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विवि नियमों को ताक पर रखकर पैसा कमाने में जुटे

निजी विश्वविद्यालयों में व्याप्त शैक्षिक अव्यवस्था तथा शिक्षा का वाणिज्यीकरण करने को लेकर शुक्रवार को लेकर सोसाइटी फार एजूकेशन एण्ड इन्वायरमेंट (एसईई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एके. सिंह, उपाध्यक्ष

विवि नियमों को ताक पर रखकर पैसा कमाने में जुटे
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ग्रेटर नोएडा। निजी विश्वविद्यालयों में व्याप्त शैक्षिक अव्यवस्था तथा शिक्षा का वाणिज्यीकरण करने को लेकर शुक्रवार को लेकर सोसाइटी फार एजूकेशन एण्ड इन्वायरमेंट (एसईई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एके. सिंह, उपाध्यक्ष प्रो. राहुल सेठ व सचिव अनिल कुमार ने यूजीसी के चेयरमैन प्रो. डीपी. सिंह से यूजीसी ऑफिस दिल्ली में मुलाकात कर भ्रष्ट विश्वविद्यालयों की मनमानी प्रवेश पर रोक लगाने की लिखित मांग पत्र सौपा।

चेयरमैन ने इस बात की बड़ी गंभीरता से लेते हुए आश्चर्य भी व्यक्त किया कि ऐसा भी होता है तथा त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया तथा यह भी कहा कि जितने भी ऐसे विश्वविद्यालय है उनकी रिपोर्ट मुझे मुहैया करवाए सभी पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को लाकर सभी को सुलभ, सस्ती व गुणतायुक्त शिक्षा मुहैया कराना है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी विश्वविद्यालयों को लाया गया जिसे यूजीसी द्वारा अद्यतन रेगुलेशन से संचालित किया जा रहा है। इस एक्ट जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा का उन्निकरणद्व डी-नोवो शोध को बढ़ावा देने की है तथा शिक्षा किसी भी तरह से व्यापारिक लाभ के लिए नहीं होगी। परन्तु कुछ प्रभावशाली निजी विश्वविद्यालय यूजीसी रेगुलेशन को दरकिनार करके उच्च शिक्षा के उद्देश्यों से इतर सिर्फ पैसे कमाने के लिए सतत लगे हुए हैं।

राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र के कई ऐसे निजी विश्वविद्यालय है जो कि एक विशेष ब्रांच में हजार की संख्या में छात्रों का प्रवेश कर लेते हैं, जबकि उनके पास उपलब्ध सुविधाएं होती ही नहीं जैसे क्लास रूम, लैब, टीचर्स, हॉस्टल, लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स इत्यादि।

ऐसे विश्वविद्यालयों ने राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र के इन्जीनियरिंग कालेजों के भी भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया, कई तो बंदी की कगार पर जा पहुचें है। परिणाम यह हुआ कि जहां शिक्षक व जरूरी सुविधाएं हैं वहां छात्र नहीं और जहां शिक्षक सुविधाएं नहीं वहां छात्र मौजूद हैं। इस तरह से देश का एक बड़ा उपलब्ध इन्फ्रास्ट्रक्चर व अर्थव्यवस्था भी बेकार हो रही है। बड़ी मछली छोटी को निगल जा रही है।


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