष का फायदा उठाते हुए भाजपा ने बड़ी जीतें दर्ज की थीं, लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं रह गयी है। 28 दलों ने 'इंडिया' (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूज़िव एलाएंस) के नाम से जो संयुक्त प्रतिपक्ष बनाया है, उसका असर लोकसभा चुनावों में तो दिखेगा ही, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बढ़े हुए नैतिक बल के साथ पांचों प्रदेश के चुनावी मैदान में उतरेगी क्योंकि उसी के नेतृत्व में यह गठबन्धन बना है। फिर, सभी राज्यों में वही मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। राजस्थान, छग, मप्र व मिजोरम में तो वह पहले से ही मुकाबले में थी, तेलंगाना में भी अब मुख्य मुकाबला सत्तारुढ़ भारत राष्ट्रीय समिति एवं कांग्रेस के ही बीच का हो गया है। इस जगह पर पहले भाजपा थी पर अब उसकी स्थिति तीसरे नंबर पर बताई जा रही है। राजस्थान एवं छग में तो उसी की सरकारें हैं, मप्र में भी 2018 का चुनाव कांग्रेस ने जीता था लेकिन भाजपा ने दलबदल कराकर बहुमत का जुगाड़ कर लिया था और सूबे की सत्ता हथिया ली थी।

इन पांच राज्यों के चुनाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण हो गये हैं क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जीत का रास्ता इसी पर से होकर खुलेगा। भाजपा की घबराहट इसलिये है क्योंकि वह पिछले दो विधानसभा चुनाव हार चुकी है- हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के। दोनों ही राज्य उसने कांग्रेस के हाथों गंवाए हैं। कर्नाटक में कांग्रेस ने ही पिछले यानी 2018 के चुनाव में जीत दर्ज की थी लेकिन कई राज्यों की तरह विरोधी दलों के विधायकों को येन केन प्रकारेण अपने खेमे में लाकर भाजपा ने यहां सरकार बना ली थी। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट भी भाजपा ने उपचुनाव में इंडिया गठबन्धन के प्रत्याशी के आगे खोई है।

यह ऐसा चुनाव होने जा रहा है जिसमें सभी राज्यों में भाजपा की परेशानियों के अलग-अलग सबब हैं लेकिन प्रकारान्तर से जो कॉमन फैक्टर्स हैं, उनमें दो-तीन तो बड़े साफ हैं। पहला तो यह है कि मोदी का चेहरा किसी भी राज्य में अब खुद भाजपा के लिये स्वीकार्य नहीं रह गया है क्योंकि वे कर्नाटक एवं हिमाचल प्रदेश में इसकी दुर्गति देख चुके हैं। दूसरे, कम से कम मप्र, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में वह बेहद विभाजित दिख रही है और तीनों ही जगहों पर उसके पास 'मोदी नहीं तो कौन?' वाला मसला है।

मध्यप्रदेश में मोदी की नाराजगी वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ इस कदर है कि अपनी पिछली तीन चुनावी सभाओं में उन्हें चौहान का नाम लेना तक गवारा नहीं हुआ और न ही उन्होंने सरकार के किसी काम या उपलब्धियों का ज़िक्र तक किया। साथ ही, भाजपा के 7 सांसदों को विधायकी का टिकट दिया गया है जिससे जनता में साफ संदेश गया है कि अगर पार्टी यहां जीत हासिल करती है, जिसकी सम्भावना न के बराबर बतलाई जाती है, तो सीएम पद के लिये और हारती है (जिसके पूरे-पूरे लक्षण हैं) और नेता प्रतिपक्ष के लिये सिर फुटौव्वल तय है। ऐसे ही, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी हाशिये पर डाल दी गई हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चुनाव तो लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें अब तक सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया गया है। यहां भी कुछ सांसद चुनाव लड़ रहे हैं। वैसे यहां भाजपा को काफी मेहनत की ज़रूरत है।

इन चुनावों में भाजपा के सामने मुद्दों का भी अभाव है। कर्नाटक में उसका पहले कई बार का आजमाया व सफल हुआ ध्रुवीकरण का दांव बेकार हो चुका है, जो उसके लिये चिंता की बात है। अपने करीब चार वर्षों के शासनकाल में उस राज्य में हिजाब से लेकर ऐन चुनाव के पहले तक बजरंगबली का खेल खेलने की कोशिश जरूर हुई परन्तु जनता ने उसे नकार दिया। इसके विपरीत कन्नड़ जनता ने कांग्रेस के सशक्तिकरण के रास्ते को पसंद किया। राजस्थान व छत्तीसगढ़ में जिस तरीके से जमीनी मुद्दों को सरकारों ने तरज़ीह दी है और लोगों का सशक्तिकरण किया है, वह सारा कुछ लोगों के ध्यान में आ रहा है। राजस्थान में पुरानी पेंशन योजना की बहाली तथा सस्ते सिलेंडरों की सप्लाई से लेकर छग में न्याय योजनाओं की सफलता, किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि जैसे कदम भी लोगों को भा रहे हैं। उधर मप्र में प्रशासकीय असफलताओं से चौहान की दिक्कतें काफी बढ़ी हैं।

इन राज्यों में सीधा मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच होने से कांग्रेस को कर्नाटक व हिप्र की तरह का फायदा मिल सकता है। कुछ छोटे दल भी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि उनसे भाजपा को कोई फायदा मिल सकेगा क्योंकि अब मतदाता इस पर बहुत ध्यान नहीं दे रहे हैं। भाजपा व उसके समर्थकों की इसे अंतर्विरोध बतलाने की कोशिशें भी नाकाम हो रही हैं। वे जानते हैं कि इंडिया गठबन्धन लोकसभा के लिये है।


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