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राम सेतु के पुख्ता सबूत नहीं, माना मोदी सरकार ने

भारत सरकार ने संसद में कहा है कि सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों से भी राम सेतु के होने के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं. सालों से राम सेतु के अस्तित्व पर चल रहे विवाद के बीच सरकार के इस बयान को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

राम सेतु के पुख्ता सबूत नहीं, माना मोदी सरकार ने
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एक मौखिक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री जीतेन्द्र सिंह ने राज्य सभा में कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच जहां राम सेतु के होने की बात की जाती है वहां के सैटेलाइट चित्रों के आधार पर सटीक रूप से यह कह पाना मुश्किल है कि वहां किस तरह का ढांचा था.

सिंह ने राज्य सभा को बताया कि इन चित्रों में उस इलाके में कुछ द्वीप और चूने के पत्थर के ढेर तो नजर आते हैं लेकिन इन्हें सटीक रूप से किसी पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता. सवाल बीजपी के संसद कार्तिकेय शर्मा ने पूछा था. शर्मा जानना चाह रहे थे कि क्या सरकार भारत के प्राचीन इतिहास के वैज्ञानिक आकलन की कोई कोशिश कर रही है या नहीं.

जवाब में सिंह ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार का अंतरिक्ष विभाग इन कोशिशों में लगा हुआ है, लेकिन जहां तक राम सेतु का सवाल है "उसकी खोज करने में हमारी कुछ सीमाएं हैं क्योंकि उसका इतिहास 18,000 साल से भी ज्यादा पुराना है."

मंत्री ने यह भी कहा कि सैटेलाइट चित्रों में नजर आता है कि जो ढांचा वहां है उसमें "थोड़ी निरंतरता जरूर है जिससे कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है...कुछ न कुछ संकेत तो हैं, वो चाहे प्रत्यक्ष हों या परोक्ष हों, कि वहां वो ढांचे तो थे."

क्या है राम सेतु

राम सेतु दरअसल भारत और श्रीलंका के बीच एडम्स ब्रिज या आदम के सेतु नाम की चूने के पत्थरों की एक श्रृंखला है. यह एक प्राकृतिक ढांचा है और भूवैज्ञानिक सबूतों के आधार पर यह माना जाता है कि यहां कभी भारत और श्रीलंका को जोड़ता जमीन का एक टुकड़ा रहा होगा, जिसके ये अवशेष हैं.

यह ढांचा करीब 50 किलोमीटर लंबा है और यहां पानी की गहराई भी इतनी कम है कि जहाजों को यहां से गुजरने में दिक्कत होती है. कई दशकों से विचाराधीन सेतुसमुद्रम परियोजना की वजह से राम सेतु पर बहस छिड़ी हुई है.

इस परियोजना का उद्देश्य भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच एक नौपरिवहन मार्ग बनाना है जो भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र से होकर गुजरेगा. अभी वहां पानी छिछला होने और आदम के सेतु के होने की वजह से जहाज उस इलाके से गुजर नहीं पाते हैं.

भारत के दोनों तटों के बीच आवाजाही करने वाले जहाज हो या अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर निकले लिए हुए जहाज, सभी को श्रीलंका के इर्द-गिर्द घूम कर जाना पड़ता है. इस मार्ग के बन जाने से जहाजों का काफी समय और ईंधन बचेगा, लेकिन इस परियोजना के लिए छिछले पानी में काफी गहरी खुदाई करनी होगी जिसकी वजह से आदम के सेतु को नुकसान पहुंच सकता है.

करोड़ों रुपए खर्च

पर्यावरण प्रेमी इस इलाके की इकोलॉजी के संरक्षण को लेकर इस परियोजना का विरोध करते आए हैं. लेकिन हिंदूवादी संगठन इस परियोजना का इसलिए विरोध करते आए हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे भगवान राम से जुड़ी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी.

2007 में पुरातत्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि सेतु एक मानव-निर्मित ढांचा नहीं बल्कि प्राकृतिक उत्पत्ति है, लेकिन राजनीतिक विरोध के बाद उसने ये हलफनामा वापस ले लिया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में एक दशक से भी ज्यादा से लंबित है और इस पर सुनवाई रुकी हुई है.

माना जाता है कि सालों तक सेतुसमुद्रम परियोजना पर काम होने और करोड़ों रुपयों के खर्च होने के बाद भारत सरकार ने अब इस परियोजना को बंद करने का फैसला कर लिया है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस परियोजना पर अभी तक कम से कम 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं.


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