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नोटबंदी का खाद्य पदार्थों के मूल्य पर असर नहीं: पासवान

सरकार ने आज कहा कि नोटबंदी का खाद्य पदार्थों के मूल्य पर असर नहीं पड़ा है और इस दौरान कीमतों में कमी आयी है

नोटबंदी का खाद्य पदार्थों के मूल्य पर असर नहीं: पासवान
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नयी दिल्ली। सरकार ने आज कहा कि नोटबंदी का खाद्य पदार्थों के मूल्य पर असर नहीं पड़ा है और इस दौरान कीमतों में कमी आयी है। उपभोक्ता मामले तथा खाद्यापूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि नोटबंदी से पहले पिछले साल 08 नवंबर को 22 आवश्यक खाद्य पदार्थों की जो कीमतें थीं नोटबंदी के बाद उनमें बढ़ोतरी नहीं हुई है।

अधिकतर खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आयी है। सरकार जिन 22 आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों की निगरानी करती है उनमें चावल, गेहूँ, पाँच तरह की दालें, गुड़, चीनी, तेल, आलू, प्याज, टमाटर आदि शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के डॉ. सत्यपाल सिंह ने पूछा था कि विमुद्रीकरण का आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ा है और क्या मूल्य स्थिरीकरण कोष कृषि उत्पादों के मूल्य को ठीक रखने में सक्षम रहा है।

एक पूरक प्रश्न के उत्तर में उपभोक्ता मामलों एवं खाद्यापूर्ति राज्य मंत्री छोटू राम चौधरी ने बताया कि नोटबंदी के बाद से सरकार ने 10.5 लाख टन दाल, 85 लाख टन गेहूँ और 120 लाख टन से ज्यादा चावल की खरीद की है। इनके लिए किसानों काे पूरा भुगतान चेक के माध्यम से किया गया है तथा किसानों को नोटबंदी से कोई समस्या नहीं आ रही है।

उन्होंने कहा कि सरकार डिजिटल भुगतान पर जोर दे रही है और देश के विकास के लिए बैंकिंग माध्यमों से लेनदेन जरूरी है ताकि कालाधन पर लगाम लगायी जा सके। पासवान ने कहा कि सरकार ने जमाखोरी के खिलाफ नवंबर 2016 से फरवरी 2017 के बीच 7,506 छापे मारे हैं तथा चार करोड़ 33 लाख रुपये मूल्य का अनाज बरामद किया हैं।

कांग्रेस के शशि थरूर के पूरक प्रश्न के जवाब में श्री पासवान ने कहा कि सरकार कम से कम नकदी की ओर बढ़ रही है, लेकिन डिजिटल लेनदेन नहीं करने या आधार कार्ड के अभाव में कोई जरूरी सुविधाओं से वंचित नहीं रहेगा। ऐसा नहीं है कि यदि किसी के आधार कार्ड नहीं है तो उसे राशन नहीं मिलेगा।

थरूर ने मछुवारों की आेर सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुये कहा था कि उनके संसदीय क्षेत्र में महिलाएँ मछली लेकर दिन भर बैठी रहती हैं, लेकिन नकदी के अभाव में खरीददार नहीं मिलते हैं। इन महिलाओं की महीने भर की कमाई पीओएस मशीन के किराये से कम होती है और इसलिए वे डिजिटल भुगतान नहीं अपना सकतीं।


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