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सीएए को लेकर विपक्ष की ओर से मचाये जा रहे होहल्ला का कोई औचित्य नहीं: प्रो. धूमल

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने कहा है कि केद्र सरकार द्वारा उठाये गये एक निर्विवाद कदम पर व्यर्थ में विवाद किया जा रहा है।

सीएए को लेकर विपक्ष की ओर से मचाये जा रहे होहल्ला का कोई औचित्य नहीं: प्रो. धूमल
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शिमला। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने कहा है कि केद्र सरकार द्वारा उठाये गये एक निर्विवाद कदम पर व्यर्थ में विवाद किया जा रहा है।

उन्होंने आज यहां कहा कि सारी दुनिया जानती है कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो धर्म के नाम पर मुस्लिम लीग और कांग्रेस ने मिलकर देश का बंटवारा किया। पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान मुसलमानों को मिले और भारत सरकार ने अपने आप को पंथनिरपेक्ष घोषित किया। जनसंख्या का विस्थापन और पलायन भी धर्म के आधार पर हुआ फिर भी बहुत सारे मुसलमान भारत में रहे और कुल आवादी का लगभग 23 प्रतिषत हिन्दु पाकिस्तान में रह गए, इसके अतिरिक्त कुछ सिख, जैन, बौद्ध, इसाई और पारसी मतावलम्बी भी पाकिस्तान में रह गए।

उनके अनुसार 1947 में ही महात्मा गांधी ने कहा कि जो हिन्दू और सिख किन्हीं कारणों से पाकिस्तान में रह गये हैं वे जब भी भारत आना चाहें या आयें तो उनका स्वागत है, इन सब की देखभाल करना, इन्हें आवास और रोजगार उपलब्ध करवाना भारत सरकार का दायित्व है। तत्कालीन प्रधानमंत्री, पं. जवाहर लाल नेहरू और अन्य नेताओं ने भी ऐसी ही बातें कहीं और आश्वासन दिये ।

प्रो0 धूमल ने कहा कि जब हिन्दू सिख अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के समाचार आने लगे, तो भारत सरकार ने मामला उठाया, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपनी अपनी सरकार की ओर से आश्वासन दिया कि वे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करेंगे।

भारत में तो अल्पसंख्यक पहले से ही सुरक्षित थे और उन की जनसंख्या भी लगातार बढ़ रही थी, लेकिन पाकिस्तान में हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, इसाई और पारसी लोगों का उत्पीड़न न केवल जारी रहा अपितु बढ़ गया। हिन्दुओं की जनसंख्या 23 प्रतिषत से कम हो कर तीन प्रतिशत रह गई। यह स्थिति अफगानिस्तान में रही जहां लगभग 50 हजार सिख व हिंदू संम्पन्न परिवार थे और वहां पर व्यापार करते थे। उन पर भी जुर्म हुए। यू.पी.ए. सरकार के समय तक ही एक लाख चैादह हजार से ज्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता के लिये आवेदन दिये हुये हैं।

प्रो0 धूमल ने बताया कि यह बात सब को स्पष्ट होनी चाहिए कि नागरिकता संषोधन अधिनियम किसी की नागरिकता छीनने के लिये नहीं, अपितु पड़ोसी तीन मुस्लिम देशों से आये हुये अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, इसाई और पारसी को अपना दायित्व निभाते हुये नागरिकता देने के लिये है जो पहले ही भारत के नागरिक हैं उनकी नागरिकता पर इस संशोधन के बाद कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों के नेता और सरकारें घोषणा कर रहे हैं कि वे अपने राज्य में सीसीए नागरिकता संषोधन अधिनियम को लागू नहीं करेंगे, इनकी अनभिज्ञता पर भी हंसी आती है या तो वो भारत के संविधान, जिस पर वो इतना शोर मचा रहे हैं, अनभिज्ञ हैं या जानबूझ कर देष के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। सब जानते हैं कि संविधान के अनुसार नागरिकता देना या न देना यह अधिकार भारत सरकार के पास है और संविधान में केंद्रीय विषय है न कि यह प्रदेश सरकार का अधिकार है। जो इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें उनसे पूछना चाहिए कि अगर उनके परिवार के लोगों का उत्पीड़न होता तो भी वे क्या बिल का विरोध करते।


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