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जुड़ने को तैयार दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक

30 से ज्यादा देशों के न्यूक्लियर फ्यूजन प्रोजेक्ट में एक बड़ी कामयाबी मिली है. दुनिया के सबसे ताकतवर चुंबक को जोड़कर वैज्ञानिक क्या हासिल करना चाहते हैं

जुड़ने को तैयार दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक
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30 से ज्यादा देशों के न्यूक्लियर फ्यूजन प्रोजेक्ट में एक बड़ी कामयाबी मिली है. दुनिया के सबसे ताकतवर चुंबक को जोड़कर वैज्ञानिक क्या हासिल करना चाहते हैं.

इंसान की कल्पना से भी तेज रफ्तार से गतिमान परमाणुओं के बेहद उच्च तापमान में आपस में टकराते ही अपार ऊर्जा पैदा होती है. यह सिद्धांत कहने-सुनने में जितना आसान है, करने में उतना ही मुश्किल. इसके लिए अब तक के सबसे ताकतवर चुंबकों की जरूरत पड़ती है. और उन चुंबकों को आपस में जोड़ना जरूरी है, ताकि किसी बाड़े जैसी एक ऐसी अदृश्य ट्यूब बन सके. इसी बाड़े के भीतर सुपर हॉट प्लाज्मा कण टकराएंगे और कैद भी रहेंगे. इस प्रक्रिया में अथाह ऊर्जाअथाह ऊर्जा निकलेगी.

30 से ज्यादा देशों के परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट का यही लक्ष्य है. द इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंट रिएक्टर (ITER) नाम का यह प्रोजेक्ट दक्षिणी फ्रांस में हो रहा है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग कहा जा रहा है. एक्सपेरिमेंट में अमेरिका, चीन, भारत, जापान, रूस, यूरोपीय संघ और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी शामिल हैं.

ITER प्रोजेक्ट के सामने कैसी चुनौतियां हैं

ITER की बेवसाइट के मुताबिक, "एक बार मशीन में फ्यूजन फ्यूल डालने के बाद, ताकतवर हीटिंग सिस्टम सुपरहॉट प्लाज्मा पैदा करने के लिए तापमान को 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देगा, यह डोनट जैसे आकार वाले चैंबर के भीतर होगा. बेहद गर्म गैसों और चैंबर की दीवारों के बीच किसी भी संपर्क को टालने के लिए, विशालकाय चुंबकों को माइनस 269 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाएगा ताकि वे सुपरकंडक्टिव बन जाएं और उसके चारों और एक विशाल चुंबकीय बाड़ा तैयार करें."

ITER ने बुधवार देर शाम कहा कि सिस्टम के आखिरी कलपुर्जे तैयार हो चुके है और टेस्ट किए जा चुके हैं. सेंट्रल सोलेनॉयड कहे जाने वाले इस कंपोनेंट को अमेरिका में जोड़ा जा रहा है. ITER के महानिदेशक पिएत्रो बाराबास्ची के मुताबिक, "यह वाइन की बोतल के भीतर एक और बोतल जैसा है; जाहिर है कि वाइन बोतल से ज्यादा अहम होती है, लेकिन वाइन को संभालने के लिए आपको बोतल की जरूरत पड़ती है."

भूराजनैतिक विवादों के बीच प्रोजेक्ट

इन शक्तिशाली चुंबकों को 2021 में तैयार हो जाना था. इस देरी के बारे में न्यूयॉर्क यूनवर्सिटी के प्रोफेसर चार्ल्स साइफे कहते हैं, "10 साल की मेहनत के बाद भी निर्धारित समयसीमा से चार साल पीछे रहना, ये दिखता है कि ये प्रोजेक्ट कितनी मुश्किल में है."

बाराबास्ची के मुताबिक प्रोजेक्ट की मुश्किलें अब खत्म हो चुकी हैं और अब ये निर्माण के चरण में दाखिल हो गया है. प्रोजेक्ट का ऑपरेशनल शुरुआती चरण 2033 में शुरू होगा. शेड्यूल के मुताबिक तब पहली बार प्लाज्मा पैदा किया जाएगा.

प्रोजेक्ट में शामिल देशों के बीच चल रहे गंभीर भूराजनैतिक विवादों के बीच ITER को उम्मीद है कि सारे देश इन मतभेदों से ऊपर उठकर सहयोग करेंगे.

प्रोजेक्ट के दावे और इसकी आलोचना

इस प्रोजेक्ट को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र के सबसे अहम प्रयोग के तौर पर पेश किया जा रहा है. ITER का दावा है कि परमाणु संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) के चलते 60 किलोग्राम फ्यूजन ईंधन से इतनी ऊर्जा पैदा की जा सकती है, जितनी ढाई लाख टन पेट्रोल से मिलती है.

ITER के कम्युनिकेशन प्रमुख रह चुके मिशेल क्लाइसेन्स अब इस प्रोजेक्ट के मुखर आलोचक हैं. वह 2021 से आरोप लगा रहे हैं कि इस प्रोजेक्ट को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है. उद्योग, रिसर्च और नीतियों पर काम करने वाली संस्था, साइंस बिजनेस से 2024 में क्लाइसेन्स ने कहा, "हमें जनता के सामने स्पष्ट होना चाहिए. हम अब भी रिसर्च और डेवलपमेंट के चरण में हैं. हम व्यावसायिक क्रियान्वयन से बहुत ही दूर हैं. जब लोग ये कहते हैं कि फ्यूजन भविष्य की ऊर्जा है तो मैं बहुत ही निराश होता हूं."


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